ख्वाबों का पता
ख्वाबों का पता
लो मान लिया, प्यार अज़ीज़ है,
किसी का भ्रम,
किसी की इच्छा,
किसी की ज़िंदगी है,
मगर जनाब,
ख्वाब भी तो कोई चीज़ है।
कितने दिन उन्होंने, बनाए रखा पहरा,
नींदों में हमारी, बना लिया घर,
इतने महरबां हो चले,
खुली आँखों में भी, उनका ही चहरा।
आज जो अपने-आप को देखा,
आँखें खुलीं,
हम उनके नहीं,
उनके गम के हो चले थे।
सो तोड़ दिया वो आईना,
उन्हें दिल ही से निकाल फेंका,
क्या करें ?
जुनून है कुछ कर जाने का,
आँखों में एक सपना है,
जज़्बा अभी भी आग है,
ख्वाब बद्तमीज़ हैं।
हँस देना आप,
हँसीं उड़ाना मेरे, उन लफ़्ज़ों की,
जो फ़िर प्यार का ज़िक्र करेंगे,
आज मर्ज़ है जिससे,
कल उस ही की राह तकेंगे।
दुआ करेंगे,
गुनाह और किसी का नहीं,
हम ही हैं भटके हुए,
असीम आग़ाज़ों के मरीज़ हैं।
ख्वाब कुछ, कर दिखाने के,
कुछ कहने के, कहला जाने के,
उनकी याद से टकराएँगे,
आप कह दीजिएगा, गुनहगार हमें,
हम कौन-सा, ना-नुकर करेंगे।
आप को पता है,
हम भी रूबरू हैं,
हमारा ही तो मर्ज़ है,
हदें न, हमारे इश्क की हैं,
न वफ़ाओं की, है कोई सीमा,
न ख्वाबों की, दहलीज़ है।