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NARINDER SHUKLA

Comedy

4.8  

NARINDER SHUKLA

Comedy

ट्रैफिक पुलिस

ट्रैफिक पुलिस

1 min
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एक दिन

ज्यों ही मुड़े हम दायें से

धर लिये गये बायें से।

सामने थे, वर्दीधारी भगवान

देखते ही सूख गये प्राण।


उसने मुझे देखते ही, 

मूछों के बाल मरोड़ दिये

मैंने दोनों हाथ जोड़ दिये।

हे भगवान, कुछ करवाओगे

या, यूं ही मरवाओगे।


इन सफेदपोशों से हम ही

नहीं बच पाते

तुम्हें क्या बचा पायेंगे

तुम्हारे साथ हम भी

व्यर्थ ही फंस जायेंगे।


उसने कुटिल-मुस्कान से कहा

हमारे नियमों का उल्लंघन करते हो ?

हरी छोड़, पीली में मुड़ते हो।

सोचो, कितना बड़ा अपराध है

हमारे लिये माफ है।


चालान होगा

सुनाई पड़ा-

कल्याण होगा।

एकांत मे आओ

सुनाई पड़ा-

लाओ।


फिल्हाल, तो ‘सौ ‘ ही हैं ज़नाब

फिर, छूटने के न देख ख्वाब।

चार चक्कर लगायेगा

स्वयं जान जायेगा।


निकाल ओर पैसे

छोड़ देते हैं, ‘वैेसे‘।

आकाशवाणी हई -

क्या करते हो ?

घास खोदते हैं, हमने कहा।

वैसे, ‘आपके‘ ठाकूर साहब

हमारे जानकार हैं।


कहिये, कुछ सिफारिश करूं

या, यूं ही कछ फरमाइश करूं।

नाम जपते ही जान में जान आई

सोचा, लो तुम्हारी बारी आई।


नाम के प्रभाव से -

उनके पैर उखड़ गये

तुरंत लुढ़क गये।

कठोरता छोड़,

कोमलता पर आये।

और लगभग पुचकारते हुये कहा-

तुमने अब तक बहुत सहा।


यूं ही खड़े रहे

व्यर्थ ही अड़े रहे।

मन ने प्रश्न किया-

स्थिति में परिवर्तन तो इस युग में

भगवान भी नहीं कर सकता

फिर एक अधिकारी नाम ने

कैसे कर दिखाया।


तर्कों ने ज़वाब दिया-

भगवान, अज्ञानी व शैतान है

जबकि अधिकारी महान है

जबकि अधिकारी महान है।


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