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NARINDER SHUKLA

Others

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NARINDER SHUKLA

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लोकतंत्र

लोकतंत्र

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चार नेता नुमा व्यक्ति

उठाए लिये जा रहे थे

उसे

मुर्गे की तरह

लट्ठ पर लटकाये हुये ।

मैंने पूछा -

किसे उठाये लिये जा रहे हो ?

लोकतंत्र है साहब

मासूम लोगों को भरमाता था

झूठे सपने दिखाकर।


आज पा गया अपनी करनी का फल

ससुरा, सड़क के नीचे गटर में पड़ा था।

देखते नहीं, कितनी खरोंचे उभरी हैं

चेहरे पर।

देखकर, आँखें सर्द हो गई मेरी

होठों से, अनायास

च...च ..की ध्वनि हुई।

शायद -

इससे कुछ राहत मिली

परिवारजनों को

चुपचाप कफ़न उढ़ा दिया।


अचानक, देखता हूं

कफ़न उघाड़

उठ बैठा है।

मैंने, घुटनों के बल बैठकर

हल्के से उसके माथे को सहलाया -

किसने की है, तुम्हारी यह दशा ?

वह, मूक देखता रहा

मेरी ओर अपलक -

मैंने, हौंसला दिया

उसके कंधों को थपथपाया

वह

कुछ न कह

पर कटे पक्षी की तरह

तड़फड़ाता रहा।

पर कटे पक्षी की तरह

तड़फड़ाता रहा ।।



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