भूख का सपना
भूख का सपना
कचरे के उभार से निकला
कंधे पर एक थैला उजला
बोतल, चप्पल, चिमकी, अखबार
बोला कुछ भी दो सरकार
धूप बड़ी है
भूख लगी है
घर पर माँ बीमार पड़ी है !
थमा के उसको बिस्कुट चार
पूछा मैंने कि,
"सपना नहीं देखते क्या यार ?"
बोला सपना क्या होता है ?
मैंने कहा वही,
जो दिखता जब इंसान सोता है
बोलता है,
ज़रा और करो विस्तार
मैंने कहा अभी लो,
पर समझना तुम इस बार
सपना वो जो नींद उड़ाए
लड़ने की उम्मीद जगाए
सपना जिसका न कोई अंत
पूरा करने में खुशी अनन्त
सपना दौड़ाये,
सपना ललचाये
सपना ज़िंदगी
मौत बन जाए !
इसपर, बोला ऐसा बच्चे ने कुछ
सत्य के आगे जैसे झूठ हो तुच्छ,
"सोने पे दिखता अंधेरा
उजाला बस छत की छेद में ठहरा
अंत नहीं बीमारी का
शराबी बाप की लाचारी का
भूख दौड़ाये
प्यास ललचाये
छाले पैरों पे
मृत्यु का पर्याय बन जाए
ऐसे में
भूख ही मेरा सपना है
भूख ही लगता अपना है
ऐसा सपना जो रखे ज़िंदा
पूरा न हो तो,
हम सब हैं मुर्दा !"