नाता जुङा है जिनका अदबोकलाम से
नाता जुङा है जिनका अदबोकलाम से
नाता जुङा है जिनका अदबो कलाम से,
उनको गुरेज है अभी रस्मों सलाम से ।
तखलीक उनकी यूँ तो देती रही सबक,
जीते हैं आज भी वो अपने दमाम से ।
राहें सफर में कोइ जब रहेनुमा नहीं है,
झुंझला के मिल रहे हैं वो खासो-आम से ।
उल्फत जहाँ में कितनी सब को खटक रही है,
डर-डर के जी रहे हैं वो चाहत के नाम से ।
मासूम करो दिल से रफाकत की आरजू,
देखो भटक न जाना गलत ऐकदाम से ।