भगवन तेरी एक लीला
भगवन तेरी एक लीला
एक जंगली भैंस,
एक जंगल में
आठ नौ भूखे जंगली सियार।
एक सियार नोचता है,
भैंस के एक थन को
दर्द से कराहती भैंस।
दूसरा सियार फोड़ता है,
दूसरे थन को
दर्द से चित्कारती भैंस।
फिर टूट पड़ते हैं
सारे सियार
नोचते, फोड़ते,
थन से छेद बनाते, छेद बढ़ाते
दर्द से बिलबिलाती भैंस।
बढ़ते जाते सियार,
फाड़ते जाते सियार
गिर पड़ती है भैंस,
देखती है,
आँख खोले पूरे होश में,
शरीर फटते हुए,
खून निकलते हुए
शरीर में सियारों को घुसते हुए।
सियार लड़ते हैं,
फाड़ते हैं पेट
झपटते हैं आपस में, नोचते हैं
अंतड़ियां निकालते हैं,
लार गिराते हैं,
चबाते हैं, मांस खाते हैं,
घंटों-घंटों।
चित्कारती है भैंस,
पुकारती हैं भैंस
शायद तुझको भगवन।
“अमिताभ” इसमें
तेरी गरिमा क्या है ?
भैंस के इस तरह मरने में
तेरी महिमा क्या है ?