तुम बनो सारथी
तुम बनो सारथी
इंद्रियाँ अश्व हैं मनुज दास है
बुद्धि चकराती है न कोई पास है
कृष्ण से है बस यही प्रार्थना
मेरे जीवन को तुम स्वयं हाँकना
काम औ' भोग की है माया बड़ी
हर पल लेती है परीक्षा कड़ी
इस विषय वासना से प्रभु रक्षा करो
हाथ जोड़े खड़े प्रभु अभयता भरो
ये इन्द्रियाश्व दौड़े हैं सरपट बड़े
कृष्ण से हमें दूर करते अड़े
हाथ जोड़े खड़े कर रहे प्रार्थना
तुम बनो सारथी है यही अभ्यर्थना
गीता में पार्थ को दिया दिव्य ज्ञान
कर्म करो औ' फल का न धरो मन में ध्यान
ये अर्जुन पड़ा है पशोपेश में
तुम आओ त्वरित कृष्ण के वेश में
ये जीवन पथ निरा कंटक भरा
कैसे हम जिऐं फूल फल के बिना
रास्ता नहीं मार्ग में अश्व अड़े
सारथी बनो तो ये रथ चल पड़े