बेखबर
बेखबर
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ना मंजिलों का पता हो
ना ठिकानों की खबर
निकल पड़े हैं ऐसे
कि है कोई बेखबर
दिल की आवाज़ सुनने
की खातिर, बढ़ा दिए हैं कदम
मंज़िल कैसे दिखेगी,
है किसे ये खबर
सुकून ऐसा की आ गए
खुद के करीब
भाग रहे थे सालों से
हर तरफ दरबदर
रुक जाएं कुछ पल
साथ खुद के भी यहां
इससे पहले कि निकले
ये बेखबर, दरबदर