सुनो!
सुनो!
सुनो?
तुम इत्र बन जाओ,
रोज़ लिपटा करो मुझ से ख़ुशबू बन के!
तुम राज़दार सा बन जाओ,
की मुझसे मिला करो आधी रात गुफ़्तगू बन के!
चलो छोड़ो!
ये सब बेकार की बातें हैं, तुम आसमानी ज़रा एक रंग बन जाओ,
कि सजा करो मुझपे रोज़ ओढ़नी बन के!
और कुछ नहीं तो मेरा सूरज बन जाओ,
क़दम रखा करो रोज़ मेरी सहर में ख़्वाबों की रौशनी बन के!
सुनो ना?
धड़कन बनाना चाहती हूँ तुम्हें,
समा जाओ मुझमें लहू बन के!