मन हे जणू मोगरा
मन हे जणू मोगरा
1 min
406
मन हे जणू मोगरा।
मना मनाचा गाभारा।
सुगंधानं दरवळावा।
हा मनरूपी देव्हारा।।
मन हे जणू फुलपाखरू।
भिरभिर करी सुमनावरू।
त्यास कसे मी आवरू।
हलकेच त्यास आवरू।
मन हे जणू बकुळ, चाफा।
जाईजुई अन् मोगरा।
चंपा, चमेली, कमलदला।
गंधाने करी भ्रमिष्ट भ्रमरा।।
मन हे जणू सप्तरंग।
धावे मागे इंद्रधनू संग।
ऊन, पाऊस खेळ खेळता।
डुंबून जाई रंगासंगे।
कितीही धावले कोठेही पहुडले।
समर्पणाची वेळ येता चिरंतर।
कंठप्राण करी ते अर्पण।
हे मनाचे निखळ समर्पण।