ज़िद
ज़िद
चलो आज एक बचपन की कहानी सुनाता हूं।
बचपन मे माँ बाप ने बहुत प्यार दिया सर पर चढ़ा कर रखा, मा बाप के प्यार से हम इतने सर पर चढ़ गए कि लगा अब हर बात पूरी की जाएगी हमारी,, हमारी ख्वाइशें ज़िद्द में बदलती गयी , मा बाप समझाते रहे ज़िद्द का रास्ता सही नही है,मगर अपनी स्वार्थी ज़िद्द में ही जीत नज़र आने लगी ,, कुछ पड़ोसियों ने बहुत हमारा साथ दिया ये कह कर की बच्चा है अभी ज़िद्द नही करेगा तो कब करेगा, हमारे होशले बढ़ने लगें, पड़ोसी अपने लगने लगे,,
फिर एक दिन ज़िद का हौशला इतना बढ़ गया कि, मा बाप ने सोचा की आज ये ज़िद्द नही रोकी गयी तो घर का माहौल आजीवन के लिए खराब ही जाएगा , उस दिन पहली बार हमारी ज़िद्द को लेकर घर वाले सख्त हुए और कुटाई कर दीं, जब कुटाई हुई तो सब पड़ोसी ये कह कर अपने घर मे घुस गए कि, ये उनका अपना मामला है, हम क्यूं पड़े बीच मे,,।
बडी आसमंझस्य की स्थिति थी, मन में क्रोध भी था मा बाप के खिलाफ, अब करें तो क्या करें मगर ज़िद्द ने इतना गहरा असर कर दिया था मन में की समझ नही आया की क्या करें मन फिर जिद्द पर अड़ गए, ओर फिर से मेरे पड़ोसी अपने घर से बाहर आये ओर मुझे फिर से मेरी ज़िद्द के लिए साहस दिया,।।।
में सब जानता था मेरा इस्तेमाल किया जा रहा है, मगर झूठी चकाचौंध में सचाई का अंधेरा देखना भूल गया, में भूल गया मेरा वर्चस्व तो मेरे परिवार से है ,ना की मेरे पड़ोसी से।।।।।
अब अंत क्या होगा मैं जानता हूं बस स्वीकार करने की हिम्मत नहीं, उम्मीद है ये बात समझ आये।