युद्ध। .एक डॉक्टर की डायरी
युद्ध। .एक डॉक्टर की डायरी


बुढ़ाते वृक्ष की छाया की तरह चौतरफा फैले गहरे सायो के बीचोबीच बोझिल झुकती हुई पलके, आँखो की सफेदी पर चित्रकारी करती सी लाल लकीरे, बेतरतीब बाल और चेहरे को काटती हुई लाल नीली रेखाएं , यह उम्र के निशान या गमजदा मजनू की कहानी नहीं, करोना वायरस रचित महामारी से जंग लड़ रहे एक सैनिक के गर्वित चेहरे का अक्स है. गालो को काटते तंग फिटिंग वाला N 95 मास्क, आँखो को हर ओर से घेरने वाला सुरक्षा चश्मा, और शरीर तीन परतो वाला सूट, ऐसा घुटन वाला लिबास कोई हैंडसम लगने के लिए नहीं पहन रहे, मुस्कराने जैसी साधारण क्रिया तक को बाधित करने वाले कवच को पहन कर अगली पंक्ति में घंटो काम करने वाले का क्या हाल होता होगा. कल्पना कर सकता है कोई? जी हाँ, यह युद्ध ही तो है. अपने घर, नगर या राज्य को बचाने का नहीं, पूरी मानवता की सुरक्षा के लिए. किसी सेना से नहीं, आँखो से दिखाई तक न पड़ने वाले एक अदना से कोरोनावायरस को नियंत्रित करने के लिए है.
आज के एक्स और वाय युवा के लिए महामारी शब्द कुछ नया सा हो सकता है लेकिन दूर दर्शन देखकर बड़ी होने वाली पीढ़ी को १९९४ में हुई प्लेग की महामारी की धुंधली सी यादे शायद अब तक हो, प्लेग ढोने वाले चूहों से लड़ाई के लिए भारत के कई अस्पताल पेस्ट कण्ट्रोल कंपनियों के हवाले कर दिए गए थे. इक्कीसवी सदी जैसे आधुनिक समय में कोई छोटा सा प्रोटीन का टुकड़ा विश्व की महाशक्तियों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दे, ऐसी कल्पना किसी को न होगी. एम् बी बी एस के दौरान प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन की पढ़ाई के लिए एंडेमिक, इपिडेमिक, पानडेमिक जैसे शब्द रटे जाते थे, अधिकतर मेडिकल छात्र जैसे तैसे इस मन मार कर उबाऊ विषय की परीक्षा दे आते थे. आज इसी विषय की गहराई में मेडिकल बिरादरी के साथ साथ पूरी दुनिया डूबती जा रही है, वन आउंस ऑफ़ प्रिवेंशन इस बेटर देन थाउजेंड टन ऑफ़ क्योर एक कहावत नहीं बल्कि ब्रम्हवाक्य की तरह लग रहा है. महामारी का उद्गम, उसका ग्राफ और कण्ट्रोल करने की दक्षता के लिए एपिडेमीओलॉजिस्ट कहलाने वाली जमात आज सेलिब्रिटी सी सुर्खिया पा रही है.
२०२० का वर्ष शुरू होते पहले हफ्ते में ही विश्व स्वास्थय संगठन ने चीन के वुहान शहर में कोरोना वायरस से होने वाली एक नयी गंभीर बीमारी की चेतावनी दी थी. जनवरी के करीब तीसरे सप्ताह में हॉस्पिटल के सीनियर मैनेजमेंट और डॉक्टर्स की आपातकालीन मीटिंग बुलाई गयी. डायरेक्टर चिंतित शब्दों में बता रहे थे की वायरस का उद्गम तो जानवरो से है लेकिन अब मनुष्यो में इसका सामुदायिक प्रसार हो रहा है. चीनी टूरिस्टो के जरिये यह बीमारी कई देशो में छीतरती जा रही है. अस्पताल को हर स्थिति के लिए तैयार होना है. मार्च आते आते, वायरस अंतर्राष्ट्रीय सीमाएं लाँघ चूका था. यूरोप, अमेरिका और एशिया में लाखो रोगी हो चुके थे. सरकारों के दूरदर्शी कदमो के होते , इन्फेक्शस डिजीज सेंटर अपनी पूरी क्षमता के साथ तैनात था. अस्पताल, सारे डॉक्टर्स, नर्से, सफाई कर्मी, प्रशासन, सबकी छुट्टिया रद्द कर दी गयी थी, हर कोई इस बड़ी चुनौती के लिए तैयार था. दुश्मन की मांद में घुस कर वार करने के लिए ताकत के साथ हौसला भी चाहिए और यहाँ तो पूरा शहर, पूरा देश हम सैनिको के लिए शंखनाद कर रहा था . प्रधान मंत्री टीवी पर राष्ट्र को सम्बोधित कर रहे थे और अब बारी थी हमले की.
धरातल पर जब सचमुच शत्रु से सामना हो तब मनोबल डावांडोल हो सकता है, अर्जुन जैसे वीर तक ने युद्ध स्थल पर मनोबल हार कर हथियार दाल दिए थे. अगर कृष्ण का सहारा न होता तो धर्म हार चूका होता, यहाँ भी कुछ ऐसी ही स्थिति थी. चैनलों पर, समाचार पत्रों में विभीषिका का सुनते सुनते वातावरण अंधकारमय लग रहा था. लेकिन युद्ध की दुंदुभि बज चुकी थी. घर से निकलते समय कुछ सैनिक जैसे ही भाव थे, किस हाल में वापसी होगी कोई इसका कोई अंदाजा नहीं किया जा सकता था. . यह रवानगी कुछ अलग तरह की थी, यहाँ घर से प्रस्थान के समय किसी ने सैनिक के माथे पर तिलक नहीं लगाया, कोई आरती नहीं उतरी गयी, यहाँ माता बहनो के वीर रस से भरपूर गीतो की गूंज नहीं थी, था तो सिर्फ कुछ जरूरी सामान, कपडे और ढेर सारी चिंताए. एक सूटकेस कार में लाद दिया गया, हॉस्पिटल की पार्किंग से इन्फेक्शस डिजीज वार्ड तक के रास्ते पर पोस्टर्स , शहर भर से आये हुवे ग्रीटिंग कार्ड्स, ढेर सारे निर्देश और सूचनाओं की भरमार थी. ब्रीफिंग रूम में स्टाफ. मीटिंग से काम की शुरआत हुई. सबके मन दर्द से भरे थे लेकिन चेहरों पर कोई चिंता का संकेत नहीं लाना चाहता था. हंसी मजाक को जैसे जबरदस्ती ही सही, माहौल में ठूंस दिया गया था. डॉक्टर्स बिरादरी ही ऐसी है वार्ना ऐसी गंभीर स्थिति में कौन हंस सकेगा?
हॉस्पिटल के कपड़े पहन कर फिर पॉजिटिव प्रेशर चैम्बर में एन 95 और गाउन अप होना, कैप, उस पर अंतरिक्ष यात्री सूट, गॉगल्स, शू कवर्स, दो लेयर में ग्लव्स, वार्ड और आई सी यु में मौजूद खतरनाक बैक्टीरिया से सुरक्षा के लिए यह कवच अपरिहार्य है. कवच में जरा भी कमजोरी होना इन्फेक्शन को बुलावा देने की तरह है, जी हाँ, अब तलवारे चमक रही है, जय घोष गरज रहा है और शत्रु के अटटहास को मात देती वेंटिलेटर्स और तरह तरह के अलार्मस की गुंजन है. अस्पताल की असली जिंदगी टीवी सीरियलों या फिल्मो आपाधापी से कही अलग होते है. , कुछ एम्बुलेंस से आने वालो को सीधे ही हाई डिपेंडेंस क्षेत्र में पहुंचाया जा रहा है और वहां फ़िल्मी भागदौड़ दिख सकती है. वार्ना इमरजेंसी विभाग के ट्राइएज सेंटर में अधिकतर चलते फिरते मरीज है, कुछ बुखार में, कुछ हलकी सर्दी खांसी लिए. इन्ही में कुछ कोरोना के मरीज भी होंगे जो टेस्ट्स से आगे कन्फर्म होने के बाद भर्ती किये जायेंगे. इनमे से कुछ को वेंटीलेटर लगेगा और वही सबसे बड़ी चिंता है, वाइरस का फैलाव इतना तेज है के थोड़े समय में ही हजारो मरीज हो सकते है, इसके पहले की सिस्टम की साँस रुक जाये, वायरस को रोकना होगा. यह साधारण महामारी नहीं, पैनडेमिक अर्थात कई देशो में एक साथ हजारो बलि लेने वाली प्रकृति की मार. वायरस से बचने के लिए आमजन हो या खास, सभी को घर में, एकांत वास् करने की सलाह दी जा रही है. हॉस्पिटल में भी मरीजों के लिए आइसोलेशन वार्ड है, यानि जो एक बार भर्ती हो गया, वो ठीक होने या अंतिम समय आने तक दुनिया से कट कर रहेगा. जैसा की हर जंग में होता है, जीत अवश्य होगी लेकिन बड़े नुकसान की कीमत पर.
इन्फेक्शस वार्ड में काम करते करते आज ४ दिन हो चले है, आराम करने के लिए मिले ब्रेक के दौरान सबसे जरूरी काम है परिवार की कुशल क्षेम जानना, अपनी सलामती का ढाढस बंधाना, नींद बेगानी हो चुकी है लेकिन मन शांत हो चला है. जीवन मृत्यु के बीच संघर्ष अपने कैरियर के दौरान पचासो बार हम नजदीक से महसूस करते है लेकिन अब नजरिया कुछ बदल चूका है. आईने में अपना प्रतिबिम्ब देखते हुवे बस यही ख्याल आरहे थे, चेहरे पर बनी ये लकीरे तो कुछ दिन में साफ़ हो जाएगी लेकिन जो सबक मिले है वो जिंदगी को बदल देने वाले है. यह महामारी एक तरह से मनुष्य की उच्छृंखलता पर प्रभु का अंकुश है. जात पात अमीर गरीब , देश और सीमाओं से परे जा कर प्रकृति हमें समानता का सन्देश देना चाहती है. यह समय एकजुट होने का है, अपने परिवार को , अपने चाहने वालो को और इन सब से बढ़ कर अपने आपको नए सिरे से खोजना ही शायद इस युद्ध का सत्य है.