कोरोना, कितना है डरना?

कोरोना, कितना है डरना?

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यदा यदा ही धर्मस्य, ग्लानिर्भवति भारत:

अभ्युत्थानम अधर्मस्य: 

तदात्मानम सृजंयाहम।


भगवत गीता की उक्त पंक्तिया आज के परिपेक्ष्य में कैसी साकार होती दिख रही हैं ।1980 का दशक याद है? पश्चिमी विश्व की उच्छृंकलता को एड्स नाम की बीमारी ने जैसे दण्डित सा किया था। महामारियाँ हों या युद्ध, भूकंप हो या ज्वालामुखी, प्रकृति समय समय पर मानव को अपनी शक्ति का परिचय कराती रही है। इतिहास में रूचि रखने वालो को तो याद ही होगा कैसे प्लेग और हैजे जैसी महामारी लाखों जीवन हरने के लिए कुख्यात रही है । ज्यादा दूर न जाते हुए, हाल की ही बात करें तो 2009 में अल कायदा का एक पूरा का पूरा गुट जैविक हथियार बनाते बनाते खुद प्लेग का शिकार हो गया था।


संभवतः आज की पीढ़ी को अहसास करने के लिए ही इक्कीसवी शताब्दी का तीसरा दशक मानव सभ्यता के लिए बड़ी चुनौती ले कर आया है। कोरोना वाइरस कोई नया नहीं है लेकिन 2019 के आखिरी महीनो में इसका एक बिगडे स्वरुप COVID 19 ने सम्पूर्ण विश्व को जैसे घुटनो पर ला दिया है। बड़ी बड़ी महाशक्तियां आज इसके आगे नतमस्तक है। किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि निहायत ही छोटा सा एक वायरस विश्व शक्तियों को अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं की तालेबंदी, शेयर बाजार में हड़कंप, मंदिर मस्जिद, गुरूद्वारे और चर्च के दरवाजे बंद करने जैसे कदम उठाने पर बाध्य कर देगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन को आमजन शायद ही इतने कभी पहचानते हों लेकिन आज इसके डायरेक्टर जनरल डॉ। टेड्रोस का नाम हर टीवी एंकर की जुबान पर है।


तो हमें किस हद तक संभल कर रहना होगा? क्या सरकारों द्वारा लिए गए कठोर कदम सिर्फ तानाशाही दिखने के लिए है? हम क्या सिर्फ यह सोच कर आत्मसंतुष्ट हो जाएं कि यह तो सिर्फ चीन या इटली या किसी बाहर से हुवे यात्री की समस्या है ? 


आज कोई भी समाचार पत्र या टीवी चॅनेल इन प्रश्नो के आसान और डराने वाले उत्तर दे देगा। जानकारियां भरपूर है लेकिन जरूरत है समझ की, अपने व्यव्हार और मानसिकता में परिवर्तन लाने की, प्रकृति का सम्मान करने की। आपने पढ़ा होगा कि कोरोना वायरस से पीड़ित एक इटली रिटर्न नवविवाहिता स्वास्थ्य अधिकारियो को धता बता कर आइसोलेशन वार्ड से फरार हो गयी और विभिन्न मार्गो से यात्रा करते हुवे बंगलोर से आगरा पहुँच गयी, कल्पना ही कर सकते हैं कि कितनी जगहों पर और कितने स्वस्थ्य व्यक्तियों पर उसने वायरस का प्रसार कर दिया होगा। इस तरह की मानसिकता वालों को कोरोनावायरस इन्फेक्शन साधारण सर्दी जुकाम सी घटना लगे लेकिन तथ्य है की COVID 19 कोई आम वायरस नहीं बल्कि तेजी से फैलने की खासियत रखने वाला और कम समय में फेफड़ो में धंसते हुवे एक साधारण सर्दी जुकाम को बहुत तेजी से निमोनिया सी गंभीर स्थिति पर पहुंचाने वाली क्षमता रखता है।


दलील है की इस वायरस से मृत्यु होने का खतरा बहुत थोड़ा है और अधिकतर संक्रमित व्यक्ति मामूली सर्दी खासी के बाद ठीक हो जाएंगे, सिर्फ बूढ़े या बीमार लोगो को ही ज्यादह खतरा है लेकिन न भूलें कि कुछ संक्रमित चाहे किसी भी उम्र के हो, निमोनिया की वजह से ऑक्सीजन या वेंटीलेटर की आवश्यकता पड़ सकती है और उसी स्थिति में मौत का खतरा भी हो सकता है।


कल्पना करें कि किसी क्षेत्र या देश में एक बड़ी आबादी को वाइरस का हमला हो जाता है, संक्रमितों में से कुछ हजार मरीजों को एकदम से वेंटीलेटर की जरूरत पड़ती है, लेकिन वेंटीलेटर मशीने सीमीत संख्या में ही उपलब्ध है, इस प्रकार की युद्ध जैसी स्थिति बनने पर किसी मरीज के ठीक होने या परास्त होने का निर्णय तो शायद प्रकृति द्वारा ही होगा लेकिन किसे इलाज मिले और किसे नहीं इसका निर्णय तो अस्पताल, या डॉक्टर द्वारा ही किया जाएगा। कई मरीज जो शायद ठीक होने की सम्भावना रखते हैं , सिर्फ वेंटीलेटर न उपलब्ध होने पर काल कवलित हो सकते हैं ।चलिए जैसे चीन ने एक हफ्ते से भी काम समय में अति आधुनिक और टेक्नोलॉजी से सुसज्जित हॉस्पिटल बना लिया वैसे ही औद्योगिक इकाइयां युद्ध स्तर पर वेंटिलेटर्स की पूर्ति कर देगी। लेकिन आपने अस्पताल या मशीन बना भी लें तो उनको चलने के लिए डॉक्टर, नर्सेज या हेल्थ वर्कर्स रातो रात तैयार नहीं हो सकते। जो डॉक्टर या नर्सेज उपलब्ध हैं वो भी अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार ही उतने घंटे काम कर पाएंगे। अर्थात महामारी के बढ़ने से कई लोग इलाज से वंचित रह जाएंगे।


सुनना भयावह लगता है? लेकिन । कोरोना से डरने नहीं बल्कि सतर्क रहने की जरूरत है। कुछ सावधानियों के साथ हम अपने आपको सुरक्षित रख सकते है। सिर्फ अपनी आदतों पर कुछ काबू पाना होगा, अपने व्यव्हार में परिवर्तन करने होंगे।


मुख्या संकेत शब्द है - हैंड हाइजीन, हैंड हाइजीन और हैंड हाइजीन। नियमित रूप से हाथों को सेनिटाइज़ करते रहे, नाक और आँख पर हाथ या ऊँगली लगाने से पहले तो जरूर अच्छे से हाथ धोये। सामाजिक जमाव से बचे, कुछ हफ्तों के लिए सिनेमा हालो से, भीड़ भाड़ वाली ऑडिटोरियम से, यात्राओं से परहेज करे। स्वास्थ्य मंत्रालयों द्वारा जारी निर्देशों का पालन करे, ये सरकारी निर्णय विशेषज्ञों द्वारा शोध पत्रों के आधार पर लिए गए हैं , इन पर विश्वास करें और अगर आप संक्रमित हैं तो क्वारंटाइन नियमो का पालन करें। स्वस्थ व्यक्तियों को मास्क या सुरक्षा वस्त्र पहनने की आवश्यकता नहीं है।


हम सब मिल कर इस महामारी पर विजय पा सकते हैं । इस संकट की घडी में हम सबको एक साथ होना अति आवश्यक है।


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