Prafulla Kumar Tripathi

Drama

5.0  

Prafulla Kumar Tripathi

Drama

यहाँ कौन है तेरा !

यहाँ कौन है तेरा !

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इश्क़ को इक उम्र चाहिए होती है और उम्र का कोई ऐतबार नहीं ! उम्र के सबसे हसीं जवानी के पड़़ाव पर पहुँच चुके अनिल बाबू ने जब शादी करनी चाहिए तब शादी नहीं की और अब मध्यान्ह कहलाने वाली उम्र में उन्हें इश्क मिजाजी सूझ गई। जब कोई उनसे इस बारे में पूछा करे तो वे शायराना अंदाज़ में बोल बैठते थे -

" जिस्म की बात नही बात थी किसी के दिल तक जाना,

अरे मियां लम्बी दूरी तय करने में वक्त लगा करता है ! "

अब यह वक्त उन्होंने इतना लगा दिया कि शहनाई की आवाज़ सुनने को उनके पिता के कान नहीं रह गए यानी कि वे उंचा सुने लगे और माँ माँ तो कब की भगवान जी के यहाँ चली गईं।

सरयूपारीण ब्राम्हणों में कुलश्रेष्ठ गिने जाने वाले शुक्ल वंशज में पैदा हुए थे अनिल। माँ - बाप की ही नहीं बल्कि अपनी दो-तीन पीढ़ियों के बाद की पहली पुरुष संतान थे वे। जब वे पैदा हुए थे तो पूरे गाँव में लड़्ड़ू बांटे गए थे। उनके लालन - पालन में खिन कोई चूक नहीं होने दिया था उनके पिता पंड़ित बसेश्वर शुक्ला ने। वे गाँव के ज़मींदार रह चुके थे और अब भी दबंगई बनाए रखने के लिए हर साल जिला पंचायत के सदस्य बना करते थे। अठारह एकड़ की बहुत ही बढ़िया खेती बारी थी और उनकी शस्य श्यामल खेती पूरे जवार में मशहूर थी। बासमती चावल और सोनालिका गेहूँ का अम्बार लगा करता था। अरहर और मटर भी भरपूर हुआ करती थी। गाँव की पढ़ाई जैसे तैसे तो अनिल बाबू ने पूरी कर ली अब उनके आगे की पढाई अच्छे स्कूल में होनी थी। किस्सी ने सुझाव दिया कि नैनीताल के बिड़ला विद्या मंदिर में हास्टल भी ठीक है उन्हें वहीँ दाखिल कराना ठीक रहेगा। बसेश्वर बाबू ने अपने एक रिश्तेदार को यह काम सौंपा।

अनिल अब बिड़ला विद्या मंदिर नैनीताल के स्टूड़ेंट थे। हास्टल में पहला दिन तो अजीब सा लगा। सब कुछ उनके गाँव से अलग थलग। लोगों की भीड़ में अनिल भी एक आम लड़का बनकर रह गए थे। ज्यादातर संगी साथियों की पृष्ठभूमि शहरी थी इसलिए इनको मिक्स अप होने में भी समय लग रहा था। कहने को तो रैगिंग नहीं थी लेकिन सीनियर्स ने एक दिन इतना तंग किया किया कि वे भाग जाने को उतारू हो गए। उनके रूम के सुशील ने उन्हें समझाया कि मिक्स अप होने के लिए ये सब भी तो जरुरी हुआ करता है।

इंटर का इक्जाम देकर जब अनिल घर आये तो लोगों को उनमें बहुत ही परिवर्तन देखने को मिला। गाँव के संगी साथी लगभग पढाई छोड़ चुके थे और छोटे मोटे कामकाज में उलझ गए थे। स्थिति अब यह हो चली थी की एक दो दिन गाँव में रहने के बाद अनिल को यह गाँव ही अब अच्छा नहीं लग रहा था। माँ बाप चाहते थे कि अपने लाड़ले को हर तरह के व्यंजन खिलाएं और खुश रखें लेकिन अनिल को अब दूसरी दिनचर्या भा गई थी। कभी कभार चाय पीने वाला अनिल अब चायखोर हो चला था। उठने के बाद सबसे पहले उसे चाय चाहिए होती थी। नीम की दातून को वह गुड़बाय कर चूका था। लोटा लेकर ब्रश मंजन करने में या नहानी में भी उसे दिक्कतें आने लगी थीं।

उसे अपने हास्टल की याद सताने लगी।

"बाबू जी,मुझे अब जल्दी ही वापस नैनीताल जाना है। वहां मैंने इंजीनियरिंग कम्पीटीशन के लिए कोचिंग की बात कर रखी है|मैं आज अपना रिजर्वेशन देख लूँ ? " अनिल ने अपने बाबूजी से कहा।

" अरे,बेटा !अभी अभी तो तुम आए हो और इतनी जल्दी भी क्या है। कम से कम एकाध हफ्ते रहकर जाना। " उनके बाबूजी बोले।

"नहीं बाबू जी कैरियर की बात है| आजकल कम्पीटीशन बहुँत ही टफ हो गए हैं|मेरिट बहुत हाई जा रहा है। मुझे जाना ही होगा। "अनिल ने उत्तर दिया।

अनिल का रिजर्वेशन हो गया था और वह छुट्टियों में ही वापस अपने स्कूल आ गया और वहां कोटा से आये लोगों द्वारा चालाई जा रही समर कोचिंग क्लासेज ज्वाइन कर ली। सचमुच अब वह बीएस,सीनहीं करना चाहता था। उसने प्राणप्रण कर लिया की पहले अटेम्प्ट में ही मुझे यह कम्पीटीशन हर हाल में क्वालीफाई कर लेना है|

अभी उसका इंटर का रिजल्ट आया ही था कि इंजीनियरिंग का इग्जाम आ गया। लखनऊ सेंटर था। वह इक्जाम के दो दिन पहले ही लखनऊ आ गया। नियत दिन उसने इक्जाम दे दिया और वापस नैनीताल फाइनल पैक -अप के लिए चला गया। इंजीनियरिंग के पेपर अच्छे हुए थे और अनिल को पूरा भरोसा था कि वह मेरिट में आ जाएगा और उसे अच्छा कालेज मिलेगा। लेकिन यह रिजल्ट आने में अभी देर थी। अनिल ने सोचा क्यों ना तब तक दिल्ली में ही रहकर और कम्पीटीशन की तैयारी की जाय। उसने बाबूजी को भी सहमत कर लिया था कि अचानक एक रात उसकी माँ को हार्ट अटैक पड़ गया। लाड़ फंड़ कर उन्हें शहर के एक बड़़े अस्पताल में दाखिल किया गया लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका। अनिल के लिए यह विकट दिन थे। अब उसे रुकना था कम से माँ के क्रिया कर्म तक तो रुकना ही था।

28 अगस्त 2008 को उसकी मां का क्रिया कर्म सम्पन्न हो गया और सभी नात- बात एक - एक कर जाने लगे थे। बहुत साहस दिखा कर उसने अपने जाने के बारे में भी बाबूजी से बात की तो उन्होंने अनिच्छा से अनुमति दे दी।

दिल्ली वह यू तो कई बार आ चुका था लेकिन कुछ दिन रहकर काम्पीटीशन की तैयारी करने की नीयत से पहली बार आया था। कहाँ उसका गान शुकुलपुरा,कहाँ उसके स्कूल का शहर नैनीताल और अब कहाँ इतनी बड़ी दिल्ली। उसने किसी तरह शेयरिंग में मुखर्जी नगर में एक कमरा किराए पर ले लिया। उसकी कोचिंग भी तीन -चार दिन में शुरू हो गई। कोचिंग में लड़के कम और लड़कियां ज्यादा थीं। बरेली की एक लड़की शमा अनिल को पसंद आ गई लेकिन कुछ ही दिन के परिचय के बाद पता चला की वह कट्टर मुस्लिम समुदाय की है। आगे चल कर शमा ने बताया कि उसमें हिन्दू और मुस्लिम दोनों संस्कार पले बढे हैं क्योंकि उसकी माँ हिन्दू थी लेकिन पिता मुस्लिम थे। उन दोनों ने सारी दीवारें तोड़कर अपने प्यार को एक क्रांतिकारी शादी में तब्दील कर दिया था और वे आपस में बेहद खुश भी थे। उनकी यह सोच थी कि अब यह जाति-पाति,ऊंच-नीच आदि सारे बन्धन एक- एक कर टूटेंगे और उनकी आने वाली संतानों के लिए घर गृहस्थी बसाने में कोई दिक्कत नहीं होगी। समाज बदल रहा था लेकिन उनकी सोच के मुताबिक़ नहीं। उधर शमा अनिल को बुरी तरह चाहने लगी थी।

अनिल अजीब दोराहे पर खड़ा था। गनीमत यह थी कि दोनों के बीच यह अंड़रस्टैंड़िंग ड़ेवेलप हो गई थी कि अगर उनका अफेयर सादी के मुकाम तक नहीं पहुँच पाया तो वे आजीवन विवाह तो नहीं ही करेंगे और इंटर कास्ट मैरेज ही नहीं लिविंग रिलेशनशिप के नवीनतम तरीके से समाज को आइना ज़रूर दिखा देंगे। यह प्रतिज्ञा लेना तो आसान था लेकिन निभाना शायद नामुमकिन।

बात आगे बढे की उसके पहले सितम्बर में अनिल का सेलेक्शन आईआईटीमुम्बई में हो गया। दिल्ली से उसका ड़ेरा ड़म्पर उठ चला और माया नगरी में अनिल स्थापित हो गया। शमा से फोन पर सम्पर्क होता रहा लेकिन इंजीनियरिंग की पढाई इतनी कमरतोड़ थी कि अनिल चाहते हुए भी शमा से ज्यादा बातें नहीं कर पाता। ठंढ के दिन मुम्बई में कुछ ख़ास मालुम नहीं होते। एक हलके स्वेटर से काम चल जाता है। हाँ बारिश ने अनिल को तंग कर रखा था और सड़कों पर जल जमाव से तो और भी दिक्कतें हुआ करती थीं। दिसंबर के पहले हफ्ते में अचानक अनिल के पास शमा का फोन आया और उसने बताया की उसके निकाह की बातें पक्की हो चली है। मम्मी तो उसके फेवर में हैं लेकिन अब्बा जल्लाद बने बैठे हैं। अनिल को बहुत गुस्सा आया। वह अभी इस योग्य नहीं था कि शमा को लेकर कहीं भाग जाय। उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था और उसने सहमते हुए शमा को अपनी मजबूरी बताई और किसी तरह यह शादी टालने के लिए कहा। शमा की सिसकियाँ साफ साफ फोन पर सुनाई दे रही थी।

कभी कभी यह काल जो है ना वह बहुत क्रूर हो उठता है। इन दिनों में अनिल और शमा बेबस दुखी और लाचार थे और उन्हें अपनी अपनी प्रतिज्ञा भी याद आ रही थी| प्रतिज्ञा ही नहीं,भीष्म प्रतिज्ञा याद आ रही थी " अगर हम अपना अफेयर शादी के मुकाम तक नहीं पहुंचा पाए तो आजीवन विवाह नहीं करेंगे और इंटर कास्ट की कौन कहे लिविंग रिलेशनशिप के नवीनतम तरीके से समाज को आइना ज़रूर दिखा देंगे। "लेकिन वे करें तो क्या और कैसे ?

अंततः काल ने इन दो प्रेमियों को नहीं ही मिलने दिया शमा अपने परवाने से दूर बहुत दूर सऊदी चली गई। एक अमीर शेख उसे ब्याह कर ले गया।

अनिल ने टूटे दिल को संभालते हुए जैसे तैसे अपने शेष सेमेस्टर की पढाई पूरी की। वह अब गाँव भी लगभग नहीं के बराबर जाता था। फोन पर उसके बाबूजी रोते गिड़गिड़ाते कि वह जल्दी से शादी कर ले ताकि घर में कोई लक्ष्मी आ जाय दो जून की कायदे से रोटी का इन्तेजाम हो सके लेकिन उधर अनिल भी अपनी पढाई और फिर नौकरी में ही उलझा रहा। उसके दिल से शमा एक पल को भी नहीं बुझ पा रही थी। अनिल इस समय रांची की एक फैक्ट्री में चीफ इंजीनियर होकर आ गया था|

अपनी उत्कृष्ट कार्यशैली और ईमानदारी से उसने बहुत जल्दी की प्रमोशन भी पा लिया। वह अब कम्पनी का ड़ाइरेक्टर था। एक दिन जब वह अपने चेंबर में बैठा था तो कोई नामी गिरामी ज्योतिषी उसके पास चंदा माँगने आये। उसने उनका बहुत ही सत्कार किया और बदले में ज्योतिषी जी ने उसका हाथ देखने का ग्रह किया। ना नुकुर के स्वाभाविक क्रम के बाद अनिल ने अपना हाथ उनके सामने फैला दिया।

"अनिल जी आपके हाथ की रेखाएं बता रही हैं कि अभी आपको और भी मंजिलें तय करनी हैं। लेकिन एक रेखा में आपकी कुछ निजी परिस्थितियों का दृश्य प्रकट हो रहा है यदि अनुमति हो तो बताएं ? " ज्योतिषी महोदय ने कहा।

" पंड़ित जी अवश्य बताइये। " अनिल बोल पड़े।

"आपका वैवाहिक जीवन न तो शुरू हुआ है और ना ही अब हो पायेगा। ऐसा इसलिये क्योंकि इसमें आपके जीवन के लिए खतरा है। हाथ की रेखाएं बताती हैं कि अगर आपका विवाह हो भी गया तो वह सफल नहीं होगा और दाम्पत्य जीवन की त्रासदी आपके लिए मर्मान्तक पीड़ादायक भी होगी। " एक सांस में पंड़ित जी बिना कुछ सोचे समझे बोल उठे।

कुछ क्षणों के स्तब्ध कारी मौन के बाद अनिल ने पूछा -" पंड़ित जी ऐसे में फिर मेरे लिए आपका सुझाव ? "

' बेटा, आप दुनियाँ देख सुन रहे हो। अक्सर लोग सोलमेट शब्द को शादी या शारीरिक सम्बन्ध से जानते हैं। जबकि सच यह नहीं है। शादी मन और शरीर के मिलन की गारंटी नहीं होती है। और दो आत्माओं की तो कतई नहीं। हाँ, शादी,संतानोत्पत्ति का माध्यम अवश्य है। मनुष्य के अन्दर प्रेम की धारा का अनंत स्रोत है जिस पर अधिकार सिर्फ सीमित लोगों का नहीं हो सकता है। जिससे शरीर, मन और आपकी आत्मा भी जुड़ सके वही तत्व या व्यक्ति आपका सोलमेट हो सकता है। भगवान श्रीकृष्ण और राधा को देखिये जिन श्रीकृष्ण ने दुनिया को प्रेम करना सिखाया उन्होंने श्री राधा जी को आपना गुरु माना क्योंकि प्रेम करना उन्होंने राधा से सीखा है राधा ही क्यों,, मीरा ने भी तो अपना सर्वस्व श्री कृष्ण को समर्पित कर दिया था जानते हो क्यों आत्मा से जुड़ने के लिए जो किस्सी भी मनुष्य के लिए किसी को पाने की चरम स्थिति होती है और उससे आगे कोई सीमा नहीं। अब यह तुम्हें तय करना है की तुम अधूरा जीवन जियोगे या पूरा। " पंड़ित जी ने अनिल को राह दिखा दी थी। अनिल को अपनी भीष्म प्रतिज्ञा भी याद आ गई और उसने तय कर लिया कि अब वह जीवन का शेष समय सोल अर्थात आत्मा से मित्रता में बिताएगा !

पंड़ित जी अनिल को सोचने समझने की भूल भुलैया में ड़ालकर जा चुके थे और उसने यूट्यूब पर अपने चुने हुए गानों में से एस ड़ीबर्एमन दा का एक गाना सुनना शुरू कर दिया था- " यहाँ कौन है तेरा, मुसाफिर जाना है कहाँ !


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