ये रिश्ता क्या कहलाता है !
ये रिश्ता क्या कहलाता है !


-" मम्मा, बताओ ना ! कौन सी राखी लूं भइयू के लिए?"
-" अरे बेटा, इतना क्या सोच रही हो ! एक धागा ही तो बाँधना है..कोई सी भी ले लो ।"
-" धागा ही तो बाँधना है, इसका क्या मतलब?? सबसे अच्छी वाली राखी लूंगी मैं, अपने भइयू के लिए।"
-" अच्छा तो जल्दी पसंद करो बेटा..बहुत देर हो गयी है। "
-" उम्म्म...अंकल, ये सॉफ्ट टॉय कार्टून राखी कितने की है?"
-" बेटा, ये तो सिंगल पीस में अवेलेबल नहीं है। एक दर्जन का सेट आता है इसमें, और यह महँगी भी है।"
-" एक दर्जन !! इतनी राखी लेकर मैं क्या करूंगी?? मुझे तो बस एक ही राखी चाहिए, महँगी हो तो कोई बात नहीं, चलेगा ।"
-" तो बेटा, कोई दूसरी राखी देख लो..ये तो नहीं मिल पाएगी। "
" नहीं, मुझे तो यही चाहिए बस !"- वह भी ज़िद पर अड़ गयी।
" दे दो ना अंकल प्लीज....मुझे बस यही राखी लेनी है ! लेनी है, मतलब लेनी ही है....अंकल प्लीज्ज्ज....."
हार कर आखिरकार शॉपकीपर ने वह राखी दे ही दी। बहुत खुश हो गयी वो, सबसे क्यूट राखी जो मिल गयी थी अपने प्यारे भइयू के लिए !
रक्षाबंधन के दिन अच्छे से तैयार हुई वो..दोनों भाइयों की कलाई पर बारी-बारी से मोत
ियों की चमकती और चंदन से महकती राखी बांधी, मनचाहा गिफ्ट लिया और फिर बाहर भागी अपने भइयू को भी राखी बाँधने। उसका भइयू बाहर पोर्च में खड़ा था, उसने तिलक किया और बड़े ही प्यार से अपने द्वारा खरीदी हुई वो स्पेशल राखी बाँध दी ।
अगले दिन पापा बाज़ार गये, भइयू के साथ...वापस आये तो सामान अंदर ले जाने के लिए उसे आवाज़ लगायी।
वो बाहर आयी तो देखा, भइयू की राखी ग़ायब !!
" अरे मैंने कल बाँधी थी, वो राखी कहाँ गयी??"- वह चिल्लायी ।
-" ओ हाँ...राखी तो बँधी हुई नहीं है !"
" पापा, आपने ध्यान नहीं रखा था क्या?? भइयू की राखी रास्ते में गिरा दी !"- वह रूआंसी हो गई।
-" नहीं बेटा, रास्ते में तो कहीं नहीं गिरी...सामान खरीदा तब तक तो बँधी हुई ही थी। लेकिन वापस आते समय मैं एक जगह बस दो मिनट हरा धनिया लेने रूका था, शायद तभी किसी ने राखी खोल ली होगी।"
" कितने प्यार से खरीदी थी वो सुंदर राखी...पता नहीं कौन बदमाश चोरी से खोल के ले गया !!"- वह उदास बैठी सोच रही थी..उधर पापा का स्कूटर जिसे वो प्यार से 'भइयू' बोलती थी, सारी घटना से बेख़बर, मज़े से पोर्च में खड़ा था, हमेशा की तरह !!