यादगार होली
यादगार होली
होली का दिन था। मोहन के सभी मित्र होली के लिए बुला रहे थे, पर मोहन था की बहार ही नहीं आ रहा था। मम्मी ने भी समझाया की उसे बाहर जाना चाहिए पर वह तस से मस ना हुआ। मोहन की नानी भी होली मनाने के लिए उनके घर आई थी। मोहन को इसे बार होली ना खेलते देखे, उसकी नानी ने उससे पूछा - क्या हुआ मोहन तुम होली क्यों नहीं खेल रहे हो, तुम्हें तो होली का त्यौहर बहुत पसंद है।
मोहन अपनी नानी से बहुत प्यार करता था, इसलिय नानी के पूछने पर उसे उतर दिया की - मैंने अपना विज्ञान की कक्षा में पढ़ा था की पृथ्वी पर बहुत सारा जल है, पर सभी पीने योगी नहीं है। जब हम होली खेलते हैं तो बहुत सारा जल अर्थ में गावा देते हैं। इसके अलावा रंगो में भी कई प्रकर के केमिकल मिलाये जाते हैं जिससे हमारा पर्यावरण प्रदुषित होता है। मोहन की बातो को सुंकर नानी ने मुस्कुराते हुए कहा - हम साथ मिल्कर इस्का समाधान कर सकते हैं। नानी की बात सुंकर मोहन ने उत्साहित होकर कहा - हम सुखे रंगो से होली खेलकर पानी बचा सकते हैं, पर हम पर्यावरण को प्रदुषित होने से कैसे बचाए? तब नानी ने कहा की हम घर पर ही रंगो को बनार पर्यावरण को प्रदुषित होने से बचा सकता है। मोहन ने नंगे में अपने मित्रों को बताया.वे भी मोहन के विचार से सहमत थे। उन सभी ने दूधर घर पर ही रंगो को बनार, उन्ही रंगो से होली खेली। इससे उन्होन जल और पर्यावरण को प्रदुषित होने से बचा लिया। या होली उनकी यादगार होली थी। पर्यावरण
