यादें
यादें
मुझे अभी भी याद है कि मैं उस पल से पहले क्या हुआ करता था और उस पल के बाद क्या हूं। वो पल जब मेरी आंखों को एक ऐसा शख्स दिखा जिसने पहली नजर में ही मुझपर एक जादू सा कर दिया।
मुझे याद है जब मैं semester 2 की classes में पीछे बैठा करता था और वो थोड़ा सा आगे।
मै ये दिखाने की कोशिश करता की मैं पढ़ रहा हूं और हां मैं पढ़ भी रहा होता था।
पर मेरी ये आंखें उस एक छोटे से मौके के इंतजार में रहती जब मैं बस एक पल के लिए उसे देख पाऊं और ऐसा करते कोई मुझे पकड़ न ले।
क्लास खत्म होने से पहले प्रोफेसर जब attendence ले रहा होते तो मैं बस उस "Present" ki मधुर आवाज का इंतजार कर रहा होता। वो शायद मेरी जिंदगी में सुना गया अभी तक का सबसे मीठा "Present" था।
और वो मेरे लिए किसी "present" से कम नहीं होता।
मेरे कानो को एक ऐसा सुकून दे जाता की मेरा बचा हुआ दिन अच्छे से गुजरता।
शायद मै थोड़ा सा ज्यादा ही बढ़ा चढ़ा कर बता रहा हूं पर ये पूरे तरीके से झूठ भी नहीं है।
जब क्लास खत्म होती तो मैं वहा से गुजरने की कोशिश करता जहां उसकी वो हीरो की साइकल खड़ी रहती थी।
मै इस उम्मीद में रहता की कुदरत में कुछ ऐसा अपने आप हो जाएगा कि मेरी उससे कोई बात होगी।
जैसे कि वो मुझे साइकल से टक्कर मार देगी और फिर मुझसे माफी मांगेगी, और मैं उसे एक ही बार में माफ भी कर दूंगा, या मुझसे नोट्स मांग लेगी और मैं अपनी सभी नोट्स उसे दे दूंगा ।
एक बार मेरे ख्वाब में कुछ ऐसा हुआ।
उस दिन अचानक से बारिश शुरू हो गई ।
मैं सोच में था, की ये मौसम को सुहाना बनाने का श्रेय भला ये बारिश और बादल क्यों ले जाते हैं, जबकि मौसम तो उसकी वजह से सुहाना होता है, कम से कम मेरे लिए तो।
मैने खिड़की से नीचे देखा तो, वो अपने उन्ही कपड़ों में, जिनमे मैने उसे पहली बार देखा था, उनमें खड़ी थी।
वो एक पेड़ के नीचे खुद को पानी से बचाए खड़ी थी, और मेरे पास था एक छाता। जानता हूं वो मुझसे छाता नही मांगेगी, और मैं भी देने की कोशिश नही करूंगा।
पर मैं उसके नजदीक गया और कहा "ये छाता तुम इस्तेमाल कर लो, मेरे पास एक और है"।
उसने उसे ले लिया, और एक छोटी सी मुस्कुराहट के साथ अपने रास्ते पर निकल गई।
उसके निकलते ही पेड़ पर से एक फल मेरे सिर पर बहुत जोर से लगा, शायद मैने उसे भेज दिया, इसलिए ये पेड़ का तरीका था अपना क्रोध दिखाने का।
खैर मैं इस पेड़ की भावनाओ को समझ सकता था, क्यू उसके जाने के बाद मुझे भी ठीक वैसा ही महसूस हुआ करता। और शायद ये पेड़ भी मुझे समझता होगा।
लेकिन मैं भीगता हुआ पर अंदर से भरपूर खुशी के साथ अपने रास्ते पर चलता गया।
एक आखरी बार उसको मुड़कर देखा, तभी उसने भी मुड़कर देखा, और मुझे भीगता हुआ देखकर, उसे कैसा लगा होगा ये बताना मुश्किल है।
वैसे आप कुछ भी समझ सकते हैं, क्योंकि ये सब मेरे ख्वाबों में हो रहा था ।
ऐसे ख्वाब तो मैने बहुत बुने हैं और हर दिन बुनता हूं पर ये हकीकत में सिर्फ फिल्मों में ही होता है।
वो कभी दिखती तो मै आधे रास्ते उसकी तरफ बढ़ता लेकिन ये कदम फिर खुद ही अपनी दिशा मोड़ लेते ।
पता नहीं क्यों पर मुझे ऐसा लगता कि मैं उसके जीवन में दखल अंदाजी तो नहीं कर रहा हूं ।
मुझे याद है कि दूसरे सेमेस्टर में मैं नोट्स बनाने लगा, ज्यादा पढ़ने लगा, क्लास के ग्रुप पर कोई सवाल आता तो मेरी कोशिश रहती की मैं सबसे पहले उस हल करके ग्रुप पर डाल दू, और ये सब सिर्फ इसीलिए कि उसकी नजरों में आ सकूं।
ऐसा करने का फायदा तो जरूर हुआ था, मिड sem exam से पहले जब उसका मैसेज आया । उसने मुझसे "Mineral Processing" के नोट्स मांगे थे, शुरू के 2- 3 मिनट तक तो मैं मानो मेरी खुशी की कोई सीमा नहीं थी ।
वो पूरा हफ्ता मै बस उस बात को ही सोचकर खुश होता रहा।
और फिर end sem में भी उसने मुझसे पढ़ाई से जुड़ा कुछ पूछा तो मैंने उसे बता दिया था, और 2-3 subjects में नोट्स भेज दिए, सवाल हल करके भेज दिए, जितना मै कर सकता था।
कुछ सवाल इतने सरल होते कि जिनको कागज़ पर हल करके, उसकी pdf बनाना सिर्फ समय की बरबादी कहा जा सकता है।
पर मै ये अपने लिए थोड़े ही न कर रहा था, ये तो कोई मुझसे बिना कहे करवा रहा था।
और उसकी तरफ से जब वो Thank you आता तो लगता कि जैसे……
वो बस महसूस किया जा सकता है, उसे शब्दों में बताना कुछ कठिन है।
चलो आपको एक किस्सा सुनाता हूं, ये 11 मार्च 2024 की बात है जब मैं पीछे से दूसरे नम्बर की सीट पर बैठा था।
और मैने देखा कि उसकी वो मित्र जो हमेशा उसके साथ बैठा करती थी, आज नहीं आई थी, और वो उस दिन अकेले ही बैठी थी।
तो मेरे मित्रो ने मुझे वहा जाकर बैठने को कहा, तो मैने सीधा ही मना कर दिया।
जब वो पास होती तो मै उसकी तरफ देख भी नहीं पाता हूं भला मैं उसके पास जाकर कैसे बैठ जाता, इतनी हिम्मत नहीं थी मुझमें। ये मेरे लिए कुछ असंभव सा कार्य था।
पर उस पूरी पहली क्लास में उन्होंने मुझे यही कहा कि बैठ जाओ, कुछ नहीं होगा।
और जब अगली क्लास शुरू हुई तो मैं भी पता नहीं कैसे अपने आप उठकर उसके पास बैठेने के लिए उठ खड़ा हुआ। मुझे आज भी विश्वास नहीं होता कि मैने वो कैसे किया था।
मै सीट पर पहुंचा तो एक धीमी सी आवाज में पूछा कि
"मैं बैठ जाऊ ?" उसने धीरे से बोला "हां।"
और वो थोड़ा उधर हो गई ताकि मेरे लिए जगह बन जाए।
फिर क्लास शुरू हुई।
मैं इतना डरा हुआ सा था कि उसकी तरफ देख भी नहीं पा रहा था, पर हिम्मत करके मैने उससे कुछ बात करने की कोशिश की, मैने उससे समय पूछा।
उसने नहीं सुना शायद मैं बहुत धीरे बोल रहा था, मैने दोबारा पूछा तो जवाब आया - 4:25।
तभी प्रोफेसर ने एक सवाल दिया, जो कि उसने मुझसे पूछने की कोशिश की, मैने भी कुछ कुछ बताने का प्रयास भी किया।
फिर प्रोफेसर ने अटेंडेंस के लिए एक कागज़ पर सबको अपना अपना नाम लिखने को कहा। मैने भी अपना नाम लिख दिया। पर बाद में प्रोफेसर ने देखा तो पता चला कि मेरा नाम 3 बार लिखा गया है। इस बात पर सब हंसने लगे ।
पर जब मैने उसे भी हस्ते हुए देखा तो मेरे चेहरे पर भी रौनक आ गई थी।
और मैने मन ही मन में मेरा नाम लिखने वाले को धन्यवाद किया।
और फिर वो क्लास खत्म हो गई।
शायद उस दिन उसे कुछ तो अंदाजा हो गया होगा,
या शायद नहीं भी, कौन जानता है?

