Akanksha Gupta

Inspirational

4.5  

Akanksha Gupta

Inspirational

वर्दी वाली बेटी

वर्दी वाली बेटी

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“अरे ओ नीरू के पापा कहाँ चले गए सुबह सुबह?” अनुपमा ने घर के अंदर से आवाज लगाई लेकिन कोई जवाब नहीं आया।

“ये नीरू के पापा भी ना पता नहीं बिना बताए कहाँ निकल जाते हैं। अब एक आदमी खड़ा खड़ा चिल्लाता रहे।” अनुपमा की बड़बड़ शुरू हो गई थी।

“क्या हुआ मम्मी क्यों सुबह सुबह परेशान हो रही हो? गए होंगे यही कही, आ जाएंगे थोड़ी देर में।” आदित्य बाथरूम में से बाहर निकाल कर बोला

“परेशान ना हूँ तो और क्या करूँ, बता मुझे। इस उम्र में बिना बताये कही भी निकल पड़ते है। एक तो इनकी सेहत इस तरह की नहीं कि कहीं भी अकेले जा सके और ऊपर से जमाना भी कितना खराब है।” अनुपमा बड़बड़ाये जा रही थी।

“अरे पापा आपके लिए एक सरप्राइज लाने के लिए बाहर गए हैं।” जब आदित्य से अनुपमा का बड़बड़ाना सुना नही गया तो अनुपमा के गले में पीछे से हाथ डालते हुए कहा।

“सरप्राइज! कैसा सरप्राइज?” अनुपमा ने चौंकते हुए पूछा ही था कि तभी अरुण दरवाजे से अंदर आए।

थोड़ी देर तक और नहीं रुक सकते थे, मैं बस आने ही वाला था। अरुण ने चप्पल उतारते हुए कहा तो आदित्य ने अनुपमा को छोड़ अरुण के पास आते हुए कहा- “मुझसे रुका नही गया पापा और फिर मम्मी की एक्सप्रेस स्टार्ट हो गई थी।”

“तुम दोनों किस सरप्राइज की बात कर रहे हो?” अनुपमा ने दोनों को घूरते हुए पूछा तो अरुण ने आगे आकर एक अखबार उसके सामने रख दिया, जिसके मुखपृष्ठ पर एक खबर छपी थी- “आंतकवादी हमले में अदम्य साहस का परिचय देने वाली एनसीसी कैडेट निरुपमा अरुण को मरणोपरांत वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया जायेगा।”

खबर के साथ अपनी बेटी निरुपमा की छोटी सी फोटो देखकर अनुपमा की आंखे भर आई। कितना मन किया था उसे उस दिन घर से निकलने के लिए लेकिन उसने अनुपमा एक नहीं सुनी। अपनी वर्दी पहने हुए निरुपमा यह कहते हुए निकल गई कि इसके बिना उसे जिंदगी कुछ अधूरी सी लगती है!



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