वो सतरंगी पल
वो सतरंगी पल
जब से हमारी जिंदगी शुरू होती है तब से हम सब पलों को समेटने मैं लग जाते हैं। कुछ अच्छे और खुशनुमा और कुछ मन को कचोटने वाले,पर पल तो पल होते हैं। चाहे अच्छे हो या बुरे इन सब बातों से ही हमारी जिंदगी बनती है सतरंगी। इसी तरह
हमारी जिंदगी में यादों की एक किताब बनती रहती है।एक सतरंगी पल मुझे आज भी गुदगुदा जाती है।
मेरा घर उत्तराखंड में है और मैंने अपनी पढ़ाई नैनिताल से की है साथ मैं नौकरी भी करती थी एक शाम मैं आफिस से घर जा रही थी।
मुझे लगा आज मुझे पैदल ही घर की ओर चलना चाहिए
तो मैं निकल पड़ी पैदल रास्ते पे काफी मंदिर है तो मन अपने आप ही भक्ति मय हो जाता है
कुछ दूर जाने पर लगा कि कुछ कुत्ते के बच्चे कमरे में बंद गये है तालाब के किनारे पर जगह जगह पे कुछ कमरे
बने हैं।
उसके अंदर सं बच्चे बन्द हो पड़े वो बहुत कोशिश करने के बाद वो नहीं निकल पा रहे थे।
बार बार मां उनके पास जाती और निराश हो कर वापस आ जाती।
उन को देखकर मन में सिर्फ एक ही इच्छा हुई कुछ हो इन बच्चों को मां से मिला ही पड़ेगा वरना भूखे पेट और अपने मां के बिना उनका और मां का क्या होगा पता नहीं।
काफी देर कोशिशों के बाद मां बच्चों को मिलाने में मैं सफल रही।
मां बच्चों का ऐसा मिलन देेख कर मन आत्म विभोर हो
उठा।
आज उस बात को 10 साल हो चुके हैं।
जब भी मुझे वो पल याद आता है तो मन सतरंगी पल
मैं खो
सा जाता है। वो पल हमेशा मेरे दिल को एक सतरंगी पल दे जाता
है और एक सिख भी की इंसान हो या जानवर मौका मिले तो मदद का हाथ हमेशा बढ़ाना चाहिए।
बस यही पे अपने शब्दों को विराम देती हूं कुछ समय के लिए।