वो कुछ सुबह की रोशनी सी..१
वो कुछ सुबह की रोशनी सी..१
वो कुछ सुबह की रोशनी सी...!
"कुछ सुबह शाम ही भूल के भी हंस लेती हैं जिंदगी..
बड़ी खुशगवार ही सही लम्हे नाकारा से ही सही...
मिली भी तो एक ही जिंदगी ....... ,
पड़ाव न जाने कितने हैं..,
हर बार बहार आती जाती हैं.. ,
नया सा लगता हैं मन का पहरा..
एक ही थी वो ..जिन्दा लाश की तरह ..
मिलती जाती आस की तरह..
कितनी बार जीयेगी वो सास में है हामी भरकर किस किस की उम्मीद बनेगी वो .. ...!! लम्हे रेत की तरह फिसल जाती जिंदगी की डोर.. ! कितने बार संभाले वो गिरती मुस्कुराती, हँसी भी रुठ गयी एक दिन...... ,चली जाती थी वो भी किसी की राह बनकर हमराह की तरह..! टूट की चाह भी कभी जीकर भी अधूरी सी!.. क्यों जान ही बची यही पुकार लगाती.. !
एक समेटी बावरी सी जिंदगी भरी लाश..
मौत भी चाह करे ऐसी जिंदगी की ऐसा ही कुछ है नसीब ले के आना
ये लम्हे कर के फरियाद
फिर गुम हो जाती वो एक गुमसुम सी धून..
कुछ अनकही कही हैं जिंदगी... की धुन..
पलट रही बिखरी राहे भी चुभन काटो सी हैं लगी.!"
"शाम का वक्त फिर जली वो बात
दिन भर झुलस रही थी जो आग
शाम की दिये मे बूझा दी जो आस"
कहके कुछ ऐसी ही अज वो फिर से दिन बाती बन गयी!.. कितनी बाते थी जहन में समायी वो जलती राख की आंधी थी जो, झुलस रही !..
किसको मिलती हैं ऐसी बेपनाह मोहब्बत जिंदगी की, खुशनसीब हैं वो के मौत भी नसीब नहीं होती! ..
सांझ ढलती वक्त में रमा कुछ पल जिंदगी की गुजरे वक्त को फिर से मुलाकात कर रही थी ! मानो पुछ रही हो ...
"क्या तुम्हें मैं इतनी भा गयी की हर तरफ से सिर्फ हमें ही अजमा रही हो !.. जीने का जशन कम और मौत पे आंसू ज्यादा बहाये हैं !.. फिर भी जिन्दा रहने की वजह पुछती हो ?.. बड़ी बेगैरत हो तुम जिंदगी मुझसे मेरे होने की वजह पुछती हो?.. यही कहा होता की जिन्दा ही क्यों हो मर क्यों नहीं जाती .. ??... "
मौत से बत्तर जीया हैं जिंदगी को फिर भी प्यार से संभल कर जीया हैं। इसे.. आज अल्फाज ही उसे कहने पे मजबूर कर रहे हो जैसे.. ..
रमा कुछ पल उस समुंदर के लहरो पर मानो सवार मन को खिच के किनारे ला रही थी। पल हर पल की बीती सुनाती उस समुंदर किनारे.. पैरो से रेत को सहलाते हुए वो मन की बात मानो उस समुंदर से कह रही हो.. मानती थी की कोई नहीं पर वो तो सुनेगा ही.. पुकार उसके मन की बात है.. जीना मरना तो आता जाता हैं !न जाने कौन सी मीट्टी से बनी थी! बचपन से ही हंसी दबाके थी! एक सुबह ऐसी भी थी!.. उसके हर पल की खबर थी, फिर भी फिलहाल जिंदगी तू ही हंस ले मजाक ही बन गयी है! जमाने में एक वो ही थी जैसे .. हर तरफ से वादिया उसे बुलाती हो जैसे .. खुशनुमा सी हर गिला पे एक मुस्कान थी फैली! ऑंखे थी नम सी .. पर राहे मानो उसके इशारों पे हो चलती!.. जिंदगी और भी शामिल ए इम्तिहान लिए जा रही थी।
..
वो वो कुछ सुबह की रोशनी सी
पहली पहली बरसात की बुंदे की ओस सी उसकी हसीं थी! यादों मे खो कर भी चहक गयी वो ऐसी परिणती थी वो! कुछ इस तरह ही गिला ए जिंदगी कहती समुंदर किनारे फैली रेत को सहलाती रमा पुरानी यादें संजोती रही.. .. कुछ पल अपनी कही उसे सुनाती रही.. !
क्यों गुमसुम हो उदास सी.. हो . मानो लहरे ही हो पुछती !..
रमा ने एक हलकी सी सास ली और फिर से निगाहों में समा ले रही थी उन हसीं लहरो की खिलती हंसी .. !
"वो राहे मानो !कितने सावन बरसे होंगे .. न जाने क्यों यह तड़प यूं ही सहलाती हूँ मैं भी !. अकेली किसी की हर बात पर चुप सी निगाहें .. पलकों में बाते भर के झलके ! क्यों हूँ यहाँ जब कोई नहीं मेरा यहाँ .. जिन्दा ही हूँ तो क्यों भला ???? न जाने ये सवाल किस जन्म से पीछा कर रहा था उसका .. आज भी जनम जन्म का साथ निभाते रहा हो जैसा??? ..... वैसे तो रमा ज्यादा बाते नहीं करती ..पर उसकी निगाह में वो तस्वीर छप जाती है जिसे वो यूं ही देख कर छोड़ जाती थी .. !
"बड़ी प्यारी सी थी जब छोटी सी परी थी ! न जाने क्यों सभी मुझिपे प्यार बरसते थे?? .. क्या वो प्यार था या मेरा होना गवारा नहीं था किसी को.. "???
जोर देते हुए वो लहरो की साथी बनी .. चल उन्हीं यादों के पहले पन्ने पर है कुछ लिखा वही पढ़ ले जरा रमा ..
एक अरसा हुआ यूं ही कहते रहे .. अकेली सी सहमी सहमी लगती हो . कुछ कह भी दो .. मानो लहरे ही पुछ रही हो .. रेत पे जो लिख रही हो पैरो तले दबाये वो आरम ही तो थे न रमा ????
खुद ही खुद से पुछती हामी भरती रमा कुछ ज्यादा खो गयी थी.. उन लहरो से होकर भी वही एक याद अति थी आखिर क्यों जीए जा रही हूँ यूं ही .. कितने दिन की इम्तिहान है .. कितना और प्यास बाकी है जिंदगी?? क्यों नहीं भरती तेरी उम्मीदें मुझसे ही क्यों लगाव है तुझे ??
काश उस सामने पेड़ की आहट हो मेरी पहचान ?? नहीं वो तो बुत बना खड़ा देखता रहता हैं हर वक्त की खबर है उसे पर मेरी जनम कोई पहचान नहीं बताता मुझे?? .रमा आज भी उसी सवाल को दोहराती हुए समुंदर से पुकार लगाती है..
क्यों हूँ इन सभी में मैं ही अलग सी ? सभी का जन्म दिन मनाये जाते है मेरा नहीं क्यों?? उसने पिता से पुछ ली .. माता से भी पुछ.. 2 रे दिन उसकी सहेली का जनम दिन था .. सहेली थी भी ऐसी की सिर्फ उसी के लिये हो जैसे .. पर सभी उससे कुछ छुपाते थे ऐसा ही महसूस किया उसने.. उस दिन अर्ची की माता पिता के साथ साथ उसकी बुआ भी थी! बहुत प्यार से पूरा व्यंजन बना रही थी ! रमा शांती से उसके पास बैठ गयी! बुआ मुझे बताओ न ये जन्म दिन क्यों मनाते है .. क्या होता है यह त्योहार है कोई ..""??
बुआ थोड़ी हँसी को दबाते हुए उसकी तरफ देखा उसकी आँख भर आये हो जैसे.." रमा तुम्हारी भी तो कोई जन्म तारीख होगी उस दिन मनायेंगे न हम जन्म दिन तुम्हारा भी घूमने जायेंगे.. मस्त सभी घूम के फिर cake काटेंगे.. "!!!
"पर तुम ये सब क्यों पुछ रही हो ! "
घर में सबको मालूम होगा तुम्हारा जन्म दिन .. नहीं बुआ.. मैं कितनी बार पूछी मेरा कोई फोटो भी नहीं और ना ही मैं उन के जैसी लगती हूँ ! कोई कोई तो मुझे अलग ही बात कहते है मैं यूं ही पड़ी मिली हूँ पापा को.. वो तो मेरे पापा भी नहीं! तो किस्से पुछूँ ?? . पहले ही मां को सताना नहीं चाहती आप तो यही होंगी न मेरे जन्म के वक्त.. साथ साथ ही है न .. कौन हूँ मैं उन्ही की बेटी हूँ न? या नहीं .. क्या अर्चना का कैसे अल्बम है बचपन का मेरा एक भी फोटो नहीं ! अर्चू तो आपकी हुई बेटी... पर दीदी भाई छोटे की तस्वीर है मेरी ही नहीं है क्यों बुआ मैं उनकी बेटी नहीं हूँ क्या?? आप तो सच बोलो न.. रमा का सवाल बड़ा पेचीदा लगा बुआ को .. वो छोटी ही तो है अर्चू जितनी, ये कैसी कशमकश है भगवान इसे कुछ कहूँ तो भी नहीं मानेगी .. बड़ी जिद्दी है .. एक काम करो रमा मैं कल घर आती हूँ ढूंढेंगे तस्वीर कही तो छिप गयी होंगी..
महज 5 साल की थी रमा कुछ ज्यादा ही सोच विचार कर रही थी.. अर्चू की बुआ को उसकी पहेली कुछ काम करने न दे रही थी! रमा तुम अब खाना खाके गी जाना अर्चू का जन्म दिन है न..
नहीं बुआ नहीं ..
माँ को पता चला अगर तो??? कैसे वैसे पूछ के आयी हूँ .. पापा बोले जाओ तभी माँ ने हामी भरी?? अगर मैं खाना खाई यहाँ तो माँ दो दिन तक बात नहीं करेगी बोली है.. ना बाबा न खाना क्या घर पर भी बना होगा .. माँ अगर रुठी तो मैं न मना पाऊँगी.. फिर मुझे दुबारा अर्चू के साथ खेलने भी नहीं देगी शायद!!!
मैं बाद में अति हूँ बुआ चलती हूँ.. जसे ही जाने लगी .. अर्चू के पिता सामने से आ रहे थे .. ये क्या अज अर्चू का जन्मदिन है तुम रुकोगी नहीं .. यूँ तो दिन भर खेलती हो उसके साथ .. ?? नहीं चाचा मैं आती हूँ न भाई बहन सभी आयेंगे न साथ में उनके साथ आती हूँ अभी तो आप आये हो न घर में आप को आराम भी तो करना होगा न.. चौल ही सही पर लड़की चौल के तौर तरीके वाली लगती नहीं न मिरा .ताई . ?? अर्चू के पिता ने उसकी बुआ से पुछा..
चुप भी करो भाई पहले ही बहुत परेशान लग रही रमा तुम जले पे नमक न छिड़को..बेचारी पुछ रही थी मेरा कोई अल्बम नहीं हैं क्यों?? .. अरे बाबा चुप कर .. उसका मामा को बोला है मैंने पार्टी की तैयारी का जरा बहार गाना शाना होगा बच्चे जरा मजा करेंगे तो उसे भी अच्छा लगेगा, मामा है तो रमा के माता पिता उसे भेजेंगे ही न.. ना थोड़ी करेंगे ..
पता नहीं पर सवाल ले के गयी है .. जब तक जवाब नहीं मिलता न कोई और बात सुझेगी उसे अपनी अर्चू जैसी नहीं है वो .. बहुत ही मनस्वी है .. दादा .. !!!
हाँ माना पर.. अर्चू की आज्जी(दादी मां) आई थी .. !
उसने रमा को जाते हुए देखा और घर में आते ही बुआ को कोसने लगी उसे क्लियों या घर में .. उसकी माँ को पता चला के वो यहाँ हैं तो बेचारी की हालत बिगाड़ देगी.. ! रमा ने वो बात सुन ली .. उसके कदम घर की दौड़ने लगे मानो घर में जाकर मां से बिलग कर रोयेगी.....
( ऐसा ही लगा न आपको भी.. )
रमा एक कोने में जा बैठी .. चुप्पी सी गुमसुम बहुत रोना आ रहा था उसे .. आखिर सभी मुझसे यूं ही लगाव हो के भी बात नहीं कर सकते क्यों .. क्या हूँ मैं. कोई वजह तो होगी न..
रमा ऐसे जेहन में सोचते सोचते सर दीवार पर पटक रही थी! मां को आवाज आते ही उसने देखा तो शान्त करने पहुंची .. पर प्यार से बतियाये वो मां तो दीदी और भाई के नसीब में थी .. रमा को उसने कहा खाना नहीं मिलेगा घर पे यूँ हल्ला न मच .. चुप चाप बैठ.. क्या हुआ री अर्चू के कर घर गयी थी न फिर वापस क्यों आई .. वो शाम को मनायेंगे जन्मदिन.. अभी तैयारी चल रही है न .. ममा मेरी जन्म तारीख क्या है .. ?? सबके जन्म दिन मनाते है मेरा ही नहीं ऐसा क्यों ? रमा ने दीवार को सर पटकाते हुए पुछ ही लिया !!
ये क्या नया सवाल हैं रमा.. कितनी बार कहा है तुझे ऐसे यूं ही सवालों में उलझी न रहा कर खेल कर.. यही दिन खेल कूद के बच्ची..रमा फिर भी पुछ रही थी के, नहीं माँ. मुझे इस बात का गम नहीं पर आप मुझे मेरी जन्म तारीख क्यों नहीं बताती क्या मैं आपकी बेटी नहीं हूँ? पापा मेरे पापा नहीं हैं??
रमा की माँ धक्का पहुंचा यह सब क्या बोल रही है रमा तू.. आखिर क्या सुन कर आयी तू कौन बोला तुझे ऐसे ..
सभी कहते है मैं ब्रम्हीन के जैसा बर्ताव करती हूँ.. आप लोगों जैसा तौर तरीके नहीं हैं मेरे.. रमा माँ से पुछती रही..
"आखिर इस सवाल का जवाब देन ही होगा, रमा को नहीं सरे चौल के वासियों को बुलाकर इसका जन्मदिन मनायेंगे जी .. रमा के माँ ने उसके पिता से बातचीत कर यह फैसला लिया.. ..!!
और रमा को आखिर तक नहीं बतायेंगे की उसका जन्म दिन अगले इतवार को ही तो आ रहा है न.. "
पिता ने भी हामी भरी..!
अगले इतवार तक वो भूल जायेगी ऐसा लगा सभी को..
पर रमा थी न वो कैसे भूलती सवाल जहन का नहीं उसके अस्तित्व का था .. जो आज भी कुछ न्याय माँग रहा था जैसे.. दूसरे दिन उसने सारी दीवार पर टंगी महान हस्तियों की फोटो को ले के सवाल वही पुछे?? अब तो पिता भी नाराज हुए ..
बोले!,
""
रमा बेटी मैं न तुम्हें घुमाने ले जाने वाला हूँ शाम को हम सिर्फ तुम्हारी पसंद की जगह चलेंगे .. चलेगा आते आते तुम्हारे लिये कुछ खरीद लेंगे .. हैं न?? मेरी अच्छी बच्ची .. जिद नहीं करते ..!!!"
कुछ दिन गये इतवार को उसका जन्म दिन की तैयारी घर पर चल रही थी .. और रमा को कुछ पता नहीं था.. सभी चौल वालों को पर था की आज रमा का जन्मदिन है और दावत भी है रखी उसके घर पर पिता ने सभी की निमंत्रण दिया था .. पर फिर भी रमा नाराज थी..
वो अर्चू के घर जा के बैठी, माँ से कुछ न कहना. मैं यहाँ हूँ.. सभी को बताया मेरा जन्म दिन, मैं खुद बताना चाहती थी झूठ है यह सचची .. मेरा तो कोई छोटे वाला फोटो ही नहीं है जिस्पे मेरा नाम लिखा होता है.. डॉक्टर भी बोले बड़े अच्छे से सँभालते हो आप इसे नहीं तो??
छोटी सी दिमाग में यह बाते न जाने कितनी सही थी और नहीं , पर रमा ने सभी को ऐसा सीला दिया की मानो कोई माँ बाप उसे जन्म दिन बताना अपना परम कर्तव्य समझे..
जैसे ही सभी मेहमान घर पर आये .. रमा भाग कर अर्ची के घर में छिप गयी .. थी, रात में लाईट भी गयी कैसे ढूंढे भी, फिर भी सभी लोग उसे यहाँ खोज रहे थे पूरे मोहल्ले में ढूंढते रहे पर लाईट आने पर शान्त मन से रमा घर में दाखिल हुई.. ..सभी ने कहा चलो बेटा जन्मदिन मनाते है..
रमा ने सभी से कहा.. आज मना लो जो मनाना है आज के बाद मैं न मेरा जन्म दिन पूछूंगी न कुछ और .. आज के बाद मेरा जन्म दिन नहीं मनाओगे आप लोग.. याद भी मत रखना .. मैंने पुछा इसलिये कोई भी तारीख बोल कर उसे ही जन्मदिन कहते हो आप लोग इसे ..! मैंने सिर्फ अपने लिये पुछा था .. !आप को सिर्फ जवाब देन था अपने तो मेरे प्रश्न का उत्तर एक तमाशा बना दिया??
रमा ऐसे ही बहुत छोटी सी उम्र में बड़ी बन गयी थी!. कहा से आते थे ऐसे सवाल भी उसके मन में .. और जवाब भी जानती हो जैसे .. !
सब भूल कर कुछ दिन बाद वो फोटो निकालने के लिये पिता उसे और फैमिली को ले के photostudiyo में गये! वहाँ भी रमा ने फोटो से इनकार किया ! कहा मेरा अब ना कोई फोटो निकलो मैं कोई खास थोड़ी हूँ !!
जवाब सुनकर सभी हंस पड़े .. पर रमा सहम गयी थी उसे कैसे भी करके फोटोग्रफर ने मना लिया आपकी एक ही तस्वीर निकलेगी बस. रमा ने वहाँ भी हुकुम का इक्का दिखा दिया..
फोटोग्राफर ने भी ..
"बड़ी हस्ती की परछायी लगती हैं साहब.. !!!"
रमा ने वो शब्द सुन लिये थे ..
क्रमश..
