वो कुछ सुबह की रोशनी सी ....2
वो कुछ सुबह की रोशनी सी ....2
Part 2..
रमा ने उन शब्द को मानो सुन लिया हो!
"हल्की सी थी वो लहर ही काफी होती है डुब जाता हैं साहिल भी किनारा दूर लगता है.. "
क्या था वो कहना भी दिल में उसके घर कर गया ! मासूम दिल पर मानो कोई एक फिरसे घाव कर गया ! अनजाने न जाने वो उन्हीं ख्यालों से
बाहर आते आते उन्हीं में खो गयी! ..
काश कोई बता देता उसे की वो कौन थी ! एक आशा से दूसरी निराशा होती थी ! जब भी पुछती थी दिल में एक दरार थी खिचती! सभी तो थे घर में प्यार सभी को मिलता था ही ! फिर वो क्या थी कसक जो उसे हर वक्त गुमसुम बनायी रखती थी!
अज मिली जरा फुरसत तो उसी की मिलती जलती तस्वीर लगी बनाने! एक एक सवाल लगी थी बुनने! गहराई की तलाश में मानो चाँद से चली मिलने! आस भी तो अपनी कशिश छोड़ जाती है !
एक दिल की आहट थी वो हर बार सुनती थी रमा !
माँ के पल्लू से नहीं, दीवार से लिपटे कर मिलती थी माँ के गले वो.. छुप जाये सारे नजारे भी एक माँ कहा से लाऊँ.. मन्नत में पिरोये जो थे उस माँ ने धागे प्यार के कहाँ से ले आऊँ! "
लगा मन फिर उन्हीं धागों को पिरोने, क्या कहा उस फोटोग्राफर ने ऊंची हस्ती की जैसे थे चाल ढाल??
मानो वो भी यही चाहता था कहना की रमा के माता पिता ने उसे एक और फोटो खिचो जी बहने है सगी दोनों का एक फोटो तो बनता है न ! माँ मानो उस सच्चाई से जरा रमा का ध्यान हटाया हो! पर रमा थी वो उसे भूल से कोई बात बता दो याद मानो जैसे कंप्यूटर हो! पर कुछ वो ये बात भूल नहीं पा रही थी के वो घर में सबसे अलग क्यों लगाती हैं! इतनी खूबसूरत हो के भी माँ को दीदी ही भाती हैं! प्यार तो छोड़ो अगर बुखार भी आये तो दीवारें ही सहलाती थी उसे! फिर भी माँ पिता का स्नेह बटोर ना चाहती थी न रमा! क्यों हुई थी वो जख्म भी जिनके इलाज नहीं होते थे! .. एक एक पल जोड़ के भी जिंदगी नहीं मुस्कुराती थी ! क्यों रुठे थे नजारे भी एक हँसी भी मन्नत हो माँगी जैसे! क्यों होती थी बरसते उन्हीं पर हो के भी थी वो कहानी हो जैसे ! एक अधूरी सी थी वो कहती थी भी कुछ तो न समझ पाते कोई ख्वाबों का कारवां तो उसे देता सुकून जरूर था! पर दिन की रोशनी में हमसया भी पराया हो जैसे !
ऐसे ही वो घर चली आयी.. उसका मूड तो वैसे भी कुछ कह नहीं सकते थे ! घर आने पर माँ ने रसोई संभाली! भाई बहन खेलने गये ! रमा पलंग से पीठ लगाकर बैठी रही ! बड़ी माँ ने पुछा क्यों कर ली मन की बात खरी न रमा को फोटो की जरूरत ही क्या है उसे तो ऐसे भी कहा जल्दी ब्याह करायेंगे,.. रमा तू दिल छोटा न कर अभी तो तू छोटी हैं अभी तुम्हारी शादी नहीं करेंगे बाबा जरा भी हँसी मजाक रमा को अब भाता नहीं था! क्यों आयी वो जहान में बात के रमा की पहचान क्या हैं कौन है वह किसकी बेटी थी वो सारे सवाल उसे सुई बन के चुभ रहे थे!
" रमा ओ रमा अर्चू खेलने को बुला रही है आ न! "..
दीदी ने पुकार लगायी .. रमा ने नहीं आना मुझे खेलने तुम लोग खेलो.. कह के रुम में जाके एक कोने में दीवार से सर लगा के बैठ गयी ! ..
हलके हलके दीवार पर सर पटक ही रही थी के माँ को सुनाई दे गयी वो आवाज.. रमा जरा आ तो तुझे एक बात पुछनी हैं! ..
क्या माँ.. नाईक चची से जरा दही ले के आ जा.. ..
दही का नाम सुनते ही रमा की हालत बेकार हुई! उसे दही नाम से जहन में खटास थी.. जो बाते उसे पसंद थी वो उसके बहन और भाई को पसंद नहीं थी ! रमा अलगाव जरा ज्यादा ही उसे अलग विचार में पनप रहा था! .. फिर भी दही तो लाना ही था !
वो गयी भी नाईक चची के घर .. घर में सभी थे रोहित भाई राजू भाई थे .. रमा ने जैसे उन्हें देखा घर लौट कर आ गयी, माँ घर में भाई भी हैं कैसे ?? माँ ने हँसकर टाल दी उसकी बात। अच्छा एक काम कर जा जरा अर्चू के घर खेल थोड़ा उसके साथ, बुला रही थी न! नहीं जाने दो माँ किसी को मेरी और उसकी दोस्ती अच्छी नहीं लगती न नहीं बोलूँगी मैं.. माँ पर मुझे आपसे दूर मत करना माँ.. रमा ने कह तो दी मन ही मन में रह गयी वो बात जो उसे कहनी थी माँ से! चुप हो के रमा खेलने चली गयी! .. अर्चू की और उसकी दोस्ती को ले के भी सभी नाराज रहते थे ! रमा से सभी दोस्ती करना चाहते थे पर रमा ज्यादा किसी से मिलती जलती नहीं थी! अर्चू और वो बस्स.. ..
मानो बहुत ही गहरा रिश्ता हो पिछले जन्म का.. पर अर्चू तो सभी के साथ घुल मिल जाती थी ! रमा को उससे कोई गिला न था ..
अर्चू अर्चू ..
बुआ अर्चू कहाँ हैं!?? क्या मैं उसके साथ खेलूँ !! अरे रमा आ न ..
अर्चू सोई है तू आ तो सही.. बुआ ने उसे अपने पास बैठने को कहा .. अर्चू सभी से बात करती थी पर अर्चू के पिता से बात नहीं कर पाती थी .. रमा क्या बात है जरा भी बात नहीं करोगी हमसे...क्या हुआ लाडो .. उस दिन birthday पे इतना भी कोई माँ पिता को सुनाता हैं क्या?? कैसे बात कर रही थी बेटा तुम क्या माँ को लगा होगा?? उसने ... तो . ...
जी जी .. क्या बात कर रही हो .. बुआ ने अर्चू की माँ को टोका. ..
रमा को भी लगा की उसे घर चले जाना चाहिये ! पर जवाब भी तो देना जरूरी था न!
चाची जाने दो आप नहीं समझोगी.. महज इतनी सी छोटी सी बच्ची के दिल की ऐसी क्या बात थी जो वो भी नहीं समझ पायेगी .. पर अर्चू की माँ ने विषय को बदल दिया.. नजाकत वक्त की वही थी .. क्योंकि रमा अभी छोटी सी बच्ची थी ! ..
अर्चू जितनी ही .. अर्चू की माँ को भी उसका यह शांत मन खटकता था .. !
इतनी सी थी वो बात की वो थी ही किसी की ..
यह बात थी दिल की नमी ने आँखों को भिगा दी ..
वो दिन भी क्या दिन थे न रमा के पैरो में पायल थी मन मौजी थी घुंघरू भी उसके.. रमा भी थिरकती थी होती थी खुश कभी भी ..
एक बहार थी उसमें भी छिपी सी .. शायद वही करण था सभी से अलग होने की वजह भी वही थी! कितने पास की बात है न स्कूल में दाखिल हुआ नहीं की उसने स्कूल के प्रवेश द्वार से होते हुए अंदर की ओर जाकर एक तरफ जो स्टेज था उसकी तरफ हाथ कर कुछ कहा था माँ से! .. माँ ने सहम कर जरा देखा रमा ओ रमा...
क्या माँ .. क्या कहा तुमने अभी अभी .. .. वो स्टेज के बारे में ..
क्या बात है मुझे भी बताओ न.. बेटा .. ऐसा माँ बस जब भी वो और रमा ही होते थे साथ मैं तभी उसे ऐसा पुकारती थी ?? मानो किसी से छुपकर उसे माँ गले लगाती हो.. वो समझ जाती थी की माँ को तकलीफ हुई होगी उसके किसी बात से तभी वो ऐसा कह लेती थी प्यार से, फिर भी रमा का सवाल वही का वही रहता था ..
वो माँ क्या मैं भी इस स्टेज का एक हिस्सा बन पाऊँगी कभी?? 6 साल की रमा के बातों से हर कोई चौंक जाता था!
पर माँ ने हामी भर दी ठीक हैं न.. तुम जैसा चहोगी वैसा होगा .. पर बेटा घर पर बड़ी माँ की permission भी तो लेगी न तू .. की अपने मन से कुछ न करना..
"माँ देखना तुम मैं न इस स्टेज पर ही नहीं दिखूँगी तुम्हें, मैं तो उस आकाश में जो सितारा है न उत्तर का उसके पास होगी मेरी भी जगह एक खास .. हां न माँ ..??
माँ रमा को आज देखती रह गयी.. ! कैसे समझायेंगे की घर पर तो किसी को नाच गाना पसंद नहीं.. यह तो सितारों चांद की बाते करती है... ??
माँ बस देखती रहती रमा को जब वो तल्लीन हो कर नृत्य करती थी! किसी के सामने तो नहीं करती थी पर जब भी घर में अकेले होती थी रेडियो की धुन और रमा की थिरकन सभी को वो भली भांति जानती थी ! ...
फैली थी धुआँ धुआँ रोशनी सी .. ,
खिल उठी जो महक थी आबो हवा सी. ,
दिल की खबर कहा थी किसे ,
फ़िजाये यूं ही गिला करे .. !
वैसे तो रमा यह नृत्य के प्रती दीवानगी माँ तो जानती थी ही! रमा पर उससे मना करना जरूरी था, मानो छोटी सी दुनिया रमा की दुनिया न समझेगी शायद इतना और ऐसा ही कुछ लगता होगा रमा की माँ को, था भी वही सच ..
थोड़ी देर उसके साथ वो भी जी ली रमा के सपने ! मोर की थिरकन थी उसकी लहरों सी दीवानगी समायी थी! फैला था जो समा उससे रमा को अलग कर पाना मुश्किल लग रहा हो जैसे..
पर रमा थी वह .. खिली हँसी को दबना मानो माँ के गर्भ में हो सीखी हो!
बहक जो ली थोड़ी सी हवा संग
गिर नहीं गये अभी संभले हो जैसे
निगाह भी गौर है जमाना अभी भी
नियते खराब सी हैं!
वो यादें रमा को आज भी उसे महकने की उम्मीद जगा रही थी! न जाने रमा को कोई क्षितिज के उस पार से हो पुकारता था वो फौरन गयी सोचने लगी क्यों होते हैं यह गलतियां माँ मुझसे, जानती हूँ ना चलेगा घर पर कुछ भी न कर सकूंगी कुछ भी मन की.. पर अभी तो छोटी हूँ न.. मन में ही कह ली सारी बाते चुप सी हो गयी वो फिजाओं की बरसाते! जब कुछ कह नहीं पाती हूँ तो जी लेते चुप चाप से...
यही तो चलता आ रहा था !
वही चलेगा भी,
कहा मैं खुली किताब सी
जी पाऊँगी भी कभी !
हर नजर है पुछती जैसे
कौन हो तुम? क्या है तुम्हारी पहचान ?
इस जमाने की नहीं लगती ..
नहीं मिलती अपनी पहचान ?
रमा ने कभी डांस की दीवानगी नहीं चखी थी पर शायद जनम से ही थी वो माहिर जैसे .. कोई कला द्वार है बुलाता, उस और से है आवाज आती -..
"मिलो हमसे ओ रमा..
रोम रोम मैं एहसास है जगाती
नहीं हैं यह दुनिया तुम्हारी
तुम आसमां का तारा हो सही
एक तूफान सा लगे उभरने उसके मन में क्यों कर रही थी वो यह सब किसी के होने न होने की वजह हो जैसे.. कमी तो कुछ लगती नहीं थी पर रमा को ही खोखली लग रही थी जिंदगी ! क्या करे ..
बचपन मैं ही इतनी सहमी संयमी थी रमा की मानो किसी ईश्वर की छाव हो! धूप भी निकलती है वक्त से ऐसे ही हुआ नसीब में !
एक बहार आनी थी जिंदगी मैं शायद वही थी वो आगाज ही .. अशये उसकी न रुकने वाली थी फ़िजाये भी लगी थी खिलने .!
झुले क्यों न रमा भी वो झुला के वो छुन सी थी जो कली..
बड़ी देर लगा दी रमा की माँ बड़ी दीदी की ताने न मिले कहीं सुनते ही रमा का बर्ताव झट से बदल गया .. वो एकदम सयानी सी होते हुए चलो माँ घर चले देर हुई होगी न मेरी वजह से आज ना जाने कैसे मैंने तुम्हारी नहीं सुनी गलती हो गयी माँ.. कभी अब ना ऐसा करूंगी मैं...मेरी वजह से आप पर सब बिगड़ते
है जानती हूँ पर शिकायत का मौका न दूंगी अब कभी भी इसी स्टेज का वा...
अरे रमा बस कर क्या बोले जा रही है.. माँ ने रोक दिया उसे.. कहती हो यूं ही या कुछ समझ भी लेती हो उस बात को जो तुम कहने जा रही थी क्या वो हो पायेगा कभी? कितनी बिगड़ती हैं तुम्हें बड़ी माँ फिर भी तुम्हारे स्वभाव है की नहीं समझ पाती तुम्हें.. क्यों होती हो इतनी अलग अलग सी .. क्या मेरी ममता तुम्हें प्यार नहीं करती ? क्यों होती हो इतनी बेखौफ कभी कभी दर लगता है सोनू तुम मेरा हिरा हो और तुम्ही से मैं शायद तुम्हारी साँसे छिन रही हो जैसे ऐसा लगता है मुझे रमा ?? क्या करूँ के तुम्हारे नजर के सवाल जो पनपते है न समझाती हूँ मैं पर तुम्हें हारते नहीं देखना चाहती कोई तुम्हारी दीवानगी देख कही तुम्हें मुझसे दूर न कर दे?
बहुत दौड़ाती हूँ मैं रमा "
माँ ने रमा को उसके दिल की कही पर उसके पीछे जो राजे बयाँ बाते थी वो समझा गयी की माँ चाहती है के वो यूं हठ न किया करे,
रमा होशियारी से उन पलों को अपने दिल में संजो कर रखे हुए अपने माँ के साथ चल रही थी! घर आते ही चुप चाप घर मैं जाकर एक कुर्सी पर बैठ गयी ! बड़ी माँ ने पुछा भी क्या हुआ मिल गयी admission इसे की टीचर ने कहा कुछ इसे ! .. रमा ने कहा हां माँ जी मिली न admission भी मुझे और teacher ने कहा बहुत ही होनहार बच्ची है.. महक जैसी फूलों की..
माँ ने माथे पर हाथ रख कहा हैं भगवान मरवायेगी तू रमा एक दिन मुझे भी और तुझे भी क्या जरूरत है अपनी तारीफें गिनवाने की किसे पड़ी होती हैं तेरी कोई चीज से लगाव भी है किसी को नहीं ना फिर क्यों ऐसा कर रही हो ! अभी रास्ते मैं ही तो समझाया था न क्यों भूल गयी क्या ? कितनी बार समझाती हूँ तुझे बड़ों के किसी सवाल का उलटा जवाब नहीं देते ! .. रमा फिर शांति से सुनती रही .. बड़ी माँ और माँ की तकरार चलती रहती पर माँ कभी बाते उलटी जवाब भी नहीं देती बस रमा को सिखा देती थी के जो भी वो कहना चाहती थी वो रमा बिना माँ कुछ कहे समझ जाती थी! पर उनके मन ला ना हो कोई बात तो रमा को बार बर समझने पर भी वो न समझाती थी! ..
आज जब वो सागर की और देख रही थी बैठ के उन्हीं यादों की एक झलक थी के रमा आज भी वही थी सुबह की पहली रोशनी सी पलकों में चुभती थी पर जीती थी अपनी फन में .. एक एहसास ही तो था बस क्यों लगा मन बहकने ? कह के गुजर जाती थी आज भी वो राहे मानो उसके इशारों पे ही चलती जैसे.. माना कह के भी होती है यारी पर नहीं होती पछतावे की कोई दूसरी सुबह इसलिये नहीं चाहती थी शायद
वो सुबह की पहली किरणों सी हँसी !
