AJAY AMITABH SUMAN

Abstract

4  

AJAY AMITABH SUMAN

Abstract

वो एक आदमी

वो एक आदमी

4 mins
205


फ़ाइलें हाईलाइट करने के लिए हाइलाइटर समाप्त हो गए थे। मार्कर में स्याही भी गायब थी। इसलिए मैं इसे खरीदने के लिए स्टेशनरी की दुकान पर गया। वहां थोड़ी भीड़ थी। स्टेशनरी लेने के लिए मेरे से पहले 4-5 और लोग पहुंचे हुए थे। मैं वहीं खड़ा होकर और अपनी बारी का इंतजार करने लगा।एक सज्जन वहां आए थे। वह दुकानदार से शिकायत कर रहे थे कि मार्कर, जो उन्होंने दुकान से खरीदा था, ठीक से काम नहीं कर रहा था। वो दुकानदार बार-बार कह रहा था कि मार्कर उसकी दुकान का नहीं था। सज्जन और दुकानदार दोनों अपनी अपनी जिद पर अड़े हुए थे।

सज्जन बोल रहे थे, आखिर झूठ बोलकर मुझे क्या मिलेगा? मैंने ये खराब मार्कर आपकी हीं दुकान से लिया था। चूंकि यह खराब था, इसलिए इसे कृपया इसे बदल दीजिए।

दूसरी ओर, दुकानदार भी अपनी बात पर अड़ा हुआ था कि मार्कर उसकी दुकान का नहीं था। विवाद चल रहा था।

धीरे धीरे ये विवाद झगड़ा और फिर उनकी आत्मस्वाभिमान की लड़ाई का प्रश्न बन गया। दोनों के ईमानदारी सत्य के तराजू पर चढ़ गई थी। कोई पलड़ा झुकने को तैयार नहीं था। जिसका पलड़ा ऊपर जाने लगता वो थोड़ा सा आत्म असम्मान का वजन चढ़ाकर पलड़ा नीचे कर देता। सत्य जा तराजू कभी इधर को तो कभी उधर को डोलता रहा। कोई फैसला न होते देख सज्जन पुरुष ने चिढ़कर कहा, "भाई, कोई बात नहीं , आप आप रहने हीं दो। इस मार्कर को नहीं देने से, न तो आप अमीर बनेंगे और न ही मैं गरीब। मैं ब्राह्मण हूं, झूठ नहीं बोलता। और दूसरी बात यह कि ब्राह्मण क्रोधित होने पर तुम्हारा भला तो कतई नहीं हो सकता।

यह सुनकर दुकानदार थोड़ा नरम पड़ गया। उसने कहा: भाई, इस छोटी सी बात पर इतना गुस्सा करने की क्या जरूरत है? इतने लोग मेरी दुकान से मार्कर लेते हैं। मैं सबको तो याद नहीं रख सकता? ऐसा कीजिए, अपना अपना मार्कर मुझे दे दीजिए और बदले में नया मार्कर ले लीजिए।

सज्जन पुरुष के आत्म स्वाभिमान को अपेक्षित प्रोत्साहन मिल गया। शांत हो गए। ओर आत्म सम्मान की लड़ाई यहाँ भी जारी थी। दुकानदार ने झुककर बड़प्पन दिखा दिया था। अब सज्जन पुरुष की बारी थी। उन्होंने कहा, अगर ऐसा है, तो मैं भी अपनी बात पर जोर नहीं देता। कोई बात नहीं, ऐसा कीजिए, आप पैसे ले लीजिए और एक नया मार्कर दे दीजिए। दोनो के आत्मसम्मान का मामला सुलझ गया था। लेकिन मुझसे रहा नही गया।

मैंने सज्जन से पूछा, आप ब्राह्मण हैं, जाहिर सी बात है, आपने रामायण और महाभारत तो पढ़ा हीं होगा।

सज्जन पुरुष ने कहा, हां हां, बिल्कुल।

मैंने पूछा: महाभारत और रामायण में पुनर्जन्म की अनगिनत कहानियाँ हैं। तब तो आप भी पुनर्जन्म की घटना को भी मान रहे होंगे?

उन्होंने कहा, हां बिल्कुल।

मैंने कहा: तब तो आपको यह भी मानना होगा कि हर जन्म में आप ब्राह्मण हीं नहीं होंगे। किसी न किसी जन्म में आप कभी महिला, कभी पुरुष, कभी पशु, कभी ब्राह्मण, कभी क्षत्रिय, कभी वैश्य, कभी दलित हुए होंगे?

उन्होंने कहा: कृपया मुझे पहेलियाँ मत सुनाइए। मुझे स्पष्ट रूप से बताएं कि आप क्या कहना चाहते हैं? यह सच है कि पिछले जन्मों में मैं कभी स्त्री, कभी पुरुष, कभी पशु, कभी ब्राह्मण, कभी क्षत्रिय, कभी वैश्य, कभी दलित रहा होऊंगा , लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है?

मैंने कहा: जब आप स्वीकार कर रहे हैं कि आप कभी एक महिला, कभी एक पुरुष, कभी एक जानवर, कभी एक ब्राह्मण, कभी एक क्षत्रिय, कभी एक वैश्य, कभी एक दलित आदि पिछले जन्मों में रहे होंगे, तो फिर आप ब्राह्मण होने में गौरवान्वित महसूस क्यों कर रहे हैं?

आप जानते हीं होंगे कि आओ एक आत्मा हैं, जो अमर है, चिरंतन है, चिरस्थायी है। यही चिरस्थायी आत्मा है जो सभी में व्याप्त रहती है। यह जाति, देश, क्षेत्र, लिंग आदि से परे है। फिर आप इसे एक जाति से क्यों बांध रहे हैं? आपको ब्राह्मण होने पर इतना गर्व क्यों है? आपकी विभिन्न जातियाँ, देश, लिंग आदि इस अमर आत्मा के मार्ग पर बस अलग-अलग पड़ाव मात्र हीं तो हैं। तो फिर इस पड़ाव मात्र पर इतना गर्व क्यों?

सज्जन थोड़ा चुप हो गए, फिर थोड़ी देर ठहरकर बोले: हाँ, पुनर्जन्म का तथ्य सत्य है और जाति, लिंग आदि एक भ्रम है। चूंकि हम पुनर्जन्म को भूल जाते हैं, यही कारण है कि हम खुद को एक विशेष जाति, धर्म, लिंग, देश आदि से संबंधित होने पर गर्व पाल लेते हैं। किसी जाति विशेष का स्मरण चिरस्थायी आत्मा की विस्मृति का परिणाम है।

मैंने सहमति में सिर हिलाया और मुस्कुराया। वह भी मुस्कुराए और चले गए।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract