वो और बरसात

वो और बरसात

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बरसात शुरू हो चुकी थी दोनों दृष्टिकोण से, एक तरफ जहाँ बारिशों की बूंदों ने तपती हुई धरती में और मुरझाये हुये पौधों में समावेश होकर नई जान डाल दी। उसी तरह रूबी को इस कोचिंग की पहली बरसात में ये एहसास हुआ कि शायद रोहित ही मेरी जीवन की हमसफर है। कुछ आगे बताने से पहले ये बताते चलें कि रूबी और रोहित कुशीनगर के विद्या कोचिंग में 10वी की ट्यूशन लेने जाया करते थे। रोहित पिछले दो सालों से यहां पढ़ाई कर रहा था। वहीं रूबी की ये पहली बरसात थी इस कोचिंग पे। रूबी की ख्वाहिशों से रोहित अभी तक अंजान पड़ा हुआ था। पर रोहित के दोस्त दुर्गेश को ये समझ आ गया था कि बादल बरसने वाली है, क्योंकि बरसात शुरू हो चुकी थी।


रोहित पढ़ने में काफी अव्वल था और रूबी कैसी है, ये अभी तक किसी को मालूम नहीं। मालूम भी कैसे हो कोचिंग की नई नवेली गुमसुम लड़की से दसवीं में कौन लड़का बात करता है? जिसको आये हुए अभी दस दिन भी नहीं हुआ हो, संयोग से हाईस्कूल में एक दिन पता चलता है कि दोनों रूबी और रोहित एक ही सेक्शन के स्टूडेंट है। रूबी ये सोची अब रोहित से बात करने का बहाना ढूंढना होगी। बस क्या था क्लास समाप्त होते ही रूबी रोहित के पास गयी। "तुमने मैथ का क्वेश्चन बनाया" ये पूछ दी रोहित से। रोहित ने सर हिलाते हुए" हाँ" कह दिया और वहां से निकलकर बाहर दुर्गेश का इंतज़ार करने लगा। दुर्गेश आया और दोनों उस दिन घर को चले गए। रूबी उस दिन काफी खुश मालूम पड़ रही थी। शायद रूबी ये भी सोच रही थी कि आज कहीं रोहित मेरे बारे में सोचेगा तो जरूर, पर ये बारिश का मौसम सोचने कहाँ देता है? जब मन करता है तब ये बादल बरस के चला जाता है। रोहित के साथ जो भी हो रहा था उन सब चीजों से दुर्गेश अंजान नहीं था। कुशीनगर से घर जाते समय रोहित ने दुर्गेश को सब कुछ बता दिया था। अगले सुबह रोहित सबसे बाद कोचिंग पहुँचा, जिसके वजह से उसे पिछले बेंच पे दुर्गेश के साथ टीचर के फटकार सुनते हुए बैठना पड़ा। उसके ठीक आगे रूबी लड़कियों की आखरी बेंच पे बैठी हुई थी। ये दुर्गेश को कहीं खटक रहा था। वो उस दिन की कोचिंग खत्म होते ही सब कुछ बताया अपने दोस्त रोहित को, पर रोहित अपने एक स्माइल से सब कुछ बयां कर दिया ये कहते हुए की मैं सब जानता हूँ।

दुर्गेश भी टाँग खींचने में कुछ कम नहीं वो अब सब दोस्तों में "आज के वायरल मैसेज" की तरह ये खबर पहुंचा दिया कि अपना रोहित तो गया। रोहित नकारते हुए उस दिन सवेरे ही घर को लौट आया। अगली सुबह काफी बारिश हो रही थी। रात भर वैसे भी रोहित ये सोचता रहा की अब कल क्या? इस बरसात के मौसमों में साइकिल को कीचड़ों में चलाना बहुत ही कठिन होता है। जहाँ काले पेंट पे कीचड़ के छींटे इस बात की गवाही देते हैं कि आप कितना संघर्ष कर के कोचिंग करने आये है। चापाकल पे 10 मिनट और भी बढ़ जाता है पेंट पर से कीचड़ के छिटकों को साफ करने में। इसमे दोनों बात का डर रहता है कि कहीं पेंट ज्यादा भींग न जाये वहीं दूसरी ओर ये भी डर सताता है कहीं पेंट पे ये छिटकें मौजूद ना रह जाएं।

रोहित भी इसी तरह संघर्ष करके उस दिन कोचिंग गया।कोचिंग पहुँचते ही रोहित को मालूम पड़ा कि आज बादल गरजने वाले हैं । वैसे भी उस दिन सब लोग रोहित का इंतज़ार कर रहे थे।।क्योंकि मोहतरमा आज पूरे तैयार हो कर आयीं थीं।और बहुत दफा दुर्गेश से सवाल भी कर चुकी थी कि रोहित कहाँ है? "पावडर कुछ ज्यादा हो गया है" ये गुनगुनाते हुए दुर्गेश रोहित के पास आया और कहता है कि "आप फँस चुके हैं जनाब।अब कोई आंधी ही इस बादल को हटा सकती है," पर रोहित तो इस बादल की बूँदों में भींगना चाहता था । रोहित ये नहीं जानता था कि शायद बादल की बूंदों में भीगने की चाहत मुझे डुबा सकती है। क्लास रूम के खिड़कियों के पास बैठकर रूबी के बारे में सोच ही रहा था, कि रूबी उसके पास आकर कहती है "क्या हम दोनों एक नहीं हो सकते ?" रोहित ये सुनकर मुस्कुराते हुए जवाब दिया "खिड़कियों से इन नजारो को देखो अभी तुम्हें कोई पंछी नज़र नही आएगा, सब अपने घर मे अपनों के साथ होंगे।जितना आनंद उन्हें बारिश की बूंदों में होता है उतना ही डर उन्हें सताता है कि आंधी इतनी जोर से न आये कि हम बिछड़ जायें।" एक दूसरे से।रोहित सही वक्त का इंतज़ार करने को कहता है पर रूबी आज पूरी तैयारी में दिख रही थी आखिर कितनी दफ़ा रोहित को जो अपना बनाने की जो सोची है।रोहित को कोसते हुये पूचती है "बताओ क्या तुम मेरे बारे में नहीं सोचते ?" जिस दिन मैं कोचिंग नही आती उस दिन क्या तुम दुर्गेश से ये नही पूछते- "कि वो कहाँ रह गयी? क्या जब सर पढ़ा रहे होते हैं तो तुम ब्लैकबोर्ड की जगह मुझे नहीं देखते ?तुम इन सवालों से भाग सकते हो पर हक़ीकत से नहीं रोहित"। रोहित अपनी झूठी स्माईल देते हुए रूबी से दूर जा के बेंच पे बैठ गया।क्लास शुरु हो गयी पर रूबी की उदास चेहरे, आँखों में उम्मीद, बार बार अपने हाथों से बालों को संवारना रोहित को ये महसूस कराता गया कि रूबी उसे कितनी चाहती है।प्यार इकरार की इसी कशमकश में उस दिन क्लास समाप्त हो गयी।

नौंवी-दसवीं में आशिकों के प्यार का किस्सा तो बहुत परवान चढ़ के बोलता है पर वो इसके अंजाम से दूर रहते हैं और जो इसके कीमत चुकाने के लिए तैयार हो जाता है उसे दिलजले" का "अजय देवगन" समझा जाता है। रोहित के पढ़ाई-लिखाई से किसी को कोई एतराज नहीं था पर आनेवाले कल को लेकर दुर्गेश उसे बार बार याद दिलाता रहता था।रोहित ना सोच के भी उसके खयालों में रहने लगा था चौबीसों घंटा।घर वाले भी रोहित के चुप्पी पे बात करने लगे थे।।पर रोहित के पापा रमेश रोहित की माँ मंजू को ये समझाते हुए कहते है कि दसवीं की बोर्ड 6-7 महीने के बाद है इसी की चिंता सता रही होगी उसको।लेकिन माँ तो हर चीजों की माँ होती है । मंजू अपने पति रमेश को कोचिंग के मास्टर जी से बात करने को कहती है।पर पापा तो आकिर पापा हैं अपना किस्सा सुनाने लगे मंजू को, मेरे जमाने में लााईटें कहाँ होती थी गाँव में। पूरी रात डिबिया (दिया) में पढ़ा करता था।हर माँ-बाप को अपने बच्चे से काफी अच्छा करने की उम्मीद होती है।


पांच दिन के छुट्टी के बाद रोहित फिर लेट से कोचिंग गया। पर वो उस दिन रूबी को नहीं ढूंढ पा रहा था।। क्योंकि रूबी ने कोचिंग आना छोड़ दिया था ,ऐसा दुर्गेश ने रोहित को बताया।लड़कों को आंख में आंसू तभी आता है जब वो अंदर से पूरी तरह टूट चुके होते हैं ।पर उस वक़्त वो आंसू भी नहीं बहा पा रहा था, इस डर से की रूबी की कहीं बदनामी ना हो जाये।संयोग तो देखिए उसी दिन रोहित के पापा सर से मिलने आ गये। क्लास खत्म होते ही सर रोहित को बुलाये अपने दोनों हाथों से आंख पोछते हुए रोहित सर के पास गया।सर ने बड़े शालीनता से रोहित को समझाने की कोशिश की "ज्यादा चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है पढ़ाई मन से करो।बोर्ड का परिणाम अच्छा ही आएगा" ये कहते हुए रोहित से जाने को कह दिया। रोहित के पापा को सर ने बताया "बोर्ड का प्रेशर है इसीलिये कुछ तनाव में होगा।" दोनों साथ में चाय पी और वो वहाँ से निकल गए।लेकिन रोहित उस दिन पूरी तरह टूट चुका था।मन ही मन बीते हुए कल को कोसकर घर को निकला।पर एक सवाल उसे सता रहा था कि "वो क्यों कोचिंग आना छोड़ दी?" कोचिंग आना जाना लगा रहा।मिलने की तमन्ना हर रोज़, हर पल उसे हो रहा थी।खुद की बदनामी से ज्यादा उसे रूबी के बदनामी का डर सता रहा था ।दुर्गेश भी इस हालात से रोहित को निकालने की कोशिश कर रहा था पर रूबी क्यों नहीं आयी ये दोनों में से कोई नहीं जानता था।


कहते हैं कि वक़्त सभी घाव का मरहम होता है। बरसात भी अपनी करवटें बदलता गया और वक़्त बीतता गया इधर रोहित उसके यादों के सहारे जीता चला जा रहा था । बोर्ड की परीक्षा में 4-5 महीना बचा हुआ था।रोहित भी अच्छी तरह जानता था कि अब वो कोचिंग नहीं आयेगी। पढ़ाई तो रोहित ने अब शुरू कर दी थी लेकिन वो होटों पे मुस्कान, हँसी के ठहाके फिर से नहीं लौटा।दुर्गेश काफी हद तक कामयाब हो रहा था रोहित की इस नाकामयाबी से निकालने में। समय बीत गया बोर्ड एग्जाम आ गया। बैच समाप्त होने को था।रूबी आयी थी अपनी एडमिट कार्ड लेने हाईस्कूल , ये बात दुर्गेश रोहित को बता रहा था।पर रोहित ने बस यही पूछा एग्जाम सेंटर कहाँ पड़ा है उसका ?? दुर्गेश ने किसी कन्या हाईस्कूल का जिक्र किया जो कोचिंग से 18 किलोमीटर था। पर रोहित रूबी से मिलना अब मुनासिब नहीं समझा। शायद वक़्त के साथ प्यार का खुमार नीचे ढह चुका था लेकिन रोहित और रूबी दोबारा कभी मिले नहीं एक-दूसरे से।

साल-दर-साल बरसात तो आयी पर रूबी रोहित के जीवन मे कभी नहीं आयी ।रोहित आज मल्टी नेशनल कंपनी का एम्प्लॉयर है। लेकिन शहर के चकाचौंध भरी जिंदगी से अलग होके कहीं बैठता है तो कहीं न कहीं *वो और बरसात* की तन्हाई में अपने आप को अकेला ही महसूस करता है। आज भी अफसोस उस दिन के लिए होता है कि काश! मैं उस दिन उसके प्यार को स्वीकार कर लेता , उसे रुकने को ना कहता।मैं भी उसे बता पता कि मैं भी तुम्हें उतना ही चाहता हूँ जितना कि तुम मुझे।तो वो मेरे पास रहती।



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