वक्त।
वक्त।
उसके मन में उथल पुथल मची हुई थी। शहर में चक्का जाम कर दिया गया था और इसी कारण उसकी कार एक जगह पर ही अटक गई थी।
"हे भगवान। जल्दी से रास्ता खुलवा दो, आज मेरे पास वक्त नहीं है, प्लीज हेल्प मी।" संजय मन ही मन प्रार्थना कर रहा था।
"तुम्हारे पास कभी वक्त था ही नहीं उनके लिए तो आज कैसे मिल सकता है ?" संजय के अंदर से आवाज आई।
संजय आत्मग्लानि से भर गया। सच ही तो था जो उसका मन कह रहा था। उसने कभी मेघा और अपने बच्चों को वक्त नहीं दिया। उसके लिये पैसा कमाने से ज्यादा जरूरी और कुछ था ही नहीं। उसे बच्चों के लिए एक अत्याधुनिक सुविधाओं वाली जिंदगी चाहिए, अपने और मेघा के लिए सुरक्षित भविष्य चाहिए था। बिना पैसे के यह कहाँ मुमकिन था। उसके लिए कम्पनी में मेहनत करना, देर रात तक ऑफिस में बैठकर काम करना और कम्पनी के काम से महीनों तक घर से बाहर रहना पड़ता था।
मेघा और बच्चे क्या कर रहे हैं, किस तरह रह रहे हैं, यह सब कुछ सोचने की फुर्सत नहीं थी संजय को। उन्हें संजय के साथ की कितनी जरूरत थी, यह बात संजय ने कभी सोची ही नहीं।
लेकिन अब जब डॉक्टर साहब का फोन संजय के पास आया कि मेघा का ऑपरेशन करना होगा तो संजय अवाक रह गया।ऐसा क्या हो गया जो मेघा का ऑपरेशन हो रहा है ? खैर संजय आनन-फानन में ऑफिस से निकल गया यह कहकर कि वह जल्दी ही किसी के हाथों लीव एप्पलीकेशन भिजवा देगा।
वह कार में बैठा हुआ यही सब कुछ सोच रहा था कि रास्ता खुल गया था। वह जल्दी ही अस्पताल में पहुंच चुका था। वहाँ पहुँचकर उसे पता चला कि मेघा को काफी समय से कमर दर्द की शिकायत थी लेकिन कल रात दर्द काफी बढ़ गया और जब जाँच की गई तो पता चला कि उन्हें स्लिप डिस्क की समस्या हो चुकी है जो ऑपरेशन से ही ठीक हो सकता है और उसके बाद कम से कम तीन महीने तक बेड रेस्ट करना होगा।
संजय को अब आभास हुआ कि स्थिति कितनी गम्भीर है। मेघा ने अकेले ही सब कुछ संभाला था और बच्चों की जिम्मेदारी भी अकेले ही उठाई थी। उसने कभी कोई समस्या संजय के सामने रखी ही नहीं, शायद वह जानती थी कि सजंय यही कहेगा कि मेरे पास इन चीजों के लिए वक्त नहीं है।
लेकिन अब संजय ने कुछ और ही सोच लिया था। उसने अपने ऑफिस से ट्रांसफर ले लिया और पूरा समय मेघा और बच्चों के साथ बिताया। वह अपने ऑफिस का काम भी अपने घर पर ही देखने लगा।
उसने तय किया कि मेघा के पूरी तरह से ठीक हो जाने के बाद वह महीने में एक बार कही बाहर जरूर लेकर जाया करेगा और ऑफिस से आने के बाद सारा समय मेघा और बच्चों के लिए होगा।
अब उसे अपने जीवन में यह शिकायत कभी नहीं रहेगी कि उसने अपने परिवार को सब कुछ दिया, नहीं दिया तो अपना वक्त।