वक्त-वक्त की बात

वक्त-वक्त की बात

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"अबे ओ बुड्ढे,रुक साले," ट्रैफिक के शोरगुल में चलती हुई रोड पर मैंने उसे जोर से पुकारा था। वह किसी की बाइक के पीछे बैठा हुआ था। अगर शालीनता से नाम से पुकारता तो हो सकता था उसका ध्यान न जाता। कॉलोनी में साथ खेले-कूदे और फिर कॉलेज में भी साथ ही थे। आज इतने वर्षों बाद दिखा तो रूह में जल उठे बुझती हुई यादों के दिये।

अस्सी के उत्तरार्ध में पान की गुमटियों पर खड़े होकर सिगरेट पीना। सोचते थे इससे हमारी दार्शनिकता, कल्पनाशीलता, रचनात्मकता, संवेदनशीलता, मानवीयता और जाने कौन-कौन से ता में वृद्धि होती है। इकतरफा प्रेमी हृदय की भी जब दास्ताँ लिखी जाएगी तो हमारा नाम अव्वल होगा।सपनों के घोड़े बे-लगाम दौड़ते थे।तय था कि जो भी ज़िन्दगी में आएगी उसे बेपनाह प्यार देंगे।

पेंतालिस की उम्र में ही उसकी दाढ़ी सफेद हो चुकी थी जो उसे बुद्धिजीवियों की श्रेणी में लाने में सहायक थी। एम.फिल. के बाद किसी शिक्षा मिशन में पोस्टिंग दूसरे प्रदेश में हो गयी थी।

उसने आवाज पर मुड़कर देखा और पहचानते हुए गाड़ी साइड में रुकवाई। दौड़ते हुए आकर गले लग गया। और फिर फौरन बोला, '’चल,एक-एक फुक्की लगाते हैं।" 

 बिटिया के जन्म के बाद उसको पैसिव स्मोकिंग से बचाने के लिए मैं धूम्रपान छोड़ चुका था। परंतु आज दोस्त के आग्रह पर बरसों बाद मैं फुक्की के लिए न नहीं कह सका।

मैंने उसे याद दिलाया," तेरी वो मैराथन हर्डल दौड़ मुझे आज भी याद है जब तेरे पिताजी ने तुझे पान की गुमटी पर सिगरेट पीते देख लिया था।"

"हाँ, यार मेरे बाप में भी गजब का स्टेमिना था! घर तक दौड़ाया था। फिर सुताई की थी सो अलग।" 

"हाँ यार, अपन तो कॉलेज में पहुँच गए थे तब डरते-डरते धूम्रपान शुरू किया था, आजकल तो स्कूल से ही शुरू हो चुका है।"

अब ये पान की गुमटी नहीं है। 'पान री ढाणी' है जिसके नाम से ही राजस्थानी राजसी वैभव टपकता है। काले ग्रेनाइट का चमचमाता काउंटर,अंदर एल.ई.डी. लाइट्स और टेलीविज़न है। कोल्डड्रिंक्स और स्नैक्स की भी व्यवस्था है। बैठने के लिए कुर्सियाँ भी हैं। युवा कर्मचारियों के गणवेश भी निर्धारित हैं। 

अब सभ्रांत लोग भी सपरिवार यहाँ आने लगे हैं। बीस रुपये का पान सीधे मुँह में ही खिलाया जाता है। श्रीमतीजी की पान खाने की जिद पर गुमटी पर जाना और ऐरे-गेरे लोगों की घूरती हुई नजरों का सामना करने से मुक्ति मिल चुकी है। 

एक नवयुवती को सामने कुर्सी पर बैठा देखकर हम दोनों के हाथ लाइटर से सिगरेट जलाते हुए ठिठक गए। हम सार्वजनिक स्थान पर फुक्की का विचार स्थगित करने ही वाले थे कि नजर युवती के चेहरे से फिसलती हुई नीचे चली गयी। दायाँ हाथ मोबाइल में व्यस्त था और बाएँ में अगले कश के इंतजार में सिगरेट धुआँ रही थी।

हमारी आँखों ही आँखों मे इशारे हुए जो कह रहे थे कि 'दुनिया बदल गयी प्यारे, आगे निकल गयी प्यारे।' अंगूठे ने आत्मविश्वास से लाइटर प्रज्वलित कर दिया था।


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