विशिष्ट तोहफ़ा

विशिष्ट तोहफ़ा

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"अरी केतकी तुमने पाँचो बेटियों को बुला तो लिया मगर उनके लिए पोते के होने की खुशी में देने वाले नेग वेग का भी इंतजाम कर लिया है या नहीं ?" जेठानी मधुलिका ने ठिठोली करते हुए देवरानी केतकी से पूछा ।

"अरे क्यों नहीं मंगाती अपनी बेटियों को उनकी दुआओं से ही तो मुझे पोते का मुँह देखने को मिला है ।"केतकी ने अलमारी खोलकर साड़ियाँ बेड पर रखते हुए कहा ।

"अरे वाह बनारसी साड़ियाँ !"मधुलिका ने आश्चर्य से साड़ी देखते हुए कहा ।

"हाँ और साथ में सभी के लिए सोने की एक एक अँगूठी भी है ।"केतकी ने गर्व से कहा तो सभी मुस्कराने लगे।

"और हाँ ताई जी आपके लिए भी लाईं हैं माँ साड़ी"। छोटी बेटी ने खुशी से चहकते हुए कहा।

"अरे लाती कैसे नहीं ...नहीं लाती तो मैं तेरी माँ की साड़ी न उतार लेती ।"ताई की बात सुनकर पूरा हॉल ठहाकों की तीव्र ध्वनि से गूँज उठा।

"चार साड़ी एक सी हैं और यह पाँचवी साड़ी अलग ...!"

"अरे हाँ यह बड़की की है। चार साड़ियाँ पाँच पाँच हजार की हैं और यह सात हजार की है। "केतकी ने जेठानी की बात को बीच में ही काटते हुए कहा।

"हाँ भई यह बात तो माननी पड़ेगी केतकी तुम्हारी हमेशा बड़की बिटिया को विशिष्ट तोहफ़ा ही देती हो ...मजाल है कोई उँगली उठा तो दे तुम पर"। रिश्ते की मौसी ने केतकी की प्रसंशा करते हुए कहा। केतकी के चेहरे पर मुस्कान आ गयी।

उधर कौने में बैठी बड़की बिटिया की आँखों में आँसू आ गये। दिल आहत हो गया फिर से।

"क्यों माँ बार बार मुझे विशिष्ट तोहफ़ा देकर सौतेली होने का आभास कराती हो ? सिर्फ जहां को दिखाने के लिए न। हमारा रिश्ता कितना मजबूत है फिर भी बार बार मुझमें और मेरी अन्य चार बहिनों में भेदभाव क्यो?"


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