STORYMIRROR

Neeraj pal

Inspirational

4  

Neeraj pal

Inspirational

विचारों की दुर्गन्धि

विचारों की दुर्गन्धि

3 mins
420

एक बार एक राजा एक संत के दरबार में जाने लगा। उनकी सुंदर बातें सुनने और निकट बैठने का आनंद लेने लग गया। उसे यह भी अनुभव हुआ कि है पूर्ण संत है, मैं जो चाहूँगा वह कार्य भी इनकी कृपा से पूर्ण हो जाएगा। सब कुछ होने पर एक ही कमी थी कि घर में संतान नहीं थी। यही एक वासना उसे सताया करती थी। सोचा कि यदि यह महलों में चलें और रानी को आशीर्वाद दें तो संभव है पुत्र का मुख देख सकूँ। बस एक दिन प्रार्थना की-" प्रभु! एक दिन मेरे भी घर को पवित्र कीजिए।" जैसे- तैसे महात्मा ने स्वीकार कर लिया। दिन निश्चित हुआ। राजा ने उनके आने की पूरी तैयारी की। प्रथम "स्वच्छता" का ख्याल किया कि महिलों में कोई गंदगी न रहे। सब जगह साफ की गई। कमरा जिसमें उन्हें बिठाना था ,तत्काल सफेदी कराई गई। सुगंधित वस्तुयें रक्खी गई। तब महात्मा को लेने राजा स्वयं गए। बड़े सुंदर मार्ग से उन्हें लाया गया ।महिलों में पहुंचे ,उसी कमरे में बैठाया गया। धूप- दीप आरती की गई ।रानी ने उनके चरण धोए। महात्मा कुछ देर बैठ कर कहने लगे- राजा अब यहॉं से जल्दी चलो। बड़ी दुर्गन्धि आ रही है ।राजा ने चारों और फिर देखा, कोई दुर्गन्धि नहीं थी। वह बोला- महाराज यहॉं तो कोई दुर्गन्धि की वस्तु नहीं। वह बोले- नहीं,- नहीं बाहर चलो।

 राजा उन्हे लेकर चल दिया। महात्मा अब वह मार्ग छोड़ बाजार के मार्ग की तरफ चले। राजा ने कहा -महाराज, यह मार्ग बड़ा गंदा है, आप उधर होकर ना चले। वह नहीं माने चलते गए। राजा भी पीछे- पीछे चल रहा था। कुछ दूर चल कर महात्मा रुक कर खड़े हो गए। राजा ने कहा- यहॉं चमड़ा तैयार किया जाता है, महाराज यहॉं न रुकिये, यह मोचियों का बाजार है, चमड़े की भारी दुर्गन्धि आ रही है। महात्मा बोले- नहीं,- नहीं यहाँ तो कोई दुर्गन्धि नहीं।

 एक मोची को बुलाकर पूछा- क्यों भाई या दुर्गन्धि आ रही है क्या? वह बोला- नहीं महाराज! यहॉं ऐसा कुछ नहीं ।हम लोग तो बराबर यहॉं काम करते हैं ,दुर्गन्धि होती तो हम कैसे काम करते ।इस प्रकार चलते हुए महात्मा अपनी कुटिया में पहुँचे। राजा को संकेत करते हुए बोले- कि आपने अपने महलों की दुर्गन्धि को जाना? जैसे मोची चमड़े की दुर्गन्धि को नहीं जानता था, इसी प्रकार आप अपने महलों के विचारों की वास( दुर्गन्धि )को नहीं देख पाते हैं। आपके महलों में में तो मोची की दुर्गन्धि से भी अधिक दुर्गन्धि भरी हुई थी। मनुष्यों के दु:खों की कराहें, धन की मादकता और तेरी कामनाओं के अंबार इतनी दुर्गन्धि दे रहे थे कि बैठना कठिन हो गया ।बस जहाँ "सुन्दर विचार" हैं वह स्वर्ग से भी ऊँचा होता है।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational