जीवन क्या हैं?
जीवन क्या हैं?
जीवन तो एक ऐसा ख्वाब है जिसे हर कोई हकीकत बना कर जीना चाहता है। क्योंकि हम सभी अपने जीवन से बहुत कुछ चाहते हैं, लेकिन कई बार हमारी कम मेहनत और बेकार नसीब के कारण हमें सब कुछ नहीं मिल पाता। हमारी आशाएँ निराशाओं में बदल जाती हैं। हम भगवान को दोष देते हैं कि हमारे जीवन में जो कुछ भी हुआ है उसका कारण ऊपर वाला ही है। हमारे जीवन में जो भी घटित होता है उन सबका दोस्त हम भगवान को दे देते हैं, लेकिन यह बात कहां तक सही है? अपने जीवन में हुए किसी गलत का दोष हम किसी और को कैसे सकते हैं?
क्योंकि हमारे जीवन में जो कुछ भी घटित होता है, वह कहीं न कहीं हमारे ही कर्मों का परिणाम होता है, हमारी ही सोच का नतीजा होता है। क्योंकि मनुष्य का जीवन कर्म प्रधान है। इसलिए कर्मों से हमारा भाग्य जुड़ा है। हर कोई जीवन जीना चाहता है, अपने ढंग से, अपने हिसाब से और
अपने-अपने तौर तरीके से, लेकिन सही मायने में जीवन कैसे जिया जाता है? अच्छे जीवन का मतलब यह नहीं कि वह जीवन सिर्फ हँसी, खुशी और सुख, समृद्धि से भरा हुआ हो बल्कि एक अच्छे जीवन का मतलब यह है कि एक ऐसा जीवन जो दूसरों को भी खुशी दे सके। एक ऐसा जीवन जो खुद के और सबके लिए सुखदाई हो।
मेरे ख्याल से जीवन की परिभाषा प्रेम के संदर्भ में की जा सकती हैं-
"जीवन एक ऐसा प्रेम है, जिसे पाना हर कोई चाहता
लेकिन जिसे छोड़कर, हर कोई पछताता है"
जीवन सिक्के की भाँति होता है। सुख और दुख इस जीवनरूपी सिक्के के दो पहलू हैं। तो कभी यह सिक्का सुख की तरफ से गिरता है तो कभी यह दुख की तरफ से गिरता है। आने दोनों ही होते हैं बारी-बारी से।
जीवन एक ऐसी अमूल्य धरोहर है जिसे जीने के लिए हम पूरे जीवन प्रयत्न करते हैं। कुछ लोग चाहते हैं कि अच्छे कर्मों के द्वारा हम इतिहास रचे और कुछ बुरे कर्म करते-करते ही मर जाते हैं। जीवन एक होता है और हमें एक जीवन में ही कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे वह जीवन साकार हो जाए। उस जीवन का अर्थ सिद्ध हो जाए।
जीवन एक ही होता है और एक बार ही मिलता है। इसलिए इस जीवन को ऐसे जिए कि जीवन के सारे मायने ही सिद्ध हो जाए।
जीवन सबके लिए अलग-अलग मायने रखता है बच्चों के लिए जीवन खुशी है, युवाओं के लिए जीवन मेहनत है और बुजुर्गों के लिए जीवन जिम्मेदारी है।
इस दुनिया में जीवन को संवारने के लिए अनेक संसाधन उपलब्ध हैं। अपने जीवन को संवारने के लिए हम वर्तमान से पहले भविष्य की चिंता करते है। उसके लिए हम शिक्षा ग्रहण करते हैं, एक लगी बंधी आमदनी की नौकरी ढूंढते हैं और भी बहुत कुछ करते हैं जिससे हमारा आने वाला समय ठीक व्यतीत हो। हमें किसी के आगे हाथ न फहलाने पङे। लेकिन यह सब तो शारीरिक सुख हैं, हमारे आत्मिक सुख नहीं। हम अपने आत्मिक सुख की ओर कोई ध्यान नहीं देते और इस शारीरिक सुख को ही सब कुछ मानकर अपना जीवन व्यतीत करते हैं, लेकिन यह कहां तक सही है। मन की संतुष्टि भी उतनी ही आवश्यक है जितने की तन की।
आत्मिक सुख हम कैसे प्राप्त करते हैं? आत्मिक सुख को प्राप्त करने करने के लिए अच्छे कर्म किए जाएँ, दूसरों की मदद की जाए। क्योंकि दूसरों के लिए किए गये काम ही आत्मिक सुख प्रदान करते हैं। खुद के लिए तो हर कोई करता है लेकिन दूसरों के लिए कुछ करें, वही असली जीवन है।
एक कहावत है, "जो जैसा कर्म करता है, उसे कर्मों के अनुसार वैसा ही फल प्राप्त होता है" लेकिन आज के समय में मैंने यह कहावत गलत सिद्ध होती देखी हैं।
आज के समय में तो जो अच्छे कर्म करता है, उसे ही सबसे ज्यादा बुरा भला, अपमान और जलालत सहनी पड़ती है और जो बुरे कर्म करता है उसका सब जगह मान-सम्मान और इज्जत होती है। ऐसे परिणाम को देखते हुए तो क्या अच्छे कर्म करने वाला भी बुरे कर्म करने लगे?
ऐसा नहीं होता है क्योंकि एक और कहावत है, "चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात"। कयोंकि गलत कितना भी अच्छा हो, सुंदर हो, बलवान हो या कुछ भी हो सच का स्थान कभी नहीं ले सकता। सच तो वह अटल सत्य हैं, जो कभी किसी के मिटाए मिट नहीं सकता। क्योंकि भगवान के घर देर है पर अंधेर नहीं। बुरे कर्म करने वाले की चांदनी चार दिन की रहती है और अच्छे काम करने वाले के दिन जब बदलते हैं तो उसकी चांदनी हजारों सालों तक बनी रहती है। अच्छे इन्सान को भले ही कितने भी दुःख, परेशानियाँ क्यो न मिल जाए, पर वो उसका निडरता से सामना करता है कयोंकि उसके मन में विश्वास होता है कि आज नहीं तो कल उसकी सच्चाई की जीत जरूर होगी।
यह अनुभव मेरा व्यक्तिगत अनुभव है। मैंने जीवन के इस दुःख भरे पहलु को बहुत ही करीब से देखा है। एक ऐसा सच्चा इन्सान जिसमें सब के साथ भलाई की, अच्छाई की लेकिन सब लोगों ने उसे परेशान किया।
उसके साथ जितना बुरा हो सकता था वह सब किया।
भगवान श्रीराम का वनवास भी 14 साल का था लेकिन इस सच्चे इंसान का वनवास तो 20 साल का हो गया है और इस सच्चे इन्सान और महान व्यक्ति का नाम है- मेरे पापा।
जब से मैंने होश संभाला है, अपने पापा के संघर्ष को जाना है, तब से मेरा जीवन ही बदल गया है। जीवन के प्रति मेरा नजरिया ही बदल गया है। मेरे पापा ने अपने जीवन में बहुत दुःख, परेशानियों का सामना किया है। उनहोंने बहुत अपमान, बहुत जलालत सही है, पर फिर भी जीवन के इस कठिन दौर में उन्होंने कभी हार नहीं मानी। अपनी अच्छाई नहीं छोड़ी और हमेशा सच्चाई के रास्ते पर चलते रहे और यह विश्वास रखा कि सब अच्छा होगा। इस संघर्षमय जीवन में दृढ़ रहने की शक्ति मेरी मम्मी ने दी हैं। चाहे पापा के साथ कितने भी दुःख और परेशानी क्यों ना रही हो पर मम्मी ने कभी पापा का साथ नहीं छोड़ा। सारी दुनिया पापा के खिलाफ हो गई पर मम्मी हमेशा पापा के ही पक्ष में रही। क्योंकि मम्मी भी जानती थी कि उनके पति बहुत अच्छे हैं, वह तो बस भलाई के मारे हुए हैं। क्योंकि सच्चाई के रास्ते पर इंसान को अकेले ही चलना पड़ता है और जिंदगी के सफर को भी इंसान को अकेले ही तय करना होता है पर जब कोई सच्चा हमसफ़र हमारे साथ होता है तो "जीवन की मुश्किलें कम तो नहीं, पर जिंदगी की राहें आसान जरूर हो जाती हैं" और हमारे माता-पिता एक दूसरे के सच्चे हमसफर, सच्चे साथी हैं।
हमारा इस दुनिया में अपना कोई नहीं है। ना मामा, ना मौसी, ना चाचा, ना बुआ, ना नाना, ना नानी और दादा-दादी बहुत अच्छे थे, पर वह दुनिया से बहुत जल्दी ही चले गए और बाकी रिश्तेदार है तो पर उनका होना ना होने जैसा ही है। इसलिए हम पाँच जन हमारे माता-पिता, हम दो बहनें और एक भाई हैं जो बस एक दूसरे के लिए हैं। हंसी हो, खुशी हो, दुःख हो, परेशानी हो लेकिन हर स्थिति में हम पाँचो एक-दूसरे के साथ हैं।
अब तो बस हमारी यही इच्छा है कि हमने अपने माता-पिता को बहुत संघर्ष करते देखा है इसलिए हम तीनों बहन-भाई बहुत अच्छे से पढ़ लिखकर अच्छे अफसर बने और अपने माता-पिता को दुनिया का हर सुख दे सके।
जिस सच्चे अनुभव को मैंने आपके साथ आज साझा किया है, वह अनुभव बहुत गहरा है। क्योंकि ऐसा जीवन जीना बहुत कठिन होता है, जिस जीवन में भगवान के अलावा कोई दूसरा सहारा ना हो। जब व्यक्ति के साथ उसके अपने खड़े होते हैं तो वह कितनी ही कठिन-से-कठिन परिस्थिति का सामना कर जाता है और शत-प्रतिशत उस परिस्थिति से निकल जाता है। यहां तक कि वह भगवान से भी लड़ जाता है, लेकिन जब कोई अपना नहीं होता तो सारी दुनिया ही गैर हो जाती है।
सबके लिए जीवन का अर्थ है भिन्न-भिन्न हैं। जीवन को लेकर सबका नजरिया भी अलग है, लेकिन फिर भी मैं अपने अनुभव से यही कहना चाहतीं हूँ कि "जीवन वही धन्य है, जिसमें अपने हैं, जिसमें सपने हैं, जिसमें बाहर है, जिसमें परिवार है, जिसमें मन की शांति है, जिसमें ना कोई ईर्ष्या प्रवृत्ति है, जिसमें एकता है, जिसमें समरसता है, जिसमें ना कोई द्वेष है, जिसमें ना कोई क्लेश हैं, जिसमें हर्ष है, जिसमें संघर्ष है, जिसमें मान है, जिसमें सम्मान है, जिसमें प्रेम है, जिसमें भगवान हैं।"
" जन्म जीवन है और जीना जिंदगी
जन्म से जीवन मिले, जीने से जिंदगी
खुशी राज है इस जीवन का, तो जी ले जिंदगी, तो जी ले जिंदगी।