सच्चा परिवार !
सच्चा परिवार !
परिवार!
परिवार एक ऐसा अनमोल रतन हैं, जिसकी तलाश जीवन का हर मुसाफिर करता हैं। परिवार को इस धरती का स्वर्ग कहा गया हैं। परिवार केवल रक्त संबंधियों तक ही सीमित नहीं, जहाँ भी आपने रहते हैं, वहाँ सब जगह परिवार हैं। व्यक्ति परिवार में ही संस्कार और सभ्य तौर-तरीके सीखता हैं। एक व्यक्ति का सर्वोत्तम समाजीकरण उसके परिवार में ही होता हैं। अगर व्यक्ति का परिवार उसके साथ हैं, तो वह हर मुश्किल से मुश्किल परिस्थिति का सामना कर लेता हैं।
हम आपको एक ऐसे ही परिवार की कहानी से रूबरू कराने वाले हैं, जो गरीबी में भी एक साथ बना हुआ हैं। जिसके सदस्य एक-दूसरे से बहुत प्यार करते हैं।
एक शहर में एक व्यक्ति रहता हैं। उसका नाम विष्णु और उसकी पत्नी का नाम लक्ष्मी हैं। उनके तीन बच्चे हैं। दो बेटी और एक बेटा। बड़ी बेटी का नाम देवयानी, छोटी बेटी का नाम देविका हैं और बेटे का नाम देवांश हैं। विष्णु अपने परिवार के साथ शहर में, एक किराए के घर में रह रहा है। उसका प्राइवेट काम हैं, लेकिन काम भी ऐसा जिसमें पैसे लगाने पर ही कुछ प्राप्त होता हैं। विष्णु की गाँव में कोई जमीन-जायदाद नहीं हैं। वह एकदम अकेला हैं।
उसका कोई परिवार भी नहीं हैं और ना ही उसकी पत्नी का और जो कुछ रिश्तेदार भी थे, वह सब विष्णु की गरीबी के कारण उससे दूर ही रहते थे और ज्यादा उसके घर आता-जाता भी नहीं था। इस महामारी का कहर विष्णु और उसके परिवार पर भी बहुत भारी पर पड़ा। उसकी आमदनी बंद हो चुकी थी। महामारी के चलते, उस पर बहुत से लोगों का कर्ज भी हो गया था। लॉकडाउन के कारण विष्णु का काम बहुत पिछड़ गया था। वह बहुत ही कठिनता से अपने परिवार का पालन पोषण कर रहा था। एक दिन वह बहुत निराश होकर बैठा हुआ था। उसकी पत्नी ने उसे देखा और पूछा कि क्या हुआ जी? उसने कहा जिन लोगों के पास भी मेरे पैसे हैं, वह लोग फोन नहीं उठा रहे हैं और कुछ ने तो पैसे देने से ही इनकार कर दिया हैं। विष्णु बोला, "अब तुम ही बताओ भाग्यवान, मैं अपने बच्चों का भरण पोषण कैसे करूँगा? उसकी पत्नी ने कहा," आप मेरा मंगलसूत्र भेज दीजिए और जो भी पैसे आए उससे बच्चों के लिए कुछ खाने का सामान ले आइएगा।" विष्णु ने कहा," नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकता।" विष्णु ने दोबारा अपनी पत्नी से कहा " लक्ष्मी, हर जगह से इतनी मनाही सुनकर और हर काम से निराशा पाकर, मैं बहुत ही हारा हुआ महसूस कर रहा हूँ, जैसे मैं अपने बच्चों के लिए कुछ भी नहीं कर सकता।"
" मैं अब इतना हताश हूँ कि मेरा मन आत्महत्या करने का कर रहा हैं। मेरा एक जीवन बीमा भी चल रहा हैं। मेरे मरने के बाद तुम्हें उससे ठीक-ठाक पैसे मिल जाएंगे। कम से कम तुम्हारा और बच्चों का जीवन तो सुधर जाएगा।" लक्ष्मी विष्णु को समझाती हैं और कहती है कि ऐसा करने के बारे में कभी सोचना भी मत। हमारे बच्चों का इस समय हमारे सिवा कोई सहारा नहीं हैं। सारे रिश्तेदारों के बारे में तो आपको पता ही हैं कि हमारे बाद हमारे बच्चों को कोई देखने वाला नहीं हैं। हमारे बच्चों को इस समय हम दोनों की बहुत जरूरत हैं। विष्णु कहता है," तुम सही कह रही हो, मुझे माफ कर दो जो मैंने यह सब तुम से कहा।" उसके बाद विष्णु लक्ष्मी को समझाने के लिए धन्यवाद कहता हैं। तभी उसके तीनों बच्चे बाहर से खेल कर घर में वापस आ जाते हैं। विष्णु की बड़ी बेटी देवयानी उससे पूछते हैं," क्या हुआ पापा?" विष्णु कहता हैं," कुछ नहीं बेटा। बस पैसे नहीं मिलने की वजह से ही थोड़ा परेशान हूँ।" देवयानी कहती हैं, " बस इतनी सी बात, तो मुझे बता दिया होता।" पापा ने कहा," मतलब!" देवयानी ने कहा," पापा मैंने एक प्रतियोगिता में प्रतिभाग किया था, जिसमें मुझे फर्स्ट प्राइज मिला हैं और प्रथम पुरस्कार में मुझे दस हजार मिले हैं।
वह सब पैसे मेरे खाते में आ गए हैं। आप जाइए और मेरे खाते से उन पैसों को निकाल लाइए और आपका जो भी काम रुका हुआ हो, वह सब कर दीजिए। यह पैसे आपके ही हैं।" यह सब सुनकर विष्णु की आंखें भर गई और अपनी बेटी को गले से लगा लिया और अपनी पत्नी से कहने लगा देखो, हमारे बच्चे कितने अच्छे हैं और ऐसे परिवार को पाकर मैं धन्य हो गया हूँ, जो मुझसे इतना प्यार करता हैं।
परिवार का सही मायने में यही मतलब होता हैं। चाहे कैसी भी परिस्थिति क्यों ना आ जाए पर, कभी भी अपने परिवार का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। एक परिवार में जितने भी सदस्य रहते हैं, उन सभी का यह परम कर्तव्य होता है कि वह सभी हर हाल में एक-दूसरे से प्यार करें और यथासंभव सहायता करें और परिवार के एक अच्छे सदस्य का दायित्व निभाए।