वड़वानल - 67

वड़वानल - 67

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फॉब हाउस में गॉडफ्रे, रॉटरे और लॉकहर्ट बेचैनी से देर रात तक बैठे थे।

‘‘आज सुबह ब्रिटिश सैनिकों द्वारा हिन्दुस्तानी नौसैनिकों पर की गई गोलीबारी के कारण कांग्रेस के नेता चिढ़ गए और उन्होंने हिन्दुस्तानी नौसैनिकों को समर्थन देने की ठान ली तो ?’’ रॉटरे ने अपने मन का सन्देह व्यक्त किया।

‘‘यदि ऐसा हुआ तो हमारे लिए परिस्थिति और ज़्यादा गम्भीर हो जाएगी।’’ गहरी साँस छोड़ते हुए गॉडफ्रे ने जवाब   दिया।

‘‘नौसैनिकों को फिलहाल तो कांग्रेस का समर्थन प्राप्त नहीं है। इस दृष्टि से वे अकेले पड़ गए हैं। मैं नहीं सोचता कि कांग्रेसी नेता कल उन्हें समर्थन देंगे। और, मान लो, यदि समर्थन दे भी दें तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। कांग्रेस उनके साथ है यह समझने से पहले ही नौसैनिकों को नेस्तनाबूद कर दिया जाएगा। कल बिना किसी दयामाया के इस बन्द को और इस विद्रोह को कुचल दिया जाएगा।’’  लॉकहर्ट की आवाज़ में चिढ़ थी।

‘‘जितना आप समझ रहे हैं, यह उतना आसान नहीं है। मैंने पुलिस कमिश्नर बटलर से कांग्रेसी, लीगी और कम्युनिस्ट नेताओं की हरकतों पर नज़र रखने और मुझे इसकी रिपोर्ट देने को कहा है। उन्हीं के फोन की मैं राह देख रहा हूँ ।’’ गॉडफ़्रे ने कहा।

गॉडफ्रे और रॉटरे बेचैनी से चक्कर लगाने लगे । हर मिनट रबड़ की तरह लम्बा खिंचा जा रहा था।

भूतकाल में समा जाने वाले हर मिनट के साथ मन में नाच रहे काल्पनिक भूतों की संख्या बढ़ती ही जा रही थी।

फोन की घंटी बजी और गॉडफ्रे ने अधीरता से फ़ोन उठाया। ‘‘गॉडफ्रे,’’ अपनी आवाज़ की बेसब्री छिपाते हुए गॉडफ्रे ने जवाब दिया।

‘‘मैं बटलर बोल रहा हूँ, सर। मैंने कांग्रेसी, लीगी और कम्युनिस्ट नेताओं की हरकतों की कल दोपहर से रिपोर्ट इकट्ठा की है । उन्होंने अख़बारों को जो निवेदन भेजे हैं, उन्हें इकट्ठा किया है । इस सबसे यह स्पष्ट होता है कि कांग्रेस और लीग न केवल कल के बन्द से दूर रहेंगे, बल्कि वे इसका जमकर विरोध भी करेंगे। कांग्रेस का समाजवादी गुट शायद बन्द का समर्थन करे। कम्युनिस्ट पार्टी ने बन्द का आह्वान किया है। आज लोगों का विद्रोह को जो प्रत्युत्तर मिला है, उस पर अगर गौर किया जाए तो ऐसा लगता है कि कल के बन्द को भी ज़बर्दस्त जवाब मिलेगा। मज़दूर रात को बारह बजे के बाद काम बन्द करके निकल गए हैं इसलिए मिलों के भाग में बन्द का ज़ोर ज़्यादा रहेगा।’’  बटलर ने अपनी रिपोर्ट पेश की।

गॉडफ्रे ने फ़ोन नीचे रख दिया और लॉकहर्ट की ओर देखकर बोला, ‘‘एक रुकावट तो कम हो गई। कांग्रेस और लीग हड़ताल का विरोध करने वाले हैं ।’’ गॉडफ्रे उत्साह से बता रहा था।

 ‘‘जो भी हो, यदि यह हड़ताल कुचल दी जाती है तभी अंग्रेज़ों की हुकूमत कुछ और समय तक टिकी रहेगी, ’’ लॉकहर्ट ने कहा।

दुबारा फ़ोन की घण्टी बजी। गॉडफ्रे ने फ़ोन उठाया।

‘‘गॉडफ्रे।’’

‘‘ब्रिगेडियर साउथगेट, May I speak to General, sir ?'' साउथगेट ने पूछा।

गॉडफ्रे ने लॉकहर्ट को फ़ोन दिया।

‘‘जनरल लॉकहर्ट।’’

‘‘सर, पुणे, नगर, नासिक के सैनिक ठिकानों से ब्रिटिश रेजिमेंट के सैनिक मुम्बई आ गए हैं। अब मेरे पास पच्चीस टैंक, अस्सी ट्रक्स, लाइट मशीनगन्स वाली दस जीपें तैयार हैं।’’

‘‘That's good.'' लॉकहर्ट खुशी से चहका।

‘‘सर,  अब इनको नियुक्त...’’

साउथगेट को बीच में ही रोककर लॉकहर्ट कहने लगा, ‘‘अब मैं जो कह रहा हूँ उसे ध्यान से सुनो - बैलार्ड पियर से अपोलो बन्दर तक सैनिकों की संख्या बढ़ा दो, इस हिस्से में दस टैंक्स तैयार रखो। मैं सुबह चार बजे से सारे ट्रक्स को रास्तों पर देखना चाहता हूँ। हर ट्रक में पन्द्रह से बीस सैनिक होंगे रायफ़ल या मशीनगन समेत। ये ट्रक परेल से अपोलो बन्दर तक के भाग में घूमेंगे और उन्हें Shoot at sight की ऑर्डर दे दो। मुम्बई के लोगों और सैनिकों में ऐसी दहशत फैलनी चाहिए कि वे फिर कभी बन्द, हड़ताल या विद्रोह का नाम तक न लें।‘’ लॉकहर्ट ने साउथगेट को हुक्म दिया।

‘‘सर, इतनी कठोर कार्रवाई के परिणाम...’’  रॉटरे ने पूछा।

‘‘मुझे सर एचिनलेक ने सिर्फ चौबीस घण्टों की मोहलत दी है। इस मोहलत में मैं अन्य किसी भी बात का विचार नहीं करूँगा।’’ लॉकहर्ट की आवाज़ में बेफ़िक्री थी। कल की सफ़लता का उसको यकीन हो गया था।

फॉब हाउस का वातावरण अब पूरी तरह बदल गया था। अभी कुछ देर पहले का तनाव ख़त्म हो गया था और एक उत्साह का माहौल बन गया था।

रॉटरे की मेज़ पर पड़ा लाल फोन बजने लगा। रॉटरे समझ गया कि ये हॉट लाईन है और सर कोलविल लाइन पर है। उसने भागकर फोन उठाया।

''Good morning sir, Rautre Speaking.''

 ‘‘आज लीग के मुम्बई राज्य के प्रमुख, मि. चुंद्रिगर और मुम्बई प्रदेश कांग्रेस के सेक्रेटरी, मि. एस. के. पाटिल मुझसे मिलने आए थे। उन दोनों ने इस गड़बड़ी वाली परिस्थिति पर चिन्ता व्यक्त करते हुए यह इच्छा प्रकट की कि ये परिस्थिति टाली जानी चाहिए। इस काम के लिए उन्होंने पुलिस की सहायता के लिए अपने स्वयंसेवक देने की पेशकश की है। मैंने मुम्बई के मेयर से कहा है कि ‘पीस कमेटी’ की मीटिंग बुलाएँ। इसका भी हमें फ़ायदा होगा। कल की व्यूह रचना करते समय इन बातों को ध्यान में रखें इसलिए आपको सूचित किया ।’’ गवर्नर ने जानकारी दी।

''Thank you, sir.'' रॉटरे ने फ़ोन नीचे रखा।

गॉडफ्रे और लॉकहर्ट को यह जानकर बड़ी खुशी हुई कि कांग्रेस और लीग के स्वयंसेवक उनकी सहायता के लिए आ रहे हैं। गॉडफ्रे ने रॉटरे से कहा, ‘‘अब शैम्पेन की पार्टी होनी चाहिए।’’

ब्रिटेन के हाऊस ऑफ़ कॉमन्स में हिन्दुस्तानी नौसेना के विद्रोह पर ज़ोरदार चर्चा हो रही थी। विरोधी पक्ष सरकार पर टूट पड़ा था। स्थगन प्रस्ताव भी पेश किया था। इस चर्चा का उत्तर प्रधानमन्त्री एटली बड़े आत्मविश्वास से दे रहे थे।

‘‘विद्रोहियों को बिना शर्त आत्मसमर्पण करने के लिए कहा गया है और मुझे यकीन है कि वे बिना शर्त समर्पण कर देंगे। कांग्रेस पार्टी विद्रोहियों की तरफ़ नहीं है। लेफ्टिस्ट विचारधारा के नेता और कम्युनिस्ट पार्टी विद्रोहियों के प्रति सहानुभूति निर्माण करने का प्रयत्न कर रहे हैं। सरकार को परिस्थिति के सामान्य होने से पहले थोड़ी–बहुत गड़बड़ी की आशंका है।’’

एटली को इस बात की पूरी–पूरी कल्पना थी कि कम्युनिस्टों का हिन्दुस्तानी जनमानस पर विशेष प्रभाव नहीं है। उनके समर्थन से कोई विशेष बात नहीं होने वाली, मगर मान लीजिए, अनुमान गलत हुआ तो अपयश का ठीकरा किसके सिर पर फ़ोड़ना है, यह एटली ने पहले से ही तय कर लिया था।

‘कैसल बैरेक्स’ में देखने में तो शान्ति नज़र आ रही थी, मगर सैनिकों के मन खदखदा रहे थे। अनेक लोगों को ऐसा लग रहा था कि ले. कमाण्डर मार्टिन और दीवान को छोड़ना और ‘सीज फायर’ करना बहुत बड़ी गलती थी। मगर इन अनुशासित सैनिकों ने सेंट्रल कमेटी की आज्ञा का पालन किया था।

बैरेक्स में सैनिक अभी तक जाग ही रहे थे और कल क्या होगा इसके बारे में अटकलें लगा रहे थे। मौके की जगहों पर नियुक्त पहरेदार आँखों में तेल डालकर अपना कर्तव्य निभा रहे थे। छोटे–छोटे झुण्डों में चर्चा कर रहे सैनिक रास्ते से गुज़रते हुए टैंक की आवाज़ सुनते तो संरक्षक दीवार के पास जाकर झाँककर देख लेते।

‘‘ऐसा लगता है कि कमेटी की आज्ञा तोड़ दें और स्टोर से हैंडग्रेनेड्स लाकर फेंक दें टैंकों पर,’’ मणी जैसे बेचैन सैनिक कह रहे थे। मगर सेंट्रल कमेटी द्वारा खींची गई लक्ष्मण रेखा को पार करने का साहस उनमें न था।

‘‘कल क्या होगा किसे पता ? मगर मुझे ऐसा लगने लगा है कि हम यह लड़ाई हार जाएँगे।’’  गजेन्द्रसिंह के शब्दों में निराशा थी।

''Be hopeful. अरे, कुछ अच्छा होगा और हमारी जीत होगी।’’ हरिचरण ने कहा।

‘‘कुछ अच्छा मतलब क्या ? कांग्रेस हमारी मदद करने के लिए तैयार नहीं। लोगों का समर्थन रहा तो भी सरकार उसे मिटा देगी। अगर कल लोग रास्ते पर आए तो बहुत बड़ा खूनखराबा हो जाएगा, सैकड़ों लोग मारे जाएँगे, हज़ारों ज़ख़्मी हो जाएँगे। सरकार ही की तरह गुण्डे और असामाजिक तत्त्व परिस्थिति का लाभ उठाकर लूटमार करेंगे। इससे हमें क्या लाभ होगा ? यदि हमने आत्मसमर्पण नहीं किया तो सरकार हमें नेस्तनाबूद कर देगी।’’  गजेन्द्रसिंह ने चिन्तायुक्त स्वर में कहा।

‘‘और यदि ऐसा हुआ तो सिर्फ मैं ही नहीं, मुझ पर निर्भर मेरे सभी परिवारजन भी बर्बाद हो जाएँगे।’’

‘‘ये सब तुम्हारी कल्पना के खेल हैं!’’  हरिचरण उसे समझाने लगा। ‘‘आज की गोलीबारी से चिन्तित कांग्रेस के नेता शायद कल हमारे पक्ष में खड़े हों, क्रान्ति के बारे में लम्बे–चौड़े भाषणों और वातावरण को हिला देने वाले नेता शायद हमारा साथ देंगे, या आज हम पर बन्दूक चलाने से इनकार करने वाले अन्य दोनों दलों के सैनिक शायद कल हमारे साथ आकर अंग्रेज़ों पर बन्दूकें तान दें। लोगों का समर्थन बढ़ेगा और सरकार को झुकना ही पड़ेगा। कुछ भी हो सकता है, मगर जो होगा, अच्छा ही होगा।’’

 ‘‘दिल को समझाने के लिए ख़याल अच्छा है।’’  गजेन्द्र ने कहा।

‘‘आत्मविश्वास खो चुके सैनिकों के कारण जीतती हुई लड़ाइयाँ गँवानी पड़ती हैं। इस रोग का संक्रमण जल्दी होता है। इसलिए तू आराम से जाकर सो जा। चार–पाँच घण्टे नींद लेने के बाद अच्छा लगेगा।’’ हरिचरण ने सलाह दी।

तीन रातों के लगातार जागरण और दिनभर की भागदौड़ से कुछ सैनिकों के मन का सन्तुलन खो गया था। गजेन्द्रसिंह जैसे कुछ कमज़ोर दिल के सैनिक अस्वस्थ हो गए थे।

‘कैसल बैरेक्स’ के कुछ सैनिकों ने उस दिन के सायंकालीन अख़बारों के अंक प्राप्त किये थे। अंक काफ़ी कम और सभी के मन में उत्सुकता बहुत ज़्यादा! इसलिए कई गुटों में अख़बारों का सामूहिक पठन हो रहा था।

रामलाल ख़बरें पढ़कर सुना रहा था। दोपहर को रॉटरे और गॉडफ्रे द्वारा जारी किया गया प्रेस रिलीज़ शाम के अख़बारों में छपा था। उस रिलीज़ पर एक नज़र डालकर रामलाल ने कहा, ‘‘लोगों को और नेताओं को गुमराह करने वाले प्रेस रिलीज़ जारी करने में इन अंग्रेज़ों का हाथ कोई भी नहीं पकड़ सकता। जिस सत्य को जनता जानती है उसे नकारते हुए ये अंग्रेज़ झूठ पर सत्य की पॉलिश करके पेश कर रहे हैं।

‘‘अरे, भाषण बाद में दे, पहले ख़बर तो पढ़!’’ धरमवीर ने रामलाल को रोकते हुए कहा।

‘‘ठीक है।’’ रामलाल ने कहा और वह ख़बर पढ़ने लगा:

 ‘‘आज सुबह नौ बजे ‘कैसेल बैरेक्स’ में आमतौर से शान्ति थी। नौसैनिकों की भूख हड़ताल जारी थी। इन दोनों नाविक तलों की कैन्टीन सैनिकों ने तोड़ दी और लूट लीं। लगभग नौ बजकर चालीस मिनट पर कैसेल बैरेक्स का वातावरण बिगड़ गया। अन्दर खड़े किये गए कामचलाऊ बैरिकेड्स को लाँघकर नौसैनिकों ने बाहर आने की कोशिश की, और बाहर घेरा डाले भूदल सैनिकों के सामने गोलीबारी के अलावा कोई और चारा ही न रहा। भूदल सैनिकों ने नौसैनिकों को बैरेक्स में ही रखने के लिए बन्दूकों का एक राउण्ड चलाया और ‘कैसल बैरेक्स’ के सैनिकों ने पत्थरों से उसका जवाब दिया। यह पत्थरों की बौछार लगभग आधे घण्टे चली और इस पत्थरबाजी में गार्ड कमाण्डर घायल हो गया। दस बजकर पचास मिनट पर भूदल सैनिकों की सहायता के लिए अतिरिक्त बल मँगवाया गया। ‘नर्मदा’ नामक जहाज़ से भेजा गया एक सन्देश हमारे हाथ पड़ गया । इसमें लिखा था, ‘‘भूदल के सैनिक यदि एक गोली चलाएँ, तो जहाज़ अपनी तोपें दागें। सभी जहाज़ अपनी–अपनी तोपें भरकर तैयार रहें।’’ ‘कैसल बैरेक्स’ के कुछ सैनिकों ने ‘जमुना’ पर जाकर कहा कि बैरेक्स के सारे सैनिकों के बाहर निकलने के बाद बैरेक्स पर तोपें दाग़ी जाएँ।

‘‘विद्रोह के नेताओं ने जहाज़ों को एक सन्देश भेजा था, वह भी हमारे हाथ लगा है। इस सन्देश में ब्रिटिश अधिकारियों को जहाज़ और नाविक तल छोड़ने को कहा गया है और हिन्दुस्तानी अधिकारियों से विद्रोह में शामिल होने की अपील की गई थी। करीब साढ़े ग्यारह बजे जहाज़ों ने तोपें चलानी शुरू कीं। ‘गेटवे ऑफ इण्डिया’ के सामने खड़े ‘पंजाब’ ने निकट खड़े रॉयल नेवी के जहाज़ पर भी हमला किया।

“एडमिरल गॉडफ्रे की सम्मति से एक सन्देश द्वारा ब्रिटिश अधिकारियों को तुरन्त जहाज़ और तल छोड़ने का आदेश दिया गया।

‘‘मुम्बई के अन्य नाविक तलों पर दिनभर शान्ति रही। अधिकांश सैनिक अपनी–अपनी ‘बेस’  पर लौट गए थे।’’   रामलाल   पलभर   को   रुका ।

‘‘ये सब सरासर झूठ है, ’’ हरिचरण चीखा।

‘‘अरे, झूठ बोलने की और परस्पर विरोधी वक्तव्य करने की भी कोई सीमा होती है!’’ मणी चिढ़ गया था। ‘‘गॉडफ्रे, रॉटरे और उसके साथी बौखला गए हैं - लगता तो यही है।’’

“इस प्रेस रिलीज़ में सरकार ने यह मान्य किया है कि सैनिक शान्त थे और वे सत्याग्रह की राह पर थे। दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह, कि सरकार यह मान रही है कि भूदल के सैनिकों ने पहले गोलीबारी की।’’ धरमवीर ने प्रेस रिलीज़ से वह बातें बतार्इं जो नौसैनिकों के पक्ष में थीं।

‘‘भूख हड़ताल जारी थी, यह कहने के बाद आगे कहते हैं, ‘सैनिकों ने ‘कैंटीन’ लूट ली’। ‘कैसल बैरक्स’ और ‘तलवार’ के चारों ओर भूदल सैनिकों का घेरा था। ‘कैसेल बैरेक्स’ का बाहरी जगत् से सम्पर्क टूट चुका था इसलिए बाहर से कोई भी अन्दर नहीं आया, ना ही अन्दर से कोई बाहर गया। फिर ब्रिटिश अधिकारियों को कैसे पता चला कि कैन्टीन्स लूटी गई हैं ? और इन कैन्टीन्स में है ही क्या ? स्नो, पाउडर, साबुन, सिगरेट, बूटपॉलिश, सारी अखाद्य वस्तुएँ! भूखे सैनिकों के किस काम की ? दूसरी बात यह कि बाहर भूदल के सैनिक बन्दूकें ताने जब बैठे थे, जब हमारी जान की बाज़ी लगी हुई थी, तब हम गोला–बारूद के गोदाम लूटेंगे या कैन्टीन्स के ताले तोड़ते बैठेंगे ?’’  मणी का तर्क सही था।

 ‘‘कहते हैं, हमने पत्थरबाजी की और इस पत्थरफेंक में गार्ड कमाण्डर ज़ख़्मी हो गया।’’ हरिचरण के चेहरे पर चिढ़ थी। ‘‘हमारे पास आधुनिक हथियारों के होते हुए हम क्यों पाषाण युगीन हथियारों का इस्तेमाल करेंगे ? क्या मुम्बई एक छोटा–सा गाँव है या भीड़भाड़ वाले देश का महत्त्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र ? फोर्ट जैसे इलाके में इतनी मात्रा में पत्थर उपलब्ध हैं इस पर कौन समझदार आदमी विश्वास करेगा ? रॉटरे और गॉडफ्रे को क्या ऐसा लगता है कि 18 तारीख़ से हम सिर्फ छोटे–बड़े पत्थर ही इकट्ठे कर रहे हैं ? और, यदि हमें पत्थरबाजी करनी ही होती तो जिस रात भूदल सैनिकों ने घेरा डाला उसी रात को कर देते। उस रात तो सैनिक बेकाबू हो रहे थे, यदि खान न होता तो हम बन्दूकों, मशीनगनों और हैण्डग्रेनेड्स का ही इस्तेमाल करते। हमने पत्थरबाजी की - यह निरी गप है। क्या वे हमें रास्ते के मवाली समझ रहे हैं ? क्या गॉडफ्रे और रॉटरे को यह नहीं मालूम था कि उसके अधिकारी 19 तारीख से पहले ही जहाज़ और नाविक तल छोड़कर भाग गए हैं ? मगर नौसैनिक कितने क्रूर हो गए हैं और गोरे अधिकारी कितने कर्तव्यदक्ष हैं यह दिखाने के लिए अधिकारियों को जहाज़ और तल छोड़ने के बारे में सन्देश भेजा। हमने विद्रोह किया 18 को। आज है तारीख 21। मतलब पूरे चार दिनों बाद उन्हें अपने अधिकारियों की याद आई – ऐसी है इनकी कार्यक्षमता।‘’ हरिचरण की आवाज़ ऊँची हो गई थी।

‘‘ब्रिटिश दुनिया को दिखाना चाहते हैं कि नौसैनिकों के शस्त्र उठाने तक उनके अधिकारी अपने–अपने जहाजों में पैर जमाए खड़े थे। अब, सैनिकों के बेकाबू होने के बाद ये अधिकारी कुछ नहीं कर सकते थे,  इसलिए उन्हें वापस बुला लिया।’’ गुरुचरण अंग्रेज़ों के झूठ का पर्दाफाश कर रहा था, ‘‘गॉडफ्रे और रॉटरे द्वारा जारी ये प्रेस रिलीज़ नौसैनिकों को बदनाम करने के योजनाबद्ध षड्यन्त्र का एक भाग है। देश की राजनीतिक परिस्थिति और सामाजिक अस्थिरता का फ़ायदा लेकर हमें लूटपाट करने वाले लुटेरे और गुण्डे–बदमाश साबित करने की यह साज़िश है। सरकार यह साबित करना चाहती है कि इस विद्रोह के पीछे सैनिकों का स्वार्थ है, अहिंसा और सत्याग्रह तो उनके द्वारा पहना हुआ झूठा मुखौटा है।’’

‘‘हमने तोपें चलाईं यह बिलकुल सच है।’’ रामलाल ने कहा, “मगर ऐसा क्यों किया ? ‘पंजाब’ की तोपें गरजीं - गोला–बारूद प्राप्त करने के लिए। हम रॉयल नेवी के उस जहाज़ को आसानी से डुबो सकते थे। मगर वह हमारा उद्देश्य ही नहीं था। डॉकयार्ड के जहाज़ों ने भी जो तोपें दागीं, वो इसलिए कि पीछे से वार करने को तैयार ब्रिटिश सैनिकों से ‘कैसल बैरेक्स’ के सैनिकों को बचा सकें। हमारे पास लम्बी दूरी की और अधिक भेदक तोपें थीं, मगर हमने जो तोपें इस्तेमाल कीं वे थीं छोटी तोपें। हमें इस बात की पूरी कल्पना थी कि यदि हमने अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल किया तो मुम्बई का परिसर तो नष्ट हो ही जाएगा, बल्कि बड़ी मात्रा में जान और माल की हानि भी होगी। इसका परिणाम शहरी जीवन पर पड़ेगा,  तनाव बढ़ेगा और असामाजिक तत्त्व इस स्थिति का गलत फ़ायदा उठाएँगे,’’  रामलाल ने स्पष्ट किया।

‘‘यह सब तो हम जानते हैं, मगर सामान्य जनता को इसका पता चलना चाहिए। हम सेंट्रल कमेटी से कहेंगे कि इन ख़बरों में दिए गए झूठ को दिखाने के लिए अखबारों में स्पष्टीकरण भेजें।’’  हरिचरण ने कहा।

‘‘हमने हथियार उठाए, अहिंसक संघर्ष को मिटा दिया, यह सच होने पर भी हमें इसका ज़रा–सा भी अफ़सोस नहीं है, क्योंकि कुछ देर और टिके रहने, मौत को आगे धकेलने का यही स्वाभिमानपूर्ण मार्ग हमारे सामने था। हमने जो कुछ किया वह सहज प्रवृत्ति से किया गया काम था... मौत को सामने देखकर की गई हरकत थी।’’  सैनिकों की कार्रवाई का समर्थन करने वाला तर्कसंगत विश्लेषण गुरु ने प्रस्तुत किया।

‘‘अब आगे सुनो,’’ मणी ने आगे पढ़ना शुरू किया:

“ ‘कैसल बैरेक्स’ और डॉकयार्ड का वातावरण तनावपूर्ण था। बीच–बीच में गोलियों के राउण्ड हो रहे थे। दोपहर दो बजकर पैंतीस मिनट पर सभी जहाजों पर ‘गोलीबारी रोक दी गई है’ यह दर्शाता हुआ सफ़ेद झण्डा फ़हराया गया और बाहर से पन्द्रह नौसैनिकों का एक झुण्ड एक मोटर लांच से ‘अपोलो बन्दर’ पर उतरा और हाथों में पकड़ी संगीनों के ज़ोर पर उन्होंने खाद्य भण्डार और उपहार गृहों को लूटा,  इसके पश्चात् वे जहाज़ पर वापस लौट गए।’’

‘‘गॉडफ्रे की अक्ल पर रोना आता है, मगर साथ ही उसके झूठेपन पर चिढ़ भी आती है।’’ धरमवीर ने कहा।

‘‘जो कुछ हुआ उसे हज़ारों लोगों ने देखा है, फिर भी यह झूठ! इसका मतलब ये कि गॉडफ्रे के पैरों के नीचे ज़मीन खिसक रही है। वह बौखला गया है।’’ हरिचरण ने कहा।

‘‘यह ख़बर मुम्बई के लोगों के लिए तो है ही नहीं। ख़बर है मुम्बई से बाहर के लोगों के लिए, जिन्होंने इन घटनाओं को देखा नहीं है उनके लिए। मुझे डर है कि कल को इतिहास लिखते समय इन सरकारी ख़बरों को आधार मानकर विकृत वर्णन किया जाएगा। इन ख़बरों के कारण भावी पीढ़ी की नज़रों में हम गुण्डे–बदमाश, लुटेरे, हिंसक – ऐसे ही चित्रित होंगे।’’ मणी ने परिणाम को स्पष्ट किया।

‘‘इस ख़बर के ज़रिए अंग्रेज़ हमारी सेना की बदनामी ही कर रहे हैं। आज ‘बॅलार्ड पियर’ से ‘अपोलो बन्दर’ तक भूदल के सशस्त्र सैनिक तैनात किए गए जिनमें अनेक ब्रिटिश सैनिक थे। उसके पीछे दूसरी पंक्ति पुलिस की थी। हम ऐसा मान भी लें कि मोटर लांच में आए नौसैनिकों का हिन्दुस्तानी सैनिकों ने विरोध नहीं किया,  उन्हें आगे आने दिया। उस समय ब्रिटिश रेजिमेन्ट के सैनिक क्या कर रहे थे ? क्या ये बारह–पन्द्रह बन्दूकधारी सैनिक उन पर भारी पड़ गए ? उन्हें वे पकड़ नहीं सके ?  क्या इस पर कोई विश्वास करेगा ?  इस सेना के पीछे खड़े पुलिस के सिपाही क्या कर रहे थे ? बारह–पन्द्रह सैनिकों को रोकने में यदि हज़ारों की संख्या में उपस्थित ब्रिटिश सैनिक असफ़ल रहे तो ब्रिटिश यह देश छोड़ दें, यही बेहतर होगा।’’ हरचिरण ने कहा।


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