वड़वानल - 42

वड़वानल - 42

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‘‘दोस्तो ! यदि हमारी एकता अटूट होगी तभी हम शक्तिशाली अंग्रेज़ों के विरुद्ध खड़े रह पाएँगे और उन पर विजय प्राप्त कर सकेंगे।’’ कम्युनिकेशन बैरेक के बाहर ‘तलवार’ के सारे के सारे सैनिक जमा हो गए थे। खान उन्हें व्यूह रचना समझा रहा था और अंग्रेज़ों से सावधान रहने की सलाह भी दे रहा था।

‘‘भूलो मत, अंग्रेज़ तोड़ो और फोड़ो की नीति का प्रयोग करेंगे; हममें से कुछ लोगों को पुचकारेंगे, लालच देंगे; मगर याद रखो, साँप सिर्फ ज़हर ही उगल सकता है और अंग्रेज़ भयंकर विषैला साँप है...।’’

''Good morning everybody.'' नन्दा ने ‘विश’ किया। खान पलभर को रुका और उन दोनों की ओर ध्यान न देते हुए वह सैनिकों से कहता रहा, ‘‘हम अंग्रेज़ों को दिखा देंगे कि हमने मरी माँ का दूध नहीं पिया है,  या हाथों में  चूड़ियाँ नहीं पहनी हैं...।’’

नन्दा और कोहली समझ गए कि उन्हें सौंपा गया काम आसान नहीं है।

''Friends, we wish to speak to you'' नन्दा  ने  कहा।

 ‘‘नन्दा कोहली हाय, हाय !’’

‘‘चोर हैं, चोर हैं, नन्दा कोहली चोर हैं।’’

‘‘नन्दा कोहली कौन है ?

‘‘किंग के गुलाम हैं !’’

करीब पाँच मिनट नारे लगते रहे। नन्दा को कोई बोलने ही नहीं दे रहा था। आखिर में दत्त ने  बीच–बचाव करते हुए कहा,  ''Silence, please, Silence !'' सब शान्त हो गए। ‘‘मेरा ख़याल है कि हम उनकी बात सुन तो लें; और एक बात याद रखो,  हड़ताल पर होते हुए भी हम सैनिक हैं और हमें अनुशासित रहना चाहिए।

‘‘दोस्तो !  तुम  लोग  ये  क्या  कर  रहे  हो ?  हम  मानते  हैं  कि  तुम्हारी  कुछ समस्याएँ हैं;  कुछ  सवाल  हैं,  मगर इन समस्याओं,  इन प्रश्नों को सुलझाने का ये मार्ग नहीं है। ये सब कुछ मिल–बैठकर हल हो सकता है। हम तुम्हारी सहायता करेंगे।’’  नन्दा ने समझाने की कोशिश की।

‘‘जब तक अंग्रेज़ इस देश से चले नहीं जाते, हमारी समस्याएँ हल नहीं होंगी !’’

‘‘ये  किंग  की  और  तुम  दोनों  की  सामर्थ्य  से  बाहर  है।’’  पाँच–छह  लोगों का एक गुट चिल्ला रहा था।

‘‘दोस्तो ! शान्त हो जाओ। हमारी बात पूरी तो होने दो।’’ कोहली ने अपील की।

‘‘अरे,  हम सैनिक हैं। रानी का नमक खाया है हमने... उसका कर्ज़ तो उतारना ही होगा। आज़ादी से हमें क्या लेना–देना... हम अच्छा खाना माँगेंगे, तनख़्वाह बढ़ाने की माँग करेंगे...’’ कोहली समझा रहा था।

‘‘नन्दा–कोहली, हाय–हाय !’’

‘‘चोर हैं, चोर हैं, नन्दा–कोहली चोर हैं !’’

नारे जारी थे।

''I think ! It's enough !'' दत्त ने आगे आकर कोहली से चुप हो जाने को कहा। ‘‘अपने विरुद्ध ये जो नारे आप सुन रहे हैं, वे तहेदिल से निकल रहे हैं, इस बात पर ध्यान दीजिए। हम पहले हिन्दुस्तानी हैं, और बाद में सैनिक। हिन्दुस्तानी नागरिक होने के कारण इस देश की स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष करना हमारा  पहला कर्तव्य है और वही हम कर रहे हैं। तुम नौदल में अधिकारी हो, परन्तु यह मत भूलो कि पहले तुम हिन्दुस्तानी हो। तुम भी हमारा साथ दो।’’

दत्त ने आह्वान किया।

नन्दा और कोहली के उतरे हुए चेहरे किंग ने देखे और वह समझ गया कि वे नाकाम होकर लौटे हैं।

‘‘मैंने  रॉटरे  को  सूचित  कर  दिया,  यह  ठीक  किया,  वरना...’’  उसे  कुछ  राहत महसूस हुई। उस निपट खामोशी में घड़ी की टिक–टिक भी उससे बर्दाश्त नही हुई। साढ़े ग्यारह का एक घण्टा बजा और उसे लगा जैसे दिल की धड़कन बन्द हो  गई  हो।

''Bastards !'' मेज़ पर मुक्का मारते हुए किंग चीखा। ‘‘अब सिर्फ आधा घण्टा...’’  वह अपने आप से बुदबुदाया।  ‘शायद तबादला,  शायद  कोर्ट  मार्शल...’ कल्पना  मात्र  से  वह  बेचैन  हो  गया।  उसने  पाइप  सुलगाया  और  दो–चार  गहरे–गहरे कश लिये। तम्बाकू का धुआँ दिमाग में पहुँचा और उसे कुछ आराम महसूस हुआ।

‘कुछ तो करना ही होगा !’’ उसने अपने आप को सतर्क किया।

‘दत्त की इन्क्वायरी–कमेटी ने मुझे दोषी नहीं माना था,  या दत्त ने भी मेरे ख़िलाफ़ एक भी लब्ज नहीं कहा था...।’’

इस ख़याल के आते ही किंग ठिठक गया, ‘इस सबके पीछे कहीं दत्त का हाथ...’

‘‘ये  कैसे  सम्भव  है ?’’  दूसरे  मन  ने  अविश्वास  व्यक्त  किया।  ‘असम्भव कुछ भी नहीं। उसे समझाकर तो देखूँ... कोशिश करूँ...’ मन में निश्चय करते हुए उसने ड्यूटी पेट्टी ऑफिसर को बुलाया।

ड्यूटी पेट्टी ऑफिसर ऐन्ड्रयूज कम्युनिकेशन बैरेक में दत्त को ढूँढ़ते हुए आया। वहाँ इकट्ठा हुए सैनिकों को और उनके बर्ताव को देखकर वह हकबका गया। उसने इशारे से ही दत्त को बाहर बुलाया और किंग  का  सन्देश  दिया।

‘अरे, आज तो मुझे नौसेना से मुक्त करने वाले हैं ना ?’ बैरेक के वातावरण में खो गए दत्त को याद आर्ई।

‘आज सुबह से तो ‘तलवार’ का प्रशासन ठप पड़ा है। एक भी कार्यालय खोला नहीं गया है। फिर कागजात कैसे पूरे होंगे ?’ दत्त के मन में सन्देह उठा।

‘शायद गोरे सैनिकों को बिठाया होगा काग़ज़ात पूरे करने के लिए।’’ दूसरे मन ने जवाब दिया।

‘यह असम्भव है। फिर  किंग  ने  क्यों बुलाया है ?  शायद वापस सेल में डालने के लिए।’  मन  में  फिर  सन्देह  उठा।

‘‘हाँ,  यह  असम्भव  नहीं !’  हमेशा  विरोध  करने  वाले  मन  ने  सहमति जताई।

‘‘अब यदि सलाखों के पीछे डाल दें तो भी परवाह नहीं। चिनगारी पैदा हो  चुकी  है।  वड़वानल  भड़केगा।’’  उसे  यकीन  था।

‘‘मैं किंग से मिलकर आता हूँ, उसने बुलाया है।’’ दत्त ने खान और मदन से कहा।

‘‘देखो, बेस में ये जो कुछ भी हो रहा है उसे रोकने में मुझे तुम्हारी मदद चाहिए।’’ एन्ड्रयूज़ के साथ आए दत्त को देखते ही किंग सीधे विषय पर ही आया।

''Petty officer Andrews, you may...'' एन्ड्रयूज़ इशारा समझ गया और वह चेम्बर से बाहर निकल गया।

‘‘अरे बैठो।’’ किंग ने लगभग खींचते हुए दत्त को कुर्सी पर बैठाया।

‘‘रिलैक्स, सिगरेट ?’’  एक सिगरेट अपने होठों में झुलाते हुए उसने पूछा और सिगरेट का पैकेट बढ़ा दिया।  ‘‘ये लो,  अरे लो,  शर्माओ मत !’’ उसने आग्रह किया।

दत्त ने किंग की नजरों से नजरें मिलाते हुए सिगरेट ले ली। ‘अरे, अभी क्या हुआ है ! ज़रा इस विद्रोह को भड़कने दें; फिर नाचेगा ! सही में नाचेगा !’ वह पुटपुटाया।

‘‘देेखो, जब तुम्हें सरकार विरोधी काम करते हुए पकड़ा गया तो मैंने तुम्हें बचाया था। वरना आज तुम कम से कम छह साल के लिए गिट्टी फोड़ने गए होते। सिर्फ मेरे कारण सेवामुक्ति पर रफ़ा–दफ़ा हो रहा है।’’  न  किये  गए  उपकार का बोझ दत्त पर लादने की कोशिश कर रहा था किंग।

‘‘मुझे यकीन है कि ‘तलवार’ में सुबह से जो हंगामा चल रहा है उसे तुम और सिर्फ तुम ही रोक सकते हो। मेरी ख़ातिर,  सिर्फ  मेरी  ख़ातिर,  अगर  तुम इतना करोगे, तो मैं तुम्हारे लिए काफी कुछ करूँगा।’’

किंग की बुद्धि सामर्थ्य और परिस्थिति के बारे में उसके ज्ञान पर दत्त को दया आ रही थी।

‘सरकार विरोधी नारे मैंने लिखे, इन्क्वायरी के चलते भी मैंने नारे लगाए; मुझ पर गोलियों की भी  बौछार  करो  तो  भी  मैं  कुछ बताने वाला नहीं - ऐसा कहने वाला सैनिक बिक जाएगा ये इसने सोचा कैसे ?’ दत्त मन ही मन सोच रहा था।

‘ये इसकी चाल तो नहीं... शायद नहीं है... पानी गले–गले तक आ गया है इसलिए ये मिन्नतें। एक बार पानी नीचे उतर गया तो ये दुबारा ‘शेर’ हो जाएगा।‘

 ‘‘यह विस्फोट तुम्हारे आज तक के बर्ताव की परिणति है।’’ किंग की नज़र से नज़र मिलाकर दत्त कह रहा था। ‘‘इस विस्फोट को रोकने की ताकत किसी में भी नहीं। असल में तो,  मेरे लिए ये सम्भव नहीं है और यदि सम्भव होता, तो भी मैं यह करूँगा नहीं। आन्दोलन से गद्दारी नहीं करूँगा।’’

‘‘तुम अपने आप को समझते क्या हो ? मैं तुम्हें अभी भी गिरफ्तार कर सकता हूँ,’’ गुस्से से आँखें गोल–गोल घुमाते हुए किंग ने धमकाया।

‘‘कल तक यह सम्भव था। आज असम्भव है। ज़रा बाहर जाकर हालात का जायज़ा तो लो !’’ दत्त ने हँसते–हँसते जवाब दिया।

‘‘तू मुझे अकल न सिखा। हिन्दुस्तानी नौसैनिकों ने विरोध...’’

‘‘मि.  किंग,’’  किंग  को  बीच  ही  में  टोकते  हुए  दत्त  कहने  लगा,  ‘‘आज सुबह से जो कुछ हो रहा है वह विरोध नहीं है। वो आजादी के लिए किया गया विद्रोह है। Please, Correct your language.''

‘‘ठीक है। मैं गोरे सैनिकों द्वारा तुम्हें गिरफ्तार करवा सकता हूँ।’’ किंग की आवाज़ में लापरवाही थी।

‘‘हिम्मत हो तो करके देखो।’’  दत्त का आह्वानात्मक सुर। ‘‘मुझे गिरफ़्तार कर लिया गया है यह समझने की ही  देर है,  गुस्साए हुए सैनिक तुम्हारे साथ तुम्हारे ऑफिस को भी नष्ट कर देंगे।’’

‘‘दत्त को आजाद करो !’’

‘‘किंग को माफी - माँगनी पड़ेगी !’’

‘‘किंग को सज़ा - मिलनी ही चाहिए !’’

दूर  से  दिये  जा  रहे  नारे  अब  स्पष्ट  सुनाई  दे  रहे  थे।  दत्त  को  किंग  ने बुलाया है और उसकी गिरफ्तारी की सम्भावना है इस बात पर गौर करते ही सैनिक नारे लगाते हुए जुलूस में किंग के दफ़्तर की ओर निकले।

नारे कान पर पड़ते ही किंग सतर्क हो गया।

‘‘मुझे  हालात  बिगाड़ने  नहीं  हैं,  तुम  जा  सकते  हो,’’  किंग  ने  पीछे  हटने का  निर्णय लिया।

‘‘तुम  कह  रहे  थे  कि  ये  सैनिक  तुम्हारी  बात  नहीं  सुनेंगे।  मगर  तुम्हारी गिरफ़्तारी के सिर्फ सन्देह मात्र से वे यहाँ आए हैं। तुम समझाओ उन्हें। उनकी माँगें क्या हैं ये समझ लो और मुझे बताओ; मैं  आज  के  आज  उन्हें  पूरा  करूँगा।’’

किंग के आश्वासन से दत्त को हँसी आ गई।

दत्त को किंग के ऑफिस से बाहर आते देख सारा वातावरण नारों से गूँज उठा। घड़ी ने एक का घण्टा बजाया। बेचैन किंग धम् से नीचे बैठ गया। ‘‘सब ख़त्म हो गया,  रॉटरे की दी हुई मोहलत ख़त्म हो गई !’’  वह  अपने  आप  से  बुदबुदा रहा था, ‘‘अब सारा भविष्य रॉटरे के निर्णय पर...।’’

एक बजकर पाँच मिनट हुए और रॉटरे की स्टाफ कार रियर एडमिरल का झण्डा और स्टार प्लेट दिखलाते हुए ‘तलवार’ के मेन गेट से अन्दर आई।

''Look Jones, there are no sentries at the main gate.'' रॉटरे उसके साथ आए हुए कैप्टेन इनिगो जोन्स से कह रहा था।

''Look at those shabby sailors wandering like stray dogs.'' यूँ ही घूम रहे सैनिकों की ओर देखते हुए इनिगो जोन्स ने कहा।

‘‘इस किंग ने सैनिकों को गालियाँ देकर बेकार में मुसीबत मोल ली है। अब यह सब हमें ही सुलझाना होगा। ये उतना आसान नहीं है, जितना दिखाई ''Go back Rautre."

''Fulfil our demands !'' रॉटरे की कार देखकर सैनिक नारे लगा रहे थे। कार के सामने आ रहे थे।

‘अरे भडुवों,  रॉटरे वापस जा कहते हो क्या ?  चार दिनों में तुम्हें सीधा नहीं किया तो अपना नाम बदल दूँगा !’ अनुशासित जीवन के अभ्यस्त रॉटरे को इस अनुशासनहीनता पर बड़ा क्रोध आ रहा था।

एक शानदार मोड़ लेकर रॉटरे की कार किंग के ऑफिस के सामने रुकी।

किंग ने शीघ्रता से बाहर आकर कार का दरवाजा खोला। रॉटरे के साथ आया कैप्टेन इनिगो जोन्स भी नीचे उतरा।

''Where are the ratings?'' किंग के अभिवादन को अनदेखा करते हुए रॉटरे ने पूछा।

''In the barracks, sir.'' किंग  ने  जवाब  दिया।

''Did you see them personally?'' रॉटरे ने पूछा।

''No sir, but I detailed some officers...'' किंग ने थरथराती आवाज़ में जवाब दिया।

''Oh, hell with you.'' रॉटरे की आवाज़ में अब चिढ़ थी। ‘‘तुम खुद बैरेक में क्यों नहीं गए ? समय का महत्त्व तुम कैसे नहीं समझते ?’’

किंग पर बिफ़रते हुए ही रॉटरे कार में बैठा। ''Wait here till I return." किंग को उसने आदेश दिया और वह बैरेक की ओर गया। रॉटरे को अचानक बैरेक में आया देखकर सैनिकों को आश्चर्य हुआ। एक–एक करके अनेक लोग रॉटरे के आसपास जमा हो गए।

‘‘क्या रॉटरे हमारी माँगें पूरी करेगा ?’’

‘‘वह  क्या  कहना  चाहता  है ?’’

‘‘सबको एक साथ गिरफ्तार करने तो नहीं आया ?’’

हरेक के मन में कारण जानने की इच्छा थी।

''Friends...''

रॉटरे ने कहना शुरू किया। धूर्त रॉटरे अच्छी तरह जानता था कि अगर यह सारा हंगामा जल्दी से ख़त्म करना है तो अपना ओहदा,  अधिकार...सब कुछ भूल कर सैनिकों से निकटता स्थापित करनी होगी।

''I understand you are Facing number of Problems.' उसकी बातों की कोई दखल ही नहीं ले रहा था।

"Bastards ! समझते क्या हैं अपने आप को, bloody slaves." इनिगो जोन्स अपने आप से बुदबुदाया। उसका यह बुदबुदाना रॉटरे के ध्यान में आ गया।

''Cool down Captain ! यह गुस्सा करने का वक्त नहीं है। मुझे भी गुस्सा आया है। हमारे तांडव का कोई भी फ़ायदा नहीं होने वाला,  इसलिए वर्तमान परिस्थिति में उसे मन ही मन दबा देना ठीक रहेगा।’’

‘‘दोस्तो ! मैं तुम्हें वचन देता हूँ–––’’ वह एक बार फिर सैनिकों को समझाने की कोशिश करने लगा, ‘‘मेरे अधिकार में जो हैं, वे समस्याएँ मैं फौरन सुलझा देता हूँ; मगर पहले तुम लोग काम पर वापस आओ !’’

रॉटरे  ने  अपनी  आवाज  को  यथासम्भव  मुलायम  बनाने  की  कोशिश  की; मगर आवाज़ की कठोरता और शासक होने के एहसास को वह छिपा नहीं सका।

वह पलभर को रुका। उसने एक नज़र सैनिकों पर डाली। सैनिकों की नज़रों में निश्चय और दृढ़ता थी जिसे उसने महसूस किया। वह समझ गया कि उसके आह्वान का कोई उपयोग नहीं होगा।

''Well, मैंने अपनी शर्त तुम्हें बता दी, अब अपनी समस्याएँ सुलझाना या न सुलझाना तुम्हारे हाथ में है। मैंने तुम्हारी ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया है, इस अपेक्षा से कि आप मेरी पेशकश स्वीकार करेंगे ! ईश्वर आपको सद्बुद्धि दे !’’

रॉटरे को परिस्थिति का अध्ययन करने तथा अगली चालें निश्चित करने के लिए समय चाहिए था और इसीलिए सैनिक यदि काम पर वापस नहीं लौटे तो इसके क्या परिणाम होंगे इस बारे में उसने कुछ भी नहीं कहा।

रॉटरे कमाण्डर किंग, ले. कमाण्डर स्नो,  सब लेफ्टिनेंट नन्दा,  कोहली, रॉड्रिक्स से मिला। दिसम्बर से घटित हुई घटनाओं को समझते हुए उसे यह स्पष्टत: महसूस हो गया कि ‘तलवार’  के सैनिकों का विरोध केवल सैनिकों के  असन्तोष का परिणाम नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय आन्दोलन, आन्दोलन के नेता, भूमिगत क्रान्तिकारी – इन सबके सहयोग का परिणाम है। वरना बहिष्कार,  सत्याग्रह  आदि शब्द,  जो सैनिकों को ज्ञात ही नहीं थे,  अंग्रेज़  विरोधी नारे वगैरह आते ही नहीं। मन में उठ रहे सन्देहों से रॉटरे सतर्क हो गया। उसने मन ही मन निश्चय किया  कि  राष्ट्रीय पक्षों  तथा  भूमिगत  कार्यकर्ताओं  के  सहयोग  को  सबसे  पहले  रोकना  ही  होगा।

उसकी कंजी आँखों में एक अजीब चमक आ गई। रॉटरे ‘तलवार’  से बाहर निकलते हुए अगली कार्रवाई की दिशा निश्चित कर चुका था।

रॉटरे के ‘तलवार’ से जाते ही किंग ने राहत की साँस ली। कम से कम अब तक तो रॉटरे ने किंग को दोष नहीं दिया था। किंग ने ‘बेस’ के गोरे और हिन्दुस्तानी अधिकारियों को एंटेरूम में इकट्ठा किया। रोज मदहोश करने वाले मयखाने के आज खुद ही होश उड़े हुए थे।

परिस्थिति को सामान्य कैसे किया जाए यही चर्चा का विषय था। नये–नये उपाय सुझाए जाते, उनमें निहित कठिनाइयों पर ध्यान जाता और उन्हें नामंज़ूर कर दिया जाता। गोरे अधिकारी दिल से इस चर्चा में भाग नहीं ले रहे थे। उनमें से अनेकों ने समय–समय पर किंग को परिस्थिति से अवगत कराया था, मगर हर बार अपने ही घमण्ड में चूर किंग कहता, ‘‘परिस्थिति पर मेरा नियन्त्रण है, ''My ship, my command"। रॉटरे  की  विनती  ठुकराने  वाले  सैनिक  हमें  घास नहीं डालेंगे, हमारी बात नहीं सुनेंगे, यह इन अधिकारियों को मालूम था।


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