डॉ अश्विनी शुक्ल

Crime

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डॉ अश्विनी शुक्ल

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उत्कोच

उत्कोच

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एम ए संस्कृत की फाइनल की परीक्षा चल रही थी। वाइबा कि आज डेट थी। सभी विद्यार्थी प्रातः 10:00 बजे से ही महाविद्यालय के गेट पर भीड़ लगाए खड़े थे। सुदूर देहात के इस महाविद्यालय तक आने का कोई साधन नहीं था। परीक्षार्थियों की संख्या के बराबर ही उनके अभिभावक उनको लाने ले जाने वालों की भीड़ लगी थी। बहुत दूर-दूर तक के लोग इस विद्यालय में व्यक्तिगत परीक्षा दिलाने के लिए आए थे। तहसील मुख्यालय से लगभग 8 किलोमीटर दूरी पर स्थित इस विद्यालय में संसाधनों के नाम पर सिर्फ कुछ बड़े बड़े कमरे ही थे। टीचर स्टाफ का अता-पता नहीं था। केवल कार्यालय के कर्मचारी व बाबू ही दिखाई दे रहे थे। कार्यालय के समीप प्रधानाचार्य जी का कमरा और ठीक उसके बगल में प्रबंधक महोदय का एक भव्य ऑफिस बना था।

परीक्षार्थियों की भीड़ लगी हुई थी। बिना किसी दुकान के मेले का सा दृश्य। नया-नया बमुश्किल 3 साल पुराना महाविद्यालय। उसरिली जमीन होने के नाते पेड़ पौधों का दूर-दूर तक नामोनिशान नहीं। थोड़ा भूमि सुधार करके कुछ फूल पत्ती के पौधे लगवाए गए थे , जो अभी बहुत छोटे थे। लोग इधर उधर बैठने की जगह तलाश रहे थे। परीक्षार्थियों में अक्सर महिलाओं की संख्या अधिक थी कुछ के साथ उनके बच्चे भी थे। पिता पुत्र और मां तीनों के लिए आखिर जगह कहां मिले। कुछ के पति बच्चों को लेकर इधर उधर टहल रहे थे। कुछ परीक्षार्थी साल्व्ड पेपर लेकर पढ़ रही थी कि परीक्षक नामालूम कहां से प्रश्न पूछ बैठे। संस्कृत के विद्यार्थी अक्सर परंपरावादी ही होते हैं। कुछ शुद्ध भारतीय वेशभूषा धोती कुर्ते में थे। महिलाएं साड़ी पहन कर आई थी। जल्दी-जल्दी पूरा पाठ्यक्रम पलटने के चक्कर में सब अस्त-व्यस्त। आज अंतिम परीक्षा वायवा की थी। परीक्षा के बाद फिर जीवन भर के लिए छुट्टी। अक्सर परीक्षार्थी केवल डिग्री के लिए ही तो पढ़ाई करते हैं।

दोपहर के 12:00 बज गए थे। अभी तक परीक्षक महाविद्यालय नहीं पहुंचे। 1:00 बजे तक कॉलेज आने की संभावना है। पता चला प्रबंधक जी के आवास पर परीक्षक महोदय विश्राम कर रहे हैं। तब तक धीरे-धीरे कार्यालय के काउंटर पर भीड़ जमना शुरू हो गई। उत्सुकता बस सब लोग उधर ही उठ कर जाने लगे। पता चला परीक्षा की फीस जमा हो रही है। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि आखिर अब परीक्षा की कैसी फीस ?? फिर भी मैंने धीरे-धीरे काउंटर की भीड़ का हाल चाल लेना शुरू किया। मैंने भी सोचा चलो चलकर देखा जाए क्या मामला है। एक लंबी मेज के उस पार चार कुर्सियां पड़ी थी। जिन पर चार हट्टे-कट्टे नौजवान पूरी दबंगई के साथ पैसे जमा करा रहे थे। पता नहीं वह लोग बाबू थे अथवा महाविद्यालय के कोई अन्य कर्मचारी। मैंने उन कर्मचारियों से पूछा , बाबूजी काहे की फीस जमा हो रही है ? ऐसा लगा मानो पूछकर मैंने कोई अपराध कर दिया। बाबू रुपए गिनने में व्यस्त था। उसके बगल में बैठे एक दूसरे बापू ने क्रोध भरी आंखों से मेरी ओर देखा और उत्तर दिया पास होने का !!

मैंने कहा -- पास होने का !!

उसने कहा-- हां हां पास होने का , ........और बताओ ?

मैं उस नवयुवक की बात सुनकर आश्चर्य चकित हो गया।

मैंने कहा --कितना ?

बिना मेरी ओर सिर उठाऐ उसने कहा -- फर्स्ट के लिए 500, सेकंड के लिए 300 और थर्ड के लिए 200। वह एक ही सांस में बिना मेरी ओर देखे बताता चला गया।

मेरा मन पूरी तरह से विद्रोह पर उतर आया। बाबू से पूछ कर मैं बाहर आ गया। यद्यपि मेरे पास पर्याप्त पैसे थे। मेरे लिए ₹500 कोई बहुत बड़ी बात भी नहीं थी , लेकिन मेरे ही समीप में खड़े एक परीक्षार्थी पंडित जी को देखकर दैनिक आपने करते समय बाबू किसी के पास पहुंच गया मैंने इस भ्रष्टाचार को कोसना शुरू कर दिया। लगभग 15 ,20 लोगों ने पैसा ना देने का मन बना लिया था। बेचारे गरीब लोग कहां से पैसा लाए। बेरोजगार 20, 25 वर्ष का नौजवान आखिर किस काम के नाम पर अपने अभिभावक से पैसा मांगे। कुछ लोगों के पास तो पैसा था भी नहीं। बाबू ने साफ साफ बता दिया कि जो पैसा नहीं देगा वह खुद जाने। बिना पैसे के डिवीजन नहीं बनता। मैं कार्यालय के गेट पर खड़ा खड़ा तमाशा देख रहा था बाबू लोग पैसा जमा करने में जुटे हुए थे।

मैंने अपने मोबाइल का वायस रिकार्डर आन कर लिया। फिर डरने का संकोच करते हुए मैं बाबू की सीट के पास पहुंच गया। जेब से रुपए निकालने का उपक्रम करते हैं मैंने बाबू से फिर पूछा कि- फर्स्ट डिवीजन के लिए कितना पैसा देना होगा ? मुझे मुझे बिना देखे रुपया गिनते हुए बाबू ने तपाक से फिर यही रटा-रटाया उत्तर दे दिया। 500 ,सेकंड के लिए 300,और थर्ड डिवीजन के लिए 200।

अगर किसी के पास रुपया ना हो तो ? मैंने अपना एक प्रश्न वाण बाबू पर छोड़ दिया।

बाबू ने अपना चश्मा उतार कर मेज पर रख दिया। आपको किसी ने बुलाया है क्या ?

अरे नहीं आप मेरी बात समझे नही मैं सकपका गया।

क्या नहीं समझे ? बताओ ! नेतागिरी मत करो ,अन्यथा फेल हो जाओगे ! सारी की सारी नेतागिरी धरी की धरी रह जाएगी।

मैं चुपचाप कार्यालय से बाहर निकल आया। वॉइस रिकॉर्डर ऑफ कर दिया। कार्यालय के बगल में ही प्रबंधक महोदय का कमरा था। प्रबंधक की नेम प्लेट के नीचे उनका मोबाइल नंबर भी लिखा था। कुछ क्षण किंकर्तव्यविमूढ़ खड़ा रहा। तब तक मेरे साथ लगभग 25 लोग हो गए थे। वे लोग जो पैसा नहीं लाए थे ,अथवा पैसा नहीं देना चाहते थे।

समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर किससे इस भ्रष्टाचार की शिकायत की जाय। थोड़ी देर बाद किसी ने सुझाव दिया कि नजदीक में ही पुलिस स्टेशन है। पैसा वसूलने का प्रमाण मेरे मोबाइल में सुरक्षित था। इसलिए सोचा चलो दरोगा जी से लिखित शिकायत कर दी जाए। हम सब एक मत से पुलिस स्टेशन चल दिये।

लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर पुलिस स्टेशन मिल गया।एक लंबे चौड़े परिसर में पुलिस स्टेशन ग्राम सभा की जमीन पर बना था। मेन गेट के एक तरफ दलाल प्रवेश वर्जित तथा दूसरी तरफ मित्र पुलिस लिखा था। गेट के भीतर लगभग 80 मीटर के रास्ते को पार कर थाना प्रभारी का बड़ा ही सुंदर बंगला बना था।जिसमे प्रभारी महोदय के लिए एक मेज कुर्सी तथा फरियादियों के बैठने के लिए सीमेंट की सीट बनी हुई थी। जिसमे थाना अध्यक्षों के कार्यकाल का एक बोर्ड लगा था। परिसर में ही दरोगा का आवास भी था।जो अभी तक अपनी कुर्सी पर नही बैठे थे। इस कारण हम लोग मुंशी के कार्यालय पहुंच गए। वहां पर मुंशी के साथ दो तीन कांस्टेबल बैठे थे। एक साथ 6 लोगो को देखकर मुंशी ने पूछा क्या काम है ? कहां से आए हो ?

मैंने कहा इंस्पेक्टर साहब से मिलना है।

तभी इंस्पेक्टर साहब भी अपनी कुर्सी पर पहुंच गये।

हम लोगों ने आज की घटना के बारे में तफ़सील से दरोगा जी को जानकारी दी।

दरोगा जी ने अनमने मन से हम लोगों की बात सुनी।

पूरी कोशिश कर के हम लोगों ने मोबाइल का वॉइस रिकॉर्डर भी दरोगा जी को सुनाया। मजबूरी में दरोगा जी ने हम लोगों की बात को सुना। लेकिन असमर्थता जताते हुए हम लोगों को वापस कर दिया। यह उनके अधिकार क्षेत्र का मामला नहीं था।

न जाने क्यों दरोगा जी की मुखमुद्रा पर लाचारगी साफ दिख रही थी। समझ में नहीं आया कि किसी झूठी शिकायत पर भी पुलिस विभाग की तत्परता से कार्यवाही करता है। लेकिन आज मोबाइल के साक्ष्य के बाद भी दरोगा जी पूरी तरह से निष्क्रिय क्यों बैठे हैं। उनके पास तो वसूली के पर्याप्त सबूत है। हम लोगों ने अपनी बात ठीक से रखी परंतु दरोगा जी टस से मस नहीं हुए। समझ में नहीं आ रहा था कि अपनी शिकायत डीएम से कैसे की जाए।

पुलिस स्टेशन के गेट के बाहर दाहिनी ओर एक नीम का पेड़ था। उसी पेड़ के नीचे हम लोगो ने अपनी अपनी मोटरसाइकिल खड़ी कर रखी थी। उन्हीं मोटरसाइकिलो के सहारे हम लोग खड़े होकर निराश मन से आगामी रणनीति पर विचार करने लगे। तब तक हम में से किसी ने बताया कि उनके बड़े भाई DM साहब के पेशकार है। उनका नंबर आसानी से मिल गया। हमने तत्काल DM साहब को फोन लगा कर अपनी समस्या बताई और समस्या के हल ना होने पर रोड जाम करने की धमकी भी दी। DM साहब ने रोड जाम ना करने की हिदायत के साथ SDM साहब से मिलने की सलाह दी और कहा कि तुम लोग तहसील मुख्यालय जाकर SDM साहब से मिल लो हम उन्हें फोन कर रहे हैं।

हम लोग बिना देरी किये तहसील मुख्यालय के लिए रवाना हो गए। SDM साहब का अरदली बाहर खड़ा था और पूछा क्या आप लोग कालेज से आ रहे हैं ? हम लोगों ने हां में जबाब दिया। इंतजार कर रहे SDM साहब के कार्यालय में हम सब चले गए। वहां जाकर वही ऑडियो हम लोगों ने फिर से स SDM को सुना दी। हम लोगों का कॉलेज पहुंचने का निर्देश देकर स्वयं बीस मिनट में कॉलेज पहुंचने का आश्वासन दे दिया। आशा का संचार फैलने लगा। सच में लगा कि सरकार में देर है अंधेर नहीं है। तब तक 2 बजने वाले थे।

हम लोगो के कॉलेज पहुंचने के बाद पूरा का पूरा कॉलेज बदला हुआ नजर आया। सभी परीक्षार्थी अपने अपने कमरे में बैठ चुके थे। मैनेजर साहब इंतजार में बरामदे में टहल रहे थे। SDM साहब ने अपने आने की सूचना प्रबंधक जी को दे दी थी। सारे प्रकरण की जानकारी होने के10 मिनट के बाद नीली बत्ती लगी सूमो कार कैंपस में दाखिल हुई। उसके पीछे एक पुलिस की जीप में 6 सिपाही क्षेत्राधिकारी साहब की गाड़ी। SDM साहब के आने का प्रबंधक महोदय बरामदे में इन्तजार कर रहे थे। गाड़ी देखते ही दौड़कर गाड़ी के पास आ गए।

SDM साहब को साथ लेकर प्रबन्धक जी अपने कार्यालय में लेकर चलें गए। प्रबन्धक का कार्यालय बड़े ही व्यवस्थित ढंग से आधुनिक सजाया गया था। वातानुकूलित कमरा पूरी तरह से ठंडा हो चुका था। खिड़कियों के परदे करीने से लगे हुए थे। अंदर नाश्ता-पानी की पहले से व्यवस्था कर ली गई थी। हम लोग कार्यालय के बाहर ही खड़े रहे। लगभग 10 मिनट बाद अंदर से चपरासी बाहर निकला। उसने हम लोगों को अंदर बुला लिया।

प्रबन्धक की कुर्सी पर SDM साहब व मेज की दाहिनी ओर प्रबन्धक बैठे थे।

हम लोग के सामने खड़े होते ही SDM ने पूछा , बताओ आप की क्या समस्या है ?

सर हम लोगों से ₹500 वसूला जा रहा है।

हम सब लोगों ने अपनी बात बताई।

फिर प्रबन्धक से SDM साहब ने इस आरोप के बारे में पूछा।

नहीं साहब ऐसा हो नहीं सकता। प्रबंधक ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया।

तब तक मैंने अपना फोन निकालकर ऑडियो क्लिप ऑन कर दिया। एक एक कर कार्यालय के बाबू की आवाज सुनाई पड़ने लगी। SDM साहब चुपचाप सुनते हैं ,फिर उन्होंने कहा कि चलो हाल में बैठो। हम आप लोगों के बयान दर्ज करेंगे।उसके बाद कार्यवाही की जाएगी।

एक बहुत बड़ा सा नवनिर्मित हाल जिसमें लगभग 70 परीक्षार्थी बैठे थे। हम 6 लोग काफी सक्रिय थे। इन लोगों के नेतृत्व की कमान मैने सीधे संभाल ली थी। चारो लोग मेरे दाएं बाएं खड़े हो गए। SDM के आने के पहले ही मैंने विस्तृत रूप से आज की पूरी घटना की जानकारी उस हाल में बैठे परीक्षार्थियों को दी और इस भ्रष्टाचार के विरोध में समर्थन चाहा। लोग चुपचाप शांत बैठे रहे। मेरे सामने की कुर्सी पर बैठी एक 25 वर्ष की महिला ने भी पैसे वसूलने की बात स्वीकारी। उस ने मेरा पूरा समर्थन देने का वादा किया और कहा कि मैं SDM साहब के सामने आज की पूरी घटना की बात बताउंगी। शेष लोगों का मौन समर्थन मेरे साथ था।

पूरा कमरा खचाखच भरा हुआ था।हम लोग कमरे के दरवाजे के पास ही बेंच पर बैठ गए। तब तक SDM साहब ने बोला प्रारंभ किया।

हां बताइए क्या बात है ? मैंने फिर अपनी बात कहना चाहा। SDM साहब ने मुझे चुप करा दिया। उन्होंने कहा आपने अपनी बात बहुत बार कह दी है ,अब दूसरों को बोलने का मौका दो।

गर्व के साथ किसी फिल्म नायक की भांति मैंने पहले ही पहुंचकर अपने साथियों को आज की बात बता दी थी।

अब मेरे पीछे बैठे लोग बुलाए जाने लगे। सब ने पैसा वसूलने की बात से इंकार कर दिया। हम लोगों के साथ एक भी गवाह नहीं रहा। यही नहीं सामने की सीट पर बैठे हमारे 6 में से 3 लोग मात्र ही अपनी बात पर अडिग रहे। तीन लोग उसमें से भी गवाही से मुकर गए। हम लोगों के पीछे लगभग तीस लोगों ने पैसा वसूलने के आरोपों को सिरे से ही खारिज कर दिया। मेरे पैरों के तले से जमीन खिसक गई। मै रणभूमि में अभिमन्यु की भाँति अकेला खड़ा था। उसके बाद मुझसे पूछा गया। मैंने पूरी हिम्मत के साथ अपनी पुरानी बात दुहरा दी। SDM साहब ने मेरी शिकायत की जांच कराकर उचित कार्यवाही का भरोसा दिलाया और कालेज से बाहर चले गए।

SDM साहब को विदा कर प्रबंधक जी अपने कार्यालय में वापस आ गए। उनके साथ लगभग सात आठ लोग और भी थे जो भारी भरकम शरीर के वलिष्ठ अंगरक्षक रहे होंगे। उन लोगों ने मेरी ओर विद्रूपता भरी कुटिल दृष्टि से देखा। मैं भीतर तक सिहर गया और निर्णय ले लिया कि मैं अब परीक्षा नहीं दूंगा। क्योंकि हमने ही पूरी व्यवस्था का विरोध किया था इसलिए मेरा अहित होना निश्चित है। अंदर के हाल में मौखिक परीक्षा चल रही थी। पांच पांच लोग एक साथ अंदर बुलाये जा रहे थे। मात्र 3 मिनट के पश्चात दूसरे 5 लोग अंदर जा रहे थे। परीक्षा क्या सिर्फ खाना पूरी थी।

तब तक प्रबंधक का चपरासी मुझे बुलाने आ गया। मुझे प्रबन्धक के कमरे में जाना पड़ा। प्रबन्धक ने सामने की कुर्सी पर बैठने का इशारा किया। कमरे के भीतर का जायजा लेकर में बैठ गया।अंदर से मैं बहुत ही भयभीत था। कमरे में केवल हम दो ही लोग रह गए। चपरासी बाहर चला गया।

प्रबंधक जी ने पूछा - श्रीमान जी आप क्या करते हैं ? मैंने पढ़ाई कहकर संक्षिप्त सा उत्तर दिया।

नहीं आप क्या काम करते हैं ?

उनको शक था कि मैं पढ़ाई के साथ कोई नौकरी भी करता हूं।

मैंने साफ-साफ बता दिया कि पीएचडी के बाद मैं किसी सरकारी विद्यालय का अध्यापक हूं।

अब आप ने सच बताया है। आपको मालूम है इस परीक्षा के लिए ऊपर से नीचे तक पैसा देना पड़ता है। एकस्ट्रनल परीक्षकों के आने जाने के लिए कार की व्यवस्था करनी पड़ती है। उनके ठहरने के लिए शहर में होटल की व्यवस्था तक करनी पड़ती है। आखिर इतना पैसा कहां से आएगा ! पूरी व्यवस्था में ही छेद है। भैया हम आप क्या कर सकते हैं। प्रबंधक बड़ा सुलझा आदमी लगा। वह मुझे समझाने लगा कि मास्टर साहब बिना पैसा के कुछ नहीं होता। इतना बड़ा कॉलेज घर से नहीं आप लोगो के पैसों से खड़ा हुआ है ,और फिर इन अधिकारियों को भी तो कुछ चाहिए।

मैं अवाक रह गया। निश्चित ही मेरे सिवा सारे के सारे लोग संतुष्ट थे। मेरा सिर चकराने लगा मेरी समझ में नहीं आ रहा था की परीक्षा में बैठू या ना बैठू। कुछ देर बाद चपरासी मेरे पास आया बोला साहब परीक्षा दे दो।

मैंने परीक्षा ना देने का फैसला कर लिया था। यह बात मैंने प्रबंधक महोदय को भी बतादी। उन्होंने परीक्षा देने का दबाव बनाना शुरू किया। कहा आप क्यों चिंता करते हैं ? आपको तो पास होना ही है। और उनके बहुत समझाने बुझाने के बाद मैं परीक्षा कक्ष तक गया।

मेरा मन परीक्षा से उचट चुका था।

परीक्षक लोग मेरा चेहरा देख रहे थे।

आपका नाम ?

मैंने आज की घटना के साथ अपना परिचय दे दिया। इस घटना के बारे में आपलोगों को तो जानकारी हो गई होगी। परीक्षकों के चेहरे पर संतोष के भाव स्पष्ट दिख रहे थे।शायद उन्हें आज का मेरा विरोध अच्छा लगा। परीक्षा कब से निकलने के बाद प्रबंधक जी बरामदे में ही टहल रहे थे। उन्होंने फिर से मुझे अपने कमरे में बुला लिया। तब तक चपरासी चाय लेकर आ गया था। शायद उनको मुझसे अभी कुछ और बातें करनी थी। प्रबंधक जी अपनी मन की व्यथा कहकर शायद भ्रष्टाचार पर पर्दा डाल रहे थे ,और इसलिए उन्होंने मुझसे बात करने की शुरू की है।

किस किस की बात करूं स्थानीय लेखपाल से लेकर उच्च अधिकारी तक सभी को नजराना देना पड़ता है। थानेदार साहब ने तो आज ही की घटना की जानकारी हमें खुद फोन करके दी थी। लेखपाल से लेकर सचिव तक सब के सब पाप की कमाई पर पलते हैं। अरे भैया क्या करोगे।अन्ना हजारे बनकर अब काम नहीं चलेगा। हम भी चाहते हैं सुकून से कालेज चलाया जाए , लेकिन विधायक जी को चुनाव के पैसे चाहिए। अभी परसों ही विधायक जी आए थे। अखबार से तो आपको पता चल ही गया होगा। मजबूरन उनका सम्मान समारोह करना पड़ा। चाहे सम्मान लायक हो चाहे नालायक हो। पूरे एक लाख के सिक्कों से उन्हें तौलना पड़ा। मैंने भारी मन से आज की इस घटना का खेद व्यक्त किया आखिर परीक्षा देने से मेरा कोई नुकसान नहीं होगा मैं तो पहले से ही प्राइमरी का मास्टर हूँ। हिंदी में PHD कर चुका हूँ। संस्कृत से हो जाएगा तो हिंदी के प्रवक्ता के लिए पात्र हो जाऊंगा। मुझे पास होने की चिन्ता नही है।

प्रबंधक महोदय बड़े ही सुलझे और संपन्न व्यक्ति लगे। मैंने भी प्रबंधक महोदय से इस व्यवस्था की शिकायत की और कहा कि भ्रष्टाचार को सामाजिक स्वीकृति मत दीजिए। पैसे को आप नहीं रोक सकते तो योग्यता के आगे क्यों रोड़ा लगाते हैं। आखिर जिस छात्र ने मौखिकीे की परीक्षा की तैयारी की है उसको भी मौके मिलने चाहिए। अच्छी बात है कि धन के बल पर डिग्री बट रही हो लेकिन निर्धन की योग्यता क्षमता की कद्र आप जैसे समझदार नहीं करेंगे तो कौन करेगा। बिना योग्य लोगों के यह समाज किस प्रकार चलेगा। प्रबन्धक जी चुपचाप मेरी बात सुनते जा रहे थे। अंत में उन्होंने आज की घटना पर खेद प्रकट करते हुए भविष्य में इस बात का ध्यान रखने का आश्वासन दिया। मैं सौजन्य पूर्ण वातावरण में कमरे से बाहर निकल आया।

बाहर निकल कर देखा लोग मुझ से आंखें मिलाने से कतरा रहे थे।


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