प्रत्यक्ष प्रमाण

प्रत्यक्ष प्रमाण

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ठाकुर महावीर शुक्ल का नाम समाज के संभ्रांत जमींदारों में गिना जाता था । गांव की कुल आराजी व आबादी की जमीन का आधा हिस्सा ठाकुर साहब का तथा आधे हिस्से में दो परिवार जमीदारी करते थे। उनके पास 20 गोई बैल की सीर थी । अर्थात 40 बैलों के द्वारा उनकी खेती किसानी होती थी। लगभग 25 की संख्या में हलवाहो की नियुक्ति हर साल होती थी। बेरोजगारी और भुखमरी के आलम में गांव के मजदूर ठाकुर साहब के दरवाजे पर हरवही के लिए पूरे साल अर्जी लगाई खड़े रहते थे । आजादी के लगभग एक दशक के बाद भारत के गांवों का लगभग यही परिदृश्य था ।  आप अवश्य भ्रम में पड़े होंगे कि ठाकुर महावीर शुक्ल की दो-दो जाति आगे पीछे कैसे?   तो मैं बताता हूं ठाकुर का मतलब जमीदारी से है। वैसे तो बहुत कम ब्राह्मणों के पास जमीदारी होती थी लेकिन संयोग से इतने बड़े गांव की जमीदारी प्राचीन काल से ही ब्राह्मणों के हाथ में चली आ रही थी । लगभग 8 बीघे की जमीन पर जमीदार साहब की कच्ची हवेली बनी थी। बड़ी-बड़ी दीवारें , चकाचक रंग रोगन व उस पर बने हुए बेल बूटे देखने वाले को आश्चर्यचकित कर देती थी । बहुत बड़ा आली शान मुख्य द्वार जिसके नीचे से हाथी निकल जाय । कितना बड़ा घर था यही पता ना चले । ठाकुर साहब की दरबार सुबह से ही सज जाता था । केवल जमीदार परिवारों में वसीयत के तौर पर एक एक आराम कुर्सी सुरक्षित रखी रहती थी । ठाकुर साहब पूरी शान शौकत के साथ दरवाजे पर उसी कुर्सी पर आ विराजते । सामने बाहर की चौक से लगभग 200 मीटर की दूरी पर बाउंड्रीवाल बनी थी । दरवाजे के सामने भी बड़ा लंबा चौड़ा सा बग़ीचानुमा स्थान था , जिसमें विभिन्न प्रकार के फूल पौधे व लताएँ लगी हुई थी । उनकी सिंचाई के लिए अलग से एक महतो नाम का आदमी लगा हुआ था । महतो बड़ा ही वफादार नौकर था । एकदम ड्यूटी पर मुस्तैद। ठाकुर साहब के पूरे घर का जिम्मेदार नौकर । महतो की उम्र लगभग 24 वर्ष । पूरा घर महतो के बिना चल ही नहीं सकता था ।                 

ठाकुर साहब के एकमात्र बेटा तथा तीन बेटियां थी । परिवार भी बड़ा सीमित ।आखिर सीमित क्यों ना कहा जाए । इतनी बड़ी मलकियत का अकेला वारिस और ऊपर से केवल 3 बेटियां । परिवार की कमी की पीड़ा ठकुराइन को परेशान किया करती थी। कम से कम भगवान पांच बेटे ही दे देता तो उनकी संपत्ति की ठीक-ठाक से देखभाल तो होजाती । खैर छोड़ो ईश्वर की मर्जी के आगे क्या हो सकता था । अगले पुत्र प्राप्ति के लिए ठकुराइन ने कोई कोर कसर न छोड़ी । अगले पुत्र की प्राप्ति के लिए हर संभव प्रयास किया । मरता क्या न करता । आखिर मरीज ही धीरे धीरे बैद्य बन जाता है । ठाकुर के घर पर कोई न कोई ओझा पंडित पुत्र की मनोकामना पूरी करने के लिए लगा ही रहता था । ठकुराइन पूरे प्रयास से कर्मकांड में लगी थी ।

                        

तीन पाउठ(आंगन) का घर । तीन आंगन वाले इस घर में पहले आंगन तक नौकरों का आना जाना होता था, दूसरे आंगन तक गांव की महिलाओं का तथा तीसरे और अंतिम आंगन में केवल घर के लोग व रिश्तेदार ही आ जा सकते थे ।अमावस की रात के 3 बज रहे थे। एक अघोरी तांत्रिक बाबा डेरा जमाए हुए अनुष्ठान कर रहे थे । इधर तीन दिनों से रोज रात को ठीक 12:00 बजे तंत्र साधना की क्रिया की जाती थी । आज अंतिम दिन , अघोरी तांत्रिक बाबा के द्वारा आज किसी जानवर की बलि दी जाएगी उसके बाद ठकुराइन को अगला पुत्र प्राप्त होगा । लगभग 38 वर्षीय ठकुराइन पुत्र प्राप्ति की कामना से अधीर हो चुकी थी । उन्हें हर हाल में केवल पुत्र ही चाहिए था । अंदर के आंगन में ठाकुर ठकुराइन के साथ अर्धरात्रि में अघोरी तांत्रिक साधना में लीन था । एक बकरे की बलि चढ़ाई जानी थी । बलि देखकर ठाकुर साहब का मन विचलित हो गया । आखिर ठाकुर साहब मूल रूप से तो ब्राह्मण ही थे । पूर्ण वैष्णव परिवार के लिये बलि देना बड़ा दुश्कर कार्य था । यह तो शाक्त जनों का कर्म है। किसी तरह अनुष्ठान पूरा हुआ । ठाकुर साहब उठ कर बाहर चले गए । बीच वाले आंगन में महतो को बुलाया गया । पूरी रात किए गए अनुष्ठान का प्रसाद महतो को खाना था। रात के लगभग दो बजे महतो की इच्छा प्रसाद खाने की नहीं थी । लेकिन बेमन से प्रसाद खाना पड़ा । प्रसाद के साथ कुछ अन्य वस्तुएं कपड़ा लत्ता भी महतो को दिया गया । महतो की समझ में कुछ नहीं आ रहा था । वैसे तो पूजा पाठ के बाद दान दक्षिणा का सामान आखिर पंडित पुरोहित को दिया जाता था । आज नया नया कपड़ा उस अहिर को क्यों दिया जा रहा है ? .यही सोचकर महतो परेशान था।                          


अंदर के कमरे से एक बड़े झउआ अर्थात बांस से बने पात्र के साथ ठकुराइन व अघोरी बाबा बाहर निकले । जिसमें पूजा का अवशेष रखा हुआ था । इस बचे समान को बाहर जाकर दूर कंही फेकना था। महतो चुपचाप बैठा सारा तमाशा देख रहा था । प्रसाद खाने के बाद महतो को एक गिलास दूध भी दिया गया। उसका मन सशंकित हो गया । उस झउए को महतो के सिर पर लाद दिया गया । निबिड अंधकार में महतो पूजा की सामग्री को फेंकने के लिए निकल पड़ा । इस सुनसान रात में महतो को टार्च भी नहीं दी गई । शायद एकांत और गोपनीयता बनाए रखने के लिए इतनी रात में टॉर्च ना देना ही उचित रहा होगा । अनमने मन से वह बिना टॉर्च के ही सिर पर बोझा लादे लगभग 2 किलोमीटर दूर एक निर्धारित स्थान के लिए निकल पडा ।  दूर-दूर तक कुछ सूझ नहीं पड़ रहा था । भीषण अंधकार को चीरकर महतो एक एक कदम आगे बढ़ता जा रहा था । चारों ओर सिर्फ और सिर्फ अंधकार ही अंधकार दिखाई पड़ रहा था । वैसे भी अमावस की रात बड़ी भयानक होती है। महतो को कुछ भी सूझ नहीं रहा था । एक एक कदम साध कर चलते हुए महतो को लगा कि आज उसके सिर के ऊपर बहुत बड़ा भारी बोझ रखा हुआ हो । पूजा के फूल पत्ती, केला के पत्ते हवन सामग्री का अधजला अवशेष अभी भी अपनी सुगंध बिखेर रहा था । नाध( खेत सींचने के के लिए बनाया गया एक पानी का गड्ढा ) तक पहुंचते पहुंचते झउआ में रखी हवन सामग्री अचानक भभक कर जल उठी । उसे लगा कि उसके सिर पर रखे झउआ में आग लग गई है उसने झट से उसे नाध ने फेंक दिया । सच झउआ में सुलगती हवन सामग्री रास्ते में धीरे-धीरे हवा लगने से परच चुकी थी ,और उसमें से लपटें निकलने लगी ।

किसी तरह से झउआ फेंककर महतो ठाकुर की हवेली वापस लौटा । रास्ते में महतो को ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई व्यक्ति उसके पीछे पीछे चला आ रहा है । मारे डर के उस की हिम्मत नहीं पड़ी कि वह पीछे मुड़ कर के देखें । वह बड़ा निर्भीक और साहसी था उसके साथ के लगभग 25- 26 नौकरों में वह सब से हिम्मती था । अक्सर रात में खेत में पानी लगाने का काम उसी के हिस्से में पड़ता था । कभी-कभार एकाध लोग उसके साथ चले जाते थे उसे कभी भी भूत प्रेत तक से डर नहीं लगता था । बस उसकी लाठी उसके साथ हो । लेकिन आज महतो मारे भय के अंदर तक हिल गया । घर वापस आया तो उसके चेहरे की हवाइयां उड़ रही थी। एक तो आधी रात उस पर से नाध तक अकेले जाना व अचानक आग का भड़क उठना उसके मन में तमाम प्रकार का भय व आशंका पैदा करती जा रही थी । किसी तरह से झउआ फेंककर महतो ठाकुर की हवेली वापस लौटा ।ठकुराइन बीच वाले आंगन में महतो के वापस आने का इंतजार कर रही थी । बदहवास सा महतो आकर बरामदे में धम्म से बैठ गया । पलंग पर लेटा तांत्रिक ठाकुर से बातें कर रहा था । रात के लगभग तीन बज चुके थे । महतो का हालचाल लिया गया तो अंदर से परेशान वह कुछ कहने की स्थिति में नहीं था । बस आग वाली बता कर वह अपने घर चला गया । घर क्या ठाकुर की चहारदीवारी से सटा एक कमरा, जिसमे उसका पूरा परिवार रहता था ।                 


घर पहुंचकर महतो ने चैन की सांस ली लेकिन महतो की आंखों से नींद बहुत दूर थी । मारे भय के उसे नींद नहीं आई । उस की दो छोटी बहनें खर्राटे मारे मां के साथ सो रही थी । घर के किसी सदस्य को महतो के आने की आहट नहीं लगी । वह चुपचाप अपनी चारपाई पर लेट गया ।आज ना चाह कर भी महतो को ठाकुर की बात माननी पड़ी ।ना मालूम क्यों ठकुराइन की बात मानते हुए प्रसाद खा गया । कम-से-कम उसे आज प्रसाद नहीं खाना चाहिए था । पूजा में मिली धोती बनियान उसने अपने सिरहाने रख लिया । सोचते सोचते अचानक उसे उस धोती बनियान से भय मिश्रित घृणा पैदा होने लगी। प्लास्टिक की पन्नी में रखा वह सामान उसने अपने सिरहाने से हटाकर पैताने की ओर रख लिया । भोर के 5:00 बज रहे थे ।आज उसे एक पल के लिए भी नींद नहीं आई । रोज की भांति आज उसका मन उठने को नहीं हो रहा था । पूरी रात जागने के कारण उसका पूरा शरीर दुख रहा था। ठाकुर की गाय भैंस बैलों को चारा देना उसी का काम था । ठाकुर ठकुराइन और अघोरी बाबा भी शायद अभी जगे नहीं थे । देर रात तक जागरण के कारण वे लोग अभी सो रहे थे ।                              -:2:-                       


आज महतो की तबीयत ठीक नहीं थी । उसका मन काम पर जाने को नहीं कह रहा था । मारे दर्द के उसका सिर फटा जा रहा था । मजबूरन सूचना देने के लिए ठाकुर की हवेली तक उसे जाना पड़ा । अंदर अघोरी बाबा नाश्ता कर रहे थे । महतो की भी खोज खबर ली गई । महतो को चाय दी गई।उसने चाय पी। आज महतो ने अपनी मजबूरी बताई और उसकी दिन भर के लिये छुट्टी कर दी गई।महतो की मां रमकिशुनी सिर दर्द से ज्यादा उसकी छुट्टी को लेकर परेशान हो गई । पूछा वापस क्यों आ गए ? पता चला सिर दर्द के कारण आज छुट्टी ले ली है । उस परिवार के लिए महतो अकेला कमाई का जरिया था । महतो के अलावा उस की दो छोटी बहनें शिवकली और फूलकली भी थे । महतो अपनी दोनों बहनों को पढ़ाने में कोई कोर कसर नहीं रखना चाहता था । दोनों पड़ोस के कस्बे में नौवीं और दसवीं में पढ़ रही थी । आस पास में कोई स्कूल न होने के कारण मजबूरन उसकी दोनों बहने पैदल ही 4 किलोमीटर दूर कस्बे में पढ़ने जाती ।ठाकुर की कृपा से एक पुरानी साइकिल का इंतजाम हो जाने से दोनों बच्चियां अब आसानी से स्कूल पहुंच जाती हैं। साइकिल की लिमटी उसकी पगार से धीरे धीरे एक साल में चुकता हो जाएगी । महतो की एक ही ख्वाहिश थी कि दोनों बहनों को पढ़ा लिखा कर सरकारी नौकरी मिल जाए । बड़ी मेहनत से दोनों बहने पढ़ भी रही थी । लगभग एक हफ्ता से महतो सो नहीं सका । उसका दर्द बढ़ता ही जा रहा है । कोई दवा दारू उसे फायदा नहीं कर रही है । आसपास के डॉक्टरों को दिखाया गया । सब ने अपनी जोर आजमाइश की । अब तो दर्द के साथ उसे बुखार भी होने लगा । हफ्ते भर में तीन डाक्टर बदल दिए गए । कोई लाभ नहीं हुआ । महतो पूरी रात अपनी चारपाई पर बैठा ही रहता । पूरी पूरी रात बैठकी में ही बीत जाती है । महतो की मां रमकिशुनी पूरे समर्पण के साथ अपने इकलौते बेटे की सेवा सुश्रुषा करती । परंतु उसे कोई फायदा नहीं हुआ । आज लगभग 21 दिनों में एक भी पल के लिए महतो को नींद नहीं आई । धीरे-धीरे महतो पूरी तरह से चुप हो गया । लगा कि जैसे उसने मौन व्रत धारण कर लिया हो। अब तो बुलाने पर भी वह बड़ी मुश्किल से बोलता था । टोला पड़ोस की महिलाओं ने महतो को किसी झाड़-फूंक वाले को दिखाने की सलाह दी । जितने लोग उतनी बातें । कोई कहता है कि इन्हें भूत प्रेत ने पकड़ लिया है । कोई कहता है कि इन्हें कोई रोग हो गया और इस प्रकार उसे पीर बाबा की मजार पर झाड़-फूंक के लिए ले जाया गया । वहां जाने के लिए महतो तैयार नहीं था । परंतु बहुत समझाने बुझाने पर उसे किसी तरह पीर बाबा की मजार तक ले जाया गया । मजार पर पहुंचते ही महतो अचानक जोर-जोर से चिल्ला उठा । मुझे क्यों खिलाया है ? मुझे अब कुछ भी नहीं खाना है? अपना कपड़ा वापस ले लो । अगरबत्ती की जरूरत नहीं है । आदि आदि बेसिरपैर की बातें महतो करने लगा , आसपास खड़े लोग इतनी तेज आवाज सुनकर महतो को चुप कराने लगे। मौलवी साहब ने सबको शांत रहने का संकेत किया । कुछ देर बाद महतो स्वयं थककर शांत हो गया।महतो को दो-तीन लोग पकड़ कर वापस घर लाए । मौलवी ने भभूत लगाकर महतो को पूरी तरह शांत कर दिया। महतो के ऊपर बहुत बड़ा साया है। इसको किसी ने ताबीज खिला दिया है। इसके ऊपर टोटका किया गया है । आधी रात को किसी ने महतो को मिठाई में कुछ खिला पिला दिया है। तबसे महतो पर जिन्न सवार हो गया ।                          


 आस-पड़ोस में कानाफूसी होने लगी । ठाकुर के घर के अनुष्ठान के सूत्र एक-एक कर महतो की तबीयत के खराब होने से जोड़े जाने लगे । सभी लोगों को पूरा यकीन हो गया कि इस घटना के पीछे केवल और केवल ठकुराइन का ही हाथ है । धीरे धीरे महतो की मानसिक दशा और भी खराब हो गई ।अब तो उसके अंदर से ठाकुर का डर भी समाप्त हो गया । पीर की मजार से वापस आने पर महतो पूरे समय तक चिल्ला चिल्ला के उस रात की घटना के बारे में अस्पष्ट बड़बड़ाने लगता। ठकुराइन को पूरा यकीन हो गया था कि महतो के ऊपर उस अनुष्ठान का ही प्रभाव है । वह महतो के बड़बड़ाने के पीछे अपनी कोख हरी होने की सम्भावना देखने लगी । लगभग 3 महीने बाद उसने ठाकुर साहब को उस रात के अनुष्ठान के सफल होने की सूचना दी । ठाकुर साहब बहुत ज्यादा प्रसन्न नहीं हुए । कहा चलो भगवान की जैसी मर्जी । ठकुराइन अघोरी बाबा की कृपा को ही सब कुछ मान रही थी । उसे इस समय ठाकुर का चुप रहना अच्छा नहीं लगा । वह अघोरी बाबा के बारे में और अधिक बतियाना चाह रही थी । इस समय ठाकुर साहब चुपके से चौपाल से उठकर बाहर चले गए। महतो की तबीयत दिन-ब-दिन बिगड़ती ही जा रही थी । लगभग 8 महीने तक झाड़-फूंक दवा दारू का काम चला , लेकिन तबीयत में कोई फायदा नहीं हुआ । इस 8 महीने में शायद ही कभी महतो एकाध मिनट के लिए सोया सका हो। रात दिन केवल जोर जोर से चिल्लाता ही रहता । शुरुआत में उसकी चिल्लपो से पड़ोसी लोगों की भी नींद हराम हो जाती थी। धीरे-धीरे सब के सब पड़ोसी भी अभ्यस्त हो गए । महतो का चिल्लाना उन सब के लिए सामान्य सी बात हो गई । ठकुराइन मन ही मन अपनी कोख में पल रहे गर्भ के प्रति आश्वस्त हो गई थी कि कुछ भी हो अबकी बार बेटा ही होगा ।


क्वार का महीना था । आज ठकुराइन की तबीयत कुछ अनमन है । मीठा मीठा दर्द पुत्र जन्म की संभावना में बडा सुखकर प्रतीत होता है । बड़ी सावधानी के साथ जच्चा बच्चा की देखभाल की जा रही है। अलग से एक परिचारिका की नियुक्ति कर दी गई थी जो ठकुराइन को समय समय पर उचित आहार व पथ्य देती रहती है। आठ महीने पूरे होने वाले हैं । ठकुराइन की आश्वस्ति से पास पड़ोस भी पूरी तरह पुत्र जन्म के लिए उत्सुक है ।  महतो की तबीयत खराब होने के बाद से अब तक कोई ऐसा विश्वासपात्र नौकर ठाकुर साहब को नहीं मिला जो उसकी जगह ले सके । इस बात का मलाल ठाकुर साहब को अक्सर रहता था । उधर घर से ठीक 200 मीटर की दूरी पर महतो की चीख पुकार के कारण भी ठाकुर साहब का मन कभी कभी व्यग्र हो जाता । उस रात अघोरी बाबा के द्वारा दिया गया बलि ,हवन के लिए महतो को भेजना उन्हें अपनी बेवकूफी ही लगती थी । अब तो महतो चिल्ला चिल्ला के उस रात की पूजा पाठ की बात पूरे समाज के सामने कहने लगा। कभी-कभी टहलते टहलते वह ठाकुर साहब के सहन के सामने भी आ कर चिल्लाने लगता ।आसपास के लोग पागल महतो के इस व्यवहार से अंदर अंदर बहुत खुश होते । ठाकुर साहब महतो को देखते ही पैर पटक कर हवेली के भीतर चले जाते । ठकुराइन इस अप्रत्याशित व्यवहार से दुखी हो जाती लेकिन मन मसोस कर चुप रहती । आज ठकुराइन को पीड़ा शुरू हो गई । दिन नजदीक आ गया । शाम से ही उनकी सेवा सुश्रुषा के लिए महिला डॉक्टरों की टीम बुला ली गई। लगभग 1:00 बजे रात में ठकुराइन ने एक बेटी को जन्म दिया । ठाकुर साहब को चौथी पुत्री का जन्म कुछ अजीब अवश्य लगा फिर भी चुप ही रहे । कुछ भी नहीं बोले । ठकुराइन के ऊपर तो समझो वज्रपात हो गया । अघोरी बाबा के प्रति अटूट विश्वास एक ही पल में भरभरा कर खत्म हो गया । वह अघोरी बाबा को कोसने लगी । तुषारापात से झुलसे वृक्ष की पत्तियों की तरह ठकुराइन का चेहरा झलस सा गया। पुत्र जन्म की संभावना को लेकर बुलाए गए महिला मेहमान 3 दिन रुक कर एक-एक करके सब वापस चले गए ।


                      -:3:-             


 वैसे तो रमकिशुनी महतो का बडा ख्याल रखती किंतु धीरे-धीरे वृद्ध होती रमकिशुनी के ऊपर महतो कभी कभी हाथ उठा देता । खाने खिलाने को लेकर महतो मां को मार भी बैठता । बीमार पागल पुत्र को संभालने के लिए आखिर मां के सिवा है ही कौन । दोनों बहने भी लगभग महतो के पास जाने से कतराती रहती है । महतो को भी दोनों बहनो से जैसे चिढ़ हो गई थी । बड़ी शिवकली 11वीं में तथा छोटी दसवीं की परीक्षा की तैयारी कर रही थी । उस समय बड़े घर की बेटियां भी आठवीं पास कर पढ़ाई छोड़ देती थी । ऊपर की पढ़ाई प्राइवेट फॉर्म भरकर पूरा करती थी ।आखिर लड़कियों को चिट्ठी पढ़ने से ज्यादा पढ़ाई की जरूरत ही क्या है। ससुराल का हालचाल भेजने से लेकर मायके की कुशल क्षेम से ज्यादा पढ़ाई की क्या जरूरत है ।धीरे-धीरे महतो की मां और बहनों ने हवेली जाना पूरी तरह बंद कर दिया । दबी जुबान से पूरा समाज महतो की मानसिक दशा के लिए ठकुराइन को दोषी ठहरा रहा था । रमकिशुनी की दोनों बेटियां ठकुराइन की बेटियों से किसी भी मामले में कमतर नहीं थी । बस दोस था तो उनकी बेचारगी वा गरीबी का । उनकी देखभाल के लिए भी एक मात्र मां के अतिरिक्त दूसरा कोई नहीं था । खेती किसानी के बल पर किसी तरह दोनों बेटियां अपनी पढ़ाई आगे जारी रखना चाह रही थी । शिवकली की तुलना में फूलकली और भी सुंदर तथा तेज थी । मारे भय व शरम के दोनों बेटियां गांव के लोगों से बातचीत तक नहीं करती थी। जवानी की दहलीज पर दोनों बेटियां कदम रख चुकी थी । गोरी चिट्टी दोनों लड़कियां पास पड़ोस के लिए ईर्ष्या का कारण बन गई । जमींदारों की लड़कियों से सुंदर व करीने से रहने वाली , गरीब की पढ़ने जाने वाली दोनो लड़की पूरे गांव के लिए चर्चा का विषय बनी रहती । बिना मतलब के इन के टांके की फर्जी चर्चा होने लगती । जिसके कारण बच्चियों ने ब्राह्मणों के परिवार से दूरी बना ली थी ।  ठाकुर की दोनों बड़ी बेटियां भी शिव कली व फूलकली के हमउम्र थी , लेकिन सुंदरता के लिहाज से वह अवश्य कमतर थी । बड़े लाड प्यार से पाली गई ठाकुर की बेटियों के चेहरे पर गुरूर का असर एकदम साफ दिखाई देता ।


                शिवकली , फूलकली दोनों इस परिवार के साथ अब किसी भी प्रकार का संबंध नहीं रखना चाहती थी । महतो की जवानी बर्बाद करने का श्रेय इसी परिवार को जाता था । दोनों बहने यह बात अच्छी तरह से समझती थी । घर की कमाई का जरिया बंद हो गया । किसी तरह से शिव कली बारहवीं तथा फूलकली ने 11वीं पास किया । दोनों को पढ़ाई बंद करनी पड़ी । घर पर मां के सिवा कमाने धमाने वाला अब कोई नहीं बचा था । मजबूरन पेट पालने के लिए दोनों को घर से बाहर निकलना पड़ा । शिवकली को शहर में एक पीसीओ बूथ पर नौकरी मिल गई थी । ₹620 महीना पगार थी । रमकिशुनी भी इस बात से पूरी तरह वाकिफ थी कि उनकी बेटियां जवान है, सुंदर है तथा जहीन है । उसने बच्चियों को भले बुरे की खूब शिक्षा भी दी थी । उसे विश्वास था कि उसके बच्चे सही रास्ते पर ही चलेंगे । किसी भी बहकावे में नहीं आएंगी । शिवकली की नौकरी लग जाने से घर का काम कुछ ठीक-ठाक चलने लगा


 पूरे गांव में लड़कियों क्या लड़के तक कोई काम धाम नहीं करते थे । जमींदारों के लड़के किसी तरह 12वीं पास कर आवारागर्दी ही करते रहते ।एक भी परिवार में कोई भी लड़का सरकारी नौकरी नहीं करता था । बेरोजगारी के इस आलम में एक बहाना था ----- उत्तम खेती मध्यम बान । निकिस चाकरी भीख निदान ।। अर्थात खेती को सबसे उत्तम कार्य के रूप में मान्यता मिल चुकी थी । इसके बाद व्यवसाय तथा सब से गया गुजरा काम था नौकरी करना । पूरा गांव नौकरी को भीख मांगने के समान मानता था ।गांव के माहौल से दोनों बेटियों का मन ऊब चुका था। चाहती तो थी कि गांव ना आना पड़े लेकिन मरता ना तो क्या करता । यही सोच कर जितने उत्साह के साथ शिवकली शहर जाती उतने ही बुझे मन से के साथ वह गांव वापस आ जाती । उस पर सड़क की पुलिया पर बैठे गांव के लंपट ,लंबरदार, मजनुओं की छींटाकशी उसे भीतर तक घायल कर देती है।   वैसे भी पीसीओ पर अजीब अजीब किस्म के इंसानो से शिवकली का पाला पड़ता । पीसीओ के केबिन के अंदर ही एक केबिन और बना दी गई थी।शिवकली सुरक्षित रूप से अपने केबिन में बैठकर काल रीडिंग के अनुसार पैसा वसूलती थी । लेकिन जाहिल इंसानों को कौन समझाए कि बिना कारण के ही शिवकली से चिकचिक करने लगते । बडे धैर्य के साथ शिवकली अपना काम करती रहती । इस नौकरी की हैसियत व कीमत शिवकली भली-भांति जानती थी । भुखमरी के कगार पर पहुंचे परिवार के लिए यह नौकरी मृतसंजीवनी से कम नहीं थी ।  फूलकली का भी नाम बारहवीं में लिखा दिया गया । अब दोनों बहने एक ही साइकिल से कस्बे आ जाती । शिवकली को पीसीओ पर छोड़ने के बाद फूलकली कालेज चली जाती । उस समय लड़कियों का साइकिल चलाना किसी अजूबे से कम नहीं था । पहली बार जब दोनों बहने मर्दाना साइकिल लेकर सड़क पर निकली तो जिसको देखो वही आश्चर्य व्यक्त कर रहा था । अरे बाप रे कैसा जमाना आ गया ! लड़कियां साइकिल चलाने लगी । यह तो गनीमत थी कि दोनों बहने एक साथ जाती थी , नहीं तो लोग क्या न करने लगते । दोनों बहने बड़ी दृढ़प्रतिज्ञ थी । लोगों के ताने सुनकर एकांत में वे दोनों उन्ही लोगों पर हंस लेती । जलो जलने वालों । इंटर की वार्षिक परीक्षा होने वाली है । लगता है बसंत के मौसम में प्रकृति ने सारी खूबसूरती फूलकली पर उड़ेल दी हो । धीर गंभीर फूलकली पूरी तरह विकसित होकर पुष्प बन चुकी थी । कक्षा के सभी बच्चे लगभग उसी की चर्चा करते रहते । उसी की कक्षा के एक सजातीय बालक से ना जाने कब और कैसे दोनों के बीच मित्रता हो गई । कॉपी किताब के लेनदेन के बहाने चिट्ठियों का आदान-प्रदान शुरू हो गया । चिट्ठियां क्या थी पूरी की पूरी कॉपी । आठ-दस पन्ने के पत्रों का आदान प्रदान होने लगा । किसी तरह से परीक्षा पूरी हुई । आज अंतिम पेपर है। लड़के का पिता एक दूसरे शहर में सरकारी ओहदे पर है। खाता पीता घर है । पड़ोस के गांव में ही लड़का अपने चाचा के साथ रहता है । तीन साल एक ही कक्षा में फेल होने के बाद फैशन परस्त वह लड़का शहर से इस कस्बे में पढ़ने चला आया । सोचा नकल करके पास ही हो जाएगा ।        


आज सुबह से ही फूलकली कुछ अनमन है । वह बार-बार अपना सामान संभालने में लगी हुई है । पता नहीं वह क्या ढूंढ रही है । अंतिम पेपर वाले दिन उसने स्कूल ड्रेस न पहनकर घरेलू कपड़े को पहन लिया । वैसे भी वह इतनी सुंदर है कि उसके ऊपर हर कपड़ा जचता है । शिवकली जल्दी-जल्दी तैयार होकर छोटी बहन के साथ शहर के लिए निकल पड़ी । फूलकली परीक्षा के बाद पीसीओ आ जाती थी , फिर वही बैठ कर अगले पेपर की पढ़ाई करती थी । एक दिन पहले ही अगले पेपर की किताब वह अपने साथ ले आती थी ।लगभग पेपर छूटे एक घण्टा बीत चुका है लेकिन फूलकली वापस नहीं आई । शिवकली ने सोचा आज अंतिम पेपर के बाद सहेलियों के साथ मटरगश्ती हो रही होगी । लेकिन शिवलली का मन बार-बार सड़क की ओर ही लगा रहा । अनमने भाव से पीसीओ पर बैठी आखिर शिवलली कर ही क्या सकती थी । लगभग एक घंटा बीत चुका था, धीरे-धीरे दूसरा घंटा भी बीत गया । फूलकली नही आई । शिवकली ने सोचा कि कस्बे में नया-नया (छवि ग्रह) पिक्चर हाल खुला है । शायद वही चली गई होगी । 3 घंटे बीत गए लेकिन फूल कली वापस नहीं आई । शाम के 3:15 बज चुके हैं । पिक्चर भी छूट चुकी होगी । शायद 3:30 तक फुलकली वापस आ जाए ।  इसी इंतजार में शिवकली परेशान थी । आज उसे फूलकली पर बहुत गुस्सा आ रहा था । अब उसे लगा कि फूलकली सिधाइ का नाजायज फायदा उठा रही है । 3:30 बजे पीसीओ को बंद कर छोटी बहन की खोज खबर लेने के लिए बाहर निकली । देखा पीसीओ के बाजू में फूलकली की साइकिल खड़ी थी ।उसे लगा कि यहीं कहीं फुलकली भी होगी । शायद सरप्राइज़ देने के लिए वह कहीं छुप गई हो । लेकिन 10 मिनट तक इंतजार के बाद फूलकली कहीं दिखाई न पडी । शक्ति रहे उसने साइकिल पकड़कर पीसीओ के सामने खंभे में लगा था। साइकिल का ताला खुला हुआ था ।सोचा कहीं होगी आ ही जाएगी । पीसीओ को खोल कर अंदर दाखिल हुई । फिर भी छोटी बहन दिखाई नहीं पड़ी । शिवकली का मन पीसीओ में नहीं लग रहा था । वह फिर बाहर निकल आई और इधर-उधर देखने लगी । तब तक उसकी निगाह साइकिल की गद्दी के नीचे पड़ी । उस में एक मुड़ा हुआ कागज रखा मिला । उसने उस कागज को झट से बाहर निकाला ।  

 

प्रिय दीदी !       

 मुझे क्षमा करना । मैंने बिना बताए आपसे यह कदम उठा लिया । मैंने अपने मनपसंद का जीवन साथी चुन लिया । वह भी अपनी ही जाति का है । इसलिए मुझे क्षमा करना । वह मुझे बहुत खुश रखेगा । अम्मा ,भैया का ख्याल रखना ।                      

 तुम्हारी मुन्नी ।                             


पत्र पढ़कर शिवकली की आंखों के सामने अंधेरा छा गया । अब वह गांव समाज को क्या मुंह दिखाएगी ।शाम के 4:00 बज रहे थे । जल्दी जल्दी पीसीओ की चाबी मालिक को देकर बेचारी शिवकली थकी हारी जुआरी की भांति घर के लिए अकेले ही निकल पड़ी। भय, क्रोध व ममता के भाव एक-एक कर उसके चेहरे पर आ जा रहे थे । सोच रही थी कि आखिर गांव जाकर मां को क्या कबाब देगी ,किस मुंह से फूलकली के भाग जाने की सूचना देगी। मां के दिल पर क्या गुजरेगी । जब गांव समाज के लोग जानेंगे तो क्या कहेंगे आदि आदि प्रश्न उसे परेशान किए जा रहे थे । उसके सामने चारों ओर का समाज शिकारी शेर की तरह खड़ा दिखाई पड़ा । कितनी मेहनत , त्याग, तपस्या के बाद इस करमजली को पढ़ाया लिखाया । आज इस तरह से मुंह काला करके भाग गई । उसने सपने में भी नहीं सोचा था फूलकली ऐसा भी कर सकती है । उसे आज अपने आप पर बहुत क्रोध आ रहा था । आखिर पढ़ाई छूट गई थी तो छूट जाती । उसे मरजर कर फिर से कॉलेज में नाम लिखाने की क्या जरूरत थी । न कॉलेज में नाम लिखाती और न यह दुर्दिन देखने पड़ते।इतनी चुप्पी लड़की तो मैने जीवन मे नहीं देखी । आखिर हमे बता देती तो क्या मैं उसे रोक देती । मुझे तो वह अपनी हर बात बता देती थी।लेकिन इस लड़के के बारे में कुछ भी नहीं बताया । अगर मुंह खोल देती तो क्या हम विरोध करते । उसके हम दुश्मन थोडो हैं । यदि अपनी जाति का लड़का है तो हम खुद उसके मातापिता से बात करके शादी करा देते । चिरौरी मन्नत के बाद तो किसी तरह बात बन ही जाती । अगर इतने पर भी बात न बनती तो हम खुद ही उस लड़के के साथ भेज देते । फिर भी तो यही होता। कौन वह फेरे डाल के ले जाता। लेकिन हम को बताने में क्या हर्ज था।बेचारी किस हालत में होगी । न मालूम वह लड़का कंहा ले गया होगा ? घर तो गया नहीं होगा। जरूर किसी रिश्तेदार, मित्र या होटल में टिका होगा । मुझसे भी कहा करती थी दीदी कोई अच्छा सा लड़का देख कर अपनी शादी कर लो । लेकिन मैंने खुद ही ध्यान नही दिया । आखिर उसकी भी तो उम्र हो गई है। वह भी तो सयानी हो गई । कब तक मेरा इंतजार करती। पांच छः महीने से अक्सर मेरे शादी की बात किया करती थी। एकाध लड़के पसन्द भी आये तो उनका परिवार ,घर नही ठीक लगा । टोला पड़ोस की सब लड़कियों की शादी कब की हो गई है। एक दो की गोद भी भर गई । यही सोचकर शिवकली का मन भर गया । सम्भवतः शिवकली स्वयम फूलकली के मन को समझ नही पाई । साउथ अफ्रीका के अपनी शादी की बात कह रही थी ।साइकिल चलाते-चलाते उसके पांव जवाब देने लगे । उसका घर मुश्किल से 200 कदम दूर रह गया था ।मन बहुत परेशान था । इस अनहोनी घटना को जब मा सुनेगी तो उस पर क्या बीतेगी। वह रो रो कर चिल्ला कर पूरे टोला पड़ोस को जगजाहिर करा देगी । कैसे मां को बताया जाए । किस तरह मां को चुप किया जाए । ढेर सारे प्रश्न उसके सामने विकराल रूप में खड़े दिखाई पड़े। उसने अपनी साइकिल रोक दी । कुछ क्षण रुक कर वह घर की ओर बढ़ चली। उसे ऐसा लगता था कि उसके पांव में आगे बढ़ने की शक्ति नही है। हे भगवान यह दिन देखने के पहले उसकी मौत क्यों नहीं हो गई? किसी तरह दबे पांव शिवकली घर पहुँची। साइकिल दलान में खड़ी कर रही थी कि मां ने पूछा , छोटी कंहा है? वह भी है। शिवकली का संछिप्त सा उत्तर सुनकर मां अंदर पानी लाने चली गई । शिवकली धम्म से चारपाई पर बैठ गई। पानी को हाथ तक नही लगाया। कुछ देर बाद अंदर से माँ बाहर निकली। शिवकली का मुंह उतरा हुआ था। किसी आसन्न संकट के भय से रमकिशुनी ने पूछा। क्या हुआ? शिवकली दहाड़ मार कर रो पड़ी। छोटी हमे छोड़ कर किसी के साथ चली गई। मां को जैसे सांप सूंघ गया। वह जड़वत हो गई। उसकी समझ मे नही आया कि आखिर हुआ क्या। क्या कोई दुर्घटना हो गई। आखिर हुआ क्या? शिवकली ने बताया, फूलकली घर छोड़कर किसी लड़के के साथ भग गई। 

          

 शिवकली की आशा के विपरीत मां एकदम चुप हो गई ।  रमकिशुनी के सभी ख्वाब एकाएक चकनाचूर हो गए। पूरी तरह निस्तब्ध बैठी रही। उसके मुंह से एक भी शब्द नही निकला। उस शाम घर मे चूल्हा नही जला । मां बेटी पूरी रात शून्य में ताकती रही ।     धीरे धीरे सब सामान्य होने लगा । अब शिवकली अकेले ही नौकरी पर चली जाती । वक्त धीरे-धीरे सब घाव भर देता है । साइकिल से नौकरी पर निकलते हुए शिवकली को फूलकली के अभाव में कस्बा आना जाना बहुत बुरा लगता ।बेमन से शिवकली पीसीओ जाने लगी । वहां पर भी उसका मन नहीं लग रहा था। फूलकली के बाद उसका मन पीसीओ पर भी उचटा ही रहता । अब वह ग्राहकों से इतना मधुर व्यवहार नहीं कर पा रही थी ।अक्सर किसी न किसी बात पर उसकी चिकचिक हो ही जाती। छोटी बहन का जाना उसके जीवन को और रिक्त कर गया । शिवकली के नीरस जीवन में कहीं से भी रस की संभावना नहीं रह गई । सुबह उठकर पीसीओ जाना और फिर से शाम को रोजमर्रा के जरूरी सामान के साथ घर चले आना , बस इतना ही काम बचा था । पीसीओ की नौकरी से मन ऊब चुका था लेकिन शिवकली विकल्प हीन पक्षी की भांति पिजड़े को ही अपना घर मान बैठी थी ।अचानक आज हरियाणा की काल थी । एसटीडी काल के बाद उसने बिल का हिसाब पूछा । उसके पास खुले पैसे नहीं थे। 500 का नोट देकर वापस चला गया , कहा कि कल आकर शेष रुपए ले लूंगा । शिवकली के लिए 500 का नोट संभालना बड़ी जिम्मेदारी थी । बड़ी मुश्किल से शाम तक दो-तीन सौ का काम होता था । ना चाह कर भी शिवकली को ल रुपए रखने पड़े । आखिर उस का बिल ₹17 भी नहीं छोड़ा जा सकता था । अगले दिन वह वापस नहीं आया । शिवकली पूरे दिन उसका इंतजार करती रही । तीसरे दिन भी शिवकली को इंतजार करना पड़ा । चौथे दिन अचानक फोन की घंटी बज उठी ।" हेलो कौन? मैं ......... रामप्रकाश । खुले पैसे हुए ।आपके पास ₹500 छोड़ दिए थे ।" "अरे हां .....हेलो .....जी........ तब से आप आए ही नहीं । हम तो इंतजार ही करते रह गए ।" राम प्रकाश को शिवकली का व्यवहार बड़ा अच्छा लगा ।               रामप्रकाश हरियाणा में अच्छी नौकरी मिल गई थी। आज कम्पनी के काम से वह कानपुर आया था । समय मिला तो उसने पीसीओ से फोन किया । जिस दिन वह पीसीओ फोन करने गया था उसी दिन उसने पीसीओ का नंबर अपनी फोन बुक में नोट कर लिया था । गांव में पीसीओ न होने के कारण उसे पड़ोस के कस्बे तक आना ही पड़ता था । भाई साहब आप अपने रुपए ले जाओ । कब तक इनको संभाले रखूंगी। शिवकली ने राम प्रकाश से कहा । कहीं खर्च हो गए तो लेने के देने पड़ जाएंगे । कोई बात नहीं खर्च हो जाएंगे तो हो जाएंगे ।रामप्रकाश ने उत्तर दिया । अरे नहीं भाई कब तक उनको संभालेंगे । अच्छा समझो खर्च हो गए ।अब मैं पैसे वापस लेने नहीं आऊंगा ।आज मैं कानपुर में हूं ।कंपनी के काम से ।परसों आपके पीसीओ आ जाऊंगा । अच्छा रखते हैं । बाय कहकर रामप्रकाश ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया । न जाने क्यों रामप्रकाश की दरियादिली उसे बहुत पसंद आ गई ।इतने दिनों तक एक भी ऐसा फोन करने वाला ग्राहक नहीं मिला जिसने इतनी उदारता के साथ फोन का बिल चुकाया हो। जिस नंबर से रामप्रकाश की कॉल आई थी उस नंबर को शिवकली ने नोट कर लिया । दो-तीन दिन तक राम प्रकाश का फोन नहीं आया। न जाने क्यों वह लगातार उसका इंतजार ही करती रही। राम प्रकाश का घर कस्बे के पास ही था । उसने रामप्रकाश के संबंध में धीरे धीरे सब जानकारी इकट्ठा कर ली थी । उसे मालूम था कि वह उसकी माली हालत बहुत अच्छी है ।उसी की जाति का रामप्रकाश पिछले कई सालों से हरियाणा की एक फैक्ट्री में अच्छे ओहदे पर काम कर रहा है । बेचारे की पत्नी 3 महीने पहले मर गई । रामप्रकाश अक्सर महीने दो महीने में गांव चला आता था । पहले छुट्टियां भी हरियाणा में ही बिताता था । कोई छोटा  बच्चा भी होता तो उसका मन लग जाता । अकेले रामप्रकाश किस तरह रहता होगा । शिवकली बैठे-बैठे ही सोच रही थी घर पहुंचकर वह राम प्रकाश के अकेलेपन को सोच कर बहुत दुखी थी । यहां सब रुपया पैसा किस काम का यदि परिवार ना हो तो । यही सोचते-सोचते शिवकली को कब नींद आ गई पता ही नहीं चला । आज दिन रामप्रकाश दोपहर 2:00 बजे पीसीओ पहुंचा । चेहरे पर जवानी व धनवानों की आभा लिए लगभग 30 वर्ष के राम प्रकाश के चेहरे पर लाखों दीप एक साथ जल उठे । शिवकली ने चुपके से राम प्रकाश को देखा । फिर से नजरे वापस कर ली ।

' आपने तो कहा था कि रुपये खर्च हो जाएंगे । खर्च क्यों नहीं किया ?" रामप्रकाश ने हंसते हुए शिवकली लिए से पूछा । "हम गरीब लोग दूसरों के रुपए खर्च नहीं करते ।" इतना कहकर वह अनायास ही रजिस्टर पलटने लगी ।दिखावे के लिए हिसाब किताब में व्यस्त हो गई । राम प्रकाश उसे एकटक देखता रहा । फिर पैसे लेकर वह वहां से बाजार चला गया । हम गरीब लोग का स्वर उसके कानों में गूंज रहा था । उसे लगा शिवकली सचमुच गरीब है, अन्यथा कोई किसी के सामने अपनी गरीबी को क्यों बताएगा । बाजार से लौटते वक्त उसने एक नजर पीसीओ की ओर देखा। शिवकली भी उसे देख ही रही थी । हौले से मुस्कुराकर रामप्रकाश अपने घर चला गया । घर पहुंचकर राम प्रकाश को बड़ी देर तक नींद नहीं आई । शहरी जीवन में वैसे भी लोग बारह एक बजे से पहले नहीं सो पाते। देहात में शाम सात बजे ही बिस्तर लग जाता है । अंधेरे में क्या किया जाए । इधर उधर की यादों के साथ राम प्रकाश को शिवकली की बातों में वह खो गया ।                          


 रामप्रकाश गाहे बगाहे हरियाणा वाले ऑफिस का हालचाल लेने एक दो दिन बाद पीसीओ चला जाता था । न मालूम पीसीओ जाकर उसे बड़ी आत्मशांति मिलती थी। शिवकली को भी रामप्रकाश के आने का इंतजार बना रहता। इधर रोज दोपहर को जाने लगा । दस बीस रुपये उसके फोन में ही लग जाते । न मालूम कब मन की बात दिल से होते हुए जुबान तक आ गई। शिवकली ने भी रामप्रकाश के मन को पढ़ लिया । आज रामप्रकाश को नौकरी पर वापस जाना है । रामप्रकाश सुबह से ही तैयार हो रहा है।सच पूछो तो अबकी बार उसका मन हरियाणा जाने को नहीं है। लेकिन कब तक घर मे बैठकर काम चलेगा , यही सोचकर रामप्रकाश ने तैयारी कर ली । पहले दस बजे वह जल्दी से शिवकली से मिल आया है । दुबारा फिर उसका मन शिवकली में ही लगा है । न मालूम उसे क्या हो गया। समझ मे ही नही आता। शिवकली भी आज गुमशुम है । उससे कुछ कहते नही बन रहा है। पूरी रात अजीब किस्म के सपने आते रहे । कभी नाव में दोनों बैठे हैं । नाव डूब जाती है । शिवकली और रामप्रकाश दोनो नदी के प्रवाह में बह जाते हैं। उनके काल्पनिक मिलन का यही अंत होगा इसी भय से आज दोनो भयभीत हैं। शिवकली ने रामप्रकाश को देखा, न जाने क्यों उसकी आंखें डबडबा आईं । लगातार एक महीने से किसी न किसी बहाने दोनो की मुलाकाते पीसीओ पर हो जाती थीं। शिवकली आज हरियाणा जाना है । रामप्रकाश ने दुखी मन से बताया।" चले जाइये , ठीक तो है।" शिवकली ने उत्तर दिया।

"चला जाऊं????"

"और क्या।"

" सच,मेरा यंहा रुकना अच्छा नहीं लगा ।"

" उँहू ..............."

" तो ठीक है । मैं जा रहा हूँ ।" शिवकली यह सुनकर चुप रही । रामप्रकाश पीसीओ से तैयार होने घर चला गया । शिवकली के इस ब्यवहार को रामप्रकाश समझ नहीं सका । घर आकर जल्दी जल्दी तैयार हुआ। सामान सब पहले से ही बंध चुका था । स्टेशन का रास्ता पीसीओ से ही होकर जाता है । न चाहकर भी उसे शिवकली से मिलने का मन था । उसे पता था कि रामप्रकाश को उसकी बात बहुत बुरी लग गई। इसलिये वह उससे क्षमा मांगना चाह रही थी। उसकी नजरें रास्ते पर ही टिकी थी । देखा मुंह लटकाये रामप्रकाश चला आ रहा है । जल्दी से वह पीसीओ के बाहर निकल आई। रामप्रकाश उसे देखकर भी अनदेखी कर रहा था । धीरे धीरे पीसीओ के वह पास आ गया ।

" निकल लिए?? तैयारी हो गई?" शिवकली ने पूछा । "हूँ ......."रामप्रकाश ने दुखी मन से बताया।

" बुरा मान गये ।" शिवकली ने पूछा ।

"किस लिए????? रामप्रकाश ने पूछा ।

"हम आपके हैं ही कौन, जो बुरा लगेगा ।" शिवकली ने उलाहना भरे स्वर में उत्तर दिया । रामप्रकाश चुप ही रहा ।

"जाइये .......कोई बात नहीँ । हम गरीबों के नसीब ही ऐसे हैं ।" इतना कहकर शिवकली पीसीओ के अंदर चली गयी । रामप्रकाश अपना सामान पीसीओ के बाहर रखकर खुद अन्दर चला गया । शिवकली के सामने अपराधी की तरह सिर नीचा किये वह खड़ा रहा , फिर बोला

"बैठने को आज नही कहोगे ?" " बैठिये ............."कहकर शिवकली चुप हो गई। संयोग से उस समय पीसीओ में कोई ग्राहक नही था।  गलती किसकी थी, यह किसी को पता नही चला ।

" कब लौटोगे ?" ईश्वर जाने। कहकर रामप्रकाश ने शिवकली का हाथ अपने हाथ मे ले लिया ।

"जल्दी लौटना ।"

" क्यों ?"

" बस ऐसे ही । जाकर फोन करना।"

" ठीक है" कहकर रामप्रकाश ने अपना बैग उठा लिया । शिवकली दूर तक केबिन के भीतर से रामप्रकाश को देखती रह गई । रामप्रकाश के जाने के बाद शिवकली फफक कर रो पड़ी। छोटी के दूर जाने के बाद आज पहली बार किसी अपने को छोड़ने का दुख उसे पता चला। साढ़े ग्यारह बजे रामप्रकाश का फोन आया । वह ठीकठाक हरियाणा पहुंच गया । स्टेशन के पीसीओ से ही उसने फोन किया था । अब तो शिवकली रामप्रकाश के साथ फोन पर अप्रत्याशित रूप से मुखर हो गई । घण्टो घण्टो दोनो की बाते खत्म ही नही होती ।  भगवान ही जाने किस तरह से दोनों के दिन कट रहे थे।प्रत्यक्ष की तुलना मे फोन पर मन की बात करना ज्यादा आसान लगता है। लगभग एक महीने के भीतर फोन पर दोनों ने विवाह का फ़ैसला कर लिया। शिवकली के विवाह का निर्णय उसे स्वयम ही करना था। बस रामप्रकाश को थोड़ा अभी पहली पत्नी की मृत्यु के एक साल बाद शादी करनी थी । एक साल बीतते बीतते दोनो का विवाह हो गया । रमकिशुनी दोनो के विवाह से पूरी तरह संतुष्ट थी । रामप्रकाश शिवकली के साथ रमकिशुनी के घर पर ही रहने लगा । सब ठीक ठाक चल रहा था । दो साल के भीतर शिवकली को पुत्र प्राप्ति हो गई । उम्र के साथ प्रेम का भूत भी उतरने लगा। घर बैठ कर कमाई खत्म हो गई। दोनो की उम्र में भी लगभग दस वर्ष का अंतर भी था। रामप्रकाश ने अपने हिस्से की जमीन जायदाद बेंच कर शिवकली का नया घर बनवा दिया । दोनो के दिन सामान्य रूप से बीत रहे थे । रमकिशुनी भी बहुत बूढ़ी हो गई थी । दोनो की शादी से पहले ही महतो गुजर चुका था । बरसात के दिन थे । घर का बाहरी हिस्सा गिर चुका था । केवल मिट्टी की दीवार ही खड़ी थी । अभी अभी बारिश खत्म हुई थी। दीवारों के ऊपर प्लास्टिक की पन्नी डालकर के रमकिशुनी के रहने की व्यवस्था की गई थी। आंगन से दरवाजा तक आने के लिए इस कच्चे कमरे से होकर गुजर ना था । पानी बरस जाने के कारण इस कमरे में कीचड़ भर गया था ।शिवकली ने तीन-चार पक्की ईंट डाल रखी थी। कमरे के कोने में रमकिशुनी दुबकी हुई पड़ी थी । सुबह के लगभग 9:00 बज गए थे पूरे घर में सिर छुपाने की जगह नहीं थी । आज कुछ ज्यादा ही बारिश हुई थी । मारे भूख के रमकिशुनी की आँते छटपटा रही थी। तब तक शिवकली एक हाथ में सरकंडे की लकड़ी लेकर तथा दूसरे हाथ में एक कटोरा लेकर के दिखाई पड़ी। पूरी रात बरसात में पड़े रहने के कारण रमकिशुनी का शरीर ऐंठ गया था । शिवकली ने डंडी के सहारे से रमकिशुनी के बरतन को अपनी ओर खिसकाया। उसी समय उसका पैर लड़खड़ा गया और वह कीचड़ में सने हुए पक्की ईंटों से फिसल गई । मारे क्रोध के उसने कटोरे में दूर से ही खाने का सामान फेंक दिया और हाथ में लिए हुए सरकंडे की डंडी से रमकिशुनी के ऊपर अपना क्रोध निकालने लगी । रमकिशुनी भी जोर जोर से चिल्लाने लगी । "बिटिया क्या मार डालोगी ?हमारी क्या गलती है ?"टोला पड़ोस के लोग रमकिशुनी की आवाज सुनकर उसकी और ताकने लगे । बुढ़ापा बढ़ा दुखद होता है । इतना दुखदाई बुढ़ापा तो बड़ी मुश्किल से कटता है । मां के साथ शिवकली का यह ब्यवहार बड़ा निर्दयता पूर्ण लगा । प्रमोद अपनी पत्नी से परेशान होता तो शिवकली को पीटता । शिवकली प्रमोद से पिटती तो रमकिशुनी या रामप्रकाश को मार पड़ती । बड़े बुरे दिन बीत रहे थे। अब तो शराब के नशे में धुत प्रमोद भी पैसे के अभाव में अक्सर मां और पिता के ऊपर हाथ उठा देता । शिवकली और रामप्रसाद आखिर कहां से पैसा लाते।


पैतृक घर के सिवा अब उनके पास कुछ भी नहीं बचा था। जिसका धन चला जाता है उसका धर्म भी चला जाता है । धीरे-धीरे धीरे पैत्रक घर का एक हिस्सा भी बिक गया । कमाई घट जाने से दोनों में अक्सर विवाद हो जाता था । मन मुटाव धीरे धीरे आपसी कलह में बदल गया । घर के खर्च बढ़ते जा रहे थे । रामप्रकाश अब पूरी तरह शिवकली पर ही आश्रित था । उसने अपनी जमीन पहले ही बेंच दी थी । आज तो हद हो गई । पतिपत्नी का आपसी विवाद इतना बढ़ गया कि  शिवकली ने रामप्रकाश पर हाथ उठा दिया । क्या इन्ही दिनों के लिए उसने शिवकली का हाथ थामा था । मारे प्रायश्चित के रामप्रकाश ने खाना तक नही खाया । कोई खाना खाने के लिए उसे बुलाने नही आया । किस्मत के खेल बड़े निराले हैं । मारे भूख के उसे नींद नही आई । आखिर उसकी इस परिवार को जरुरत ही क्या है । उसका अतीत एकबार उसकी आँखों के सामने खड़ा हो गया । उससे बहुत बड़ी भूल हो गई थी । आज उसके समझ में आ रहा था की आखिर उसने अपना पैतृक मकान बेचकर क्यों शिवकली के घर को बनवाया । कम-से-कम आज अपने घर में सर्वाधिकार के साथ रह तो सकता था, लेकिन उसका सब कुछ उसके हाथ से निकल चुका था । 60 पार कर चुके रामप्रकाश की आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा । राम प्रकाश का बेटा प्रमोद व उसकी बहू भी खाना खाने के लिए रामप्रकाश से कहने नहीं आए । रामप्रकाश बहुत आहत था थक हारकर रामप्रकाश के पास इस परिवार के अतिरिक्त कोई दूसरा सहारा नहीं दिखाई पड़ा । बेचारगी ने धीरे-धीरे सब सामान्य कर दिया । उसका स्वाभिमान डगमगाता नजर आया। रामप्रकाश की स्थिति पालतू कुत्ते की तरह हो गई । शिवकली अभी भी 48 की ही थी। रमकिशुनी बेचारी घर के एक कोने में दुबकी पड़ी रहती । शिवकली प्रमोद और बहू के आगे किसी का ध्यान नही देती थी । बेटा बड़ा हो गया था उसे तो उसकी सुननी ही थी। शिवकली को धीरे-धीरे बहू से परेशानी होने लगी। किसी न किसी बात पर दोनों के बीच कहासुनी होती रहती थी । प्रमोद को लगता कि उसकी मां उसकी पत्नी के पीछे पड़ी रहती है । अब शिवकली पूरी तरह से बच्चों पर आश्रित थी ।एकाध बार तो सास बहू का झगड़ा इतना बढ़ गया कि प्रमोद को भी दोनों को शांत करने के लिए मां के ऊपर हाथ उठाना पड़ गया । राम प्रकाश दूर बैठा यह तमाशा देखता रहता । आखिर वह कर ही क्या सकता था। जवानी में किये गए कर्मो का फल बुढ़ापे में भोगना ही पड़ता है। अब तो शिवकली को बिना किसी कारण के भी डाट डपट अथवा पिटाई हो जाती है। सब समय का फेर है। यही मानकर शिवकली चुप हो जाती । अचानक रमकिशुनी एक दिन सब कुछ छोड़कर चल बसी। ठाकुर साहब की उम्र लगभग 75 वर्ष की हो चुकी थी। सभी लड़कियों की बड़े शान शौकत से शादी कर दी थी । बड़े वाले बेटे कुंवर साहब की भी उम्र 52 की हो गई थी । सब कुछ बहुत सामान्य तरीके से चल रहा था । तूफान के पहले की निष्तब्धता की भांति पूरा परिवार जमींदारी का आनंद ले रहा था । मजाल है कि कोई छोटा आदमी उनके सामने जूता पहन के नोकल जाए। मारे सम्मान के ठाकुर के दरवाजे से निकलते समय लोग अपने जूते निकालकर हाथ मे ले लेते थे। इतना ही नही चाहे कोई दरवाजे पर हो अथवा न हो सभी रियाया ड्योढ़ी बजाए बिना नहीं निकलते थे । हवा में खौफ था । कुंवर साहब के मात्र दो बेटियां ही थी । शरीर से कमजोर पत्नी अचानक सास ससुर पति व दोनो बेटियों को छोड़कर चल बसी । लोग तो यहाँ तक कहते हैं कि बहु रानी को टीबी का रोग था । असलियत,........,.कौन कहे । इसी के नाते कोई मुंह नही खोल रहा था। बेटियां दहाण मार कर रो रही थी। लोग मुंह लटकाये बैठे थे। पूरे घर में काम धाम के लिए कई नौकर थे। कुंवर साहब के पुत्र न होने के कारण उन्होंने अपने भांजे को घर पर रख लिया था।



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