उपन्यास माया
उपन्यास माया
माया......
सुखस्य मूलं माया
भाग 1
यूं तो सुख के मूल में धर्म ,दया, निष्कामता होते है लेकिन ये मेरी दुनिया है ,माया की दुनिया.....यहां सुख के मूल में सिर्फ माया है...माया जहां होगी ,वहां सुख होगा। माया से सब सुखी होंगे लेकिन खुद माया कितनी सुखी है, कितना सुकून है माया के जीवन में ,कहने को तो बहुत और महसूस करने को बिल्कुल नहीं।
माया की दुनिया किसी परीलोक से कम अद्भुत नहीं। लोग सुख की तलाश में माया के बंधन में बंधे जाते है और जिस सुख के पीछे वो भागते है ,वहां भागते भागते अपना चैन और सुकून भी गंवा जाते है। लेकिन फिर भी सबको माया चाहिए.....ऐसा क्या है माया में, माया के संसार में जिसकी चाहत में पुरुष जाति उद्वेलित है ।उसको पाने के लिए सबकुछ गवाने के लिए तत्पर।
माया जिसे लोगों ने सुना है और जिसने देखा भी है वो पहचान नहीं सकता। माया आपके पास से होकर गुज़र जाए लेकिन आप ये न जान पाए कि ये वो मोहिनी है जिसके लिए आप लालायित है। सब कहते है माया को आज तक किसी ने नहीं देखा फिर ऐसा क्या है कि लोग माया के दीवाने है। माया के हर एक पल की फीस होती है,वो पल जिनमें आपको लगता है आपने माया को पा लिया लेकिन हकीकत में माया आपको बांध लेती है और फिर आप कभी अलग नहीं हो पाते माया के बंधन जाल से। माया के द्वारा बुना गया जाल जिसमें शिकार खुद को शिकारी समझकर फंसता है। उसके पैर उलझते है उस महीन लेकिन अज़ीम जाल में जिसमें फंसना उसे तब तक अच्छा लगता है जब तक वो खुद को शिकारी मानता है लेकिन जिस दिन उसे एहसास होता है कि वो फंस गया है उस दिन वो बहार आना चाहता है ,तड़पता है ,तरसता है लेकिन माया के मोहपाश से निकलना असंभव ......
जिस माया की बात मैं आपसे कर रही हूं उसको जानने की उत्सुकता तो अवश्य हुई होगी....चलिए मेरे साथ माया की उस खूबसूरत अज़ीम दुनिया में जहां जाने का रास्ता है लेकिन लौटने का रास्ता नहीं। क्योंकि माया कहती है "अंतः अस्ति प्रारंभ"......
चलते है एक अंत से आरंभ की ओर........
मनु आज बड़ी देर हो गई बिटिया ......कहां रह गई थी...मनु क्या हुआ कुछ तो बोल..... आशा ताई ने पूछा।
"आई मुझे कुछ बात नही करनी, तू जा और हां खाना लेकर मत आना मेरे पास,मुझे कुछ नहीं खाना....कहकर मनु ने दरवाजा बंद कर लिया।
आशा ताई बड़ी परेशान थी , अचानक से मनु को क्या हुआ है उसने पहले तो कभी ऐसा व्यवहार नहीं किया हमेशा स्कूल से आती और मुझे गले लगाती। अपनी स्कूल की सारी बातें मुझे सुनाती। मैं उसे कहती भी थी कि "बेटा पहले हाथ मुंह धो कर खाना खा लो फिर बात करते हैं लेकिन नहीं उसे तो अपनी और अपनी सहेलियों की सारी बातें मुझे सुनानी होती थी। जब तक वह सारी बातें मुझे ना सुना लेती तब तक उसे चैन नहीं आता था। पसीने से लथपथ मनु मेरी गोद में बैठ कर अपने दोस्तों की अपनी सहेलियों की और अपने अध्यापकों की सारी बातें मुझे सुनाती उसके बाद कपड़े बदल कर खाना खाती थी लेकिन आज.... आज मेंरी गुड़िया को क्या हुआ ?मनु ने तो कभी इस तरह से व्यवहार नहीं किया। आज मनु कुछ ज्यादा ही परेशान लग रही थी। बढ़ती उम्र है शायद कोई ऐसी परेशानी जो मैं समझ नहीं पा रही हूं ,उसको परेशान कर रही हो लेकिन मैंने उसके साथ सिर्फ मां वाला रिश्ता नहीं निभाया मैं तो उसकी बहुत अच्छी दोस्त भी थी ऐसा क्या हुआ जो मनु इतना परेशान है......
मनु....मनु...प्यारी गुड़िया दरवाज़ा तो खोल, देख मां को टेंशन हो रही है..... मैंने कहा। लेकिन दरवाज़ा नहीं खुला। खिड़की से झांक कर देखा तो वो सो चुकी थीं। ना ही आज उसने यूनिफॉर्म बदली उसने न ही कुछ खाया। आई हूं उसकी, तो जी मुंह को आ रहा था। बच्चा भूखा हो ,परेशान हो तो मां को सुकून कैसे आ सकता है। उस समय मन किया मनु को अपने अंक में भर कर खूब सारा स्नेह करूं। और वो अपनी बाहें मेरे गले में डाल दे और कहे "आई यू आर दी बेस्ट"
लेकिन वो.....वो सो चुकी थी या फिर.....कही ऐसा तो नहीं मुझे ही ऐसा लग रहा हो की वो सो रही है.....कही अभी तक रो तो नहीं रही.....
मनु....मनु.....बाहर आ जा ना बिटिया। देख तो आई ने क्या बनाया है.....
घबराहट होने लगी थी .....मनु ने ऐसा कभी नहीं किया। बहुत ही प्यारी बच्ची थी मेरी....पड़ोस से किसी को बुलाना चाहिए क्या.....नहीं ...नहीं ....थोड़ी देर और देखती हूं। लोगों को तो बात बनाने का मौका चाहिए। थोड़ा सा इंतजार करती हूं.....वो परेशान क्यों है ये तो वो ही बता सकती है। हंसने मुस्कुराने वाली मेरी बच्ची को आज जाने किसकी नजर लग गई.......आशा ताई सोच ही रही थी कि तभी दरवाज़ा खुला.....
कौन थी मनु और आशा ताई....
मनु के साथ ऐसा क्या हुआ होगा.....
माया कौन है.....
माया मनु और आशा ताई का क्या लिंक है आपस में....
इन सभी सवालों के जवाब के लिए मिलते है अगले भाग में