Parul Agarwal Mittal

Inspirational

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Parul Agarwal Mittal

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परवरिश

परवरिश

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जैसे ही पता चला ऋतु पिछले एक हफ्ते से बीमार है तो उससे मिलने पहुंची।मेरी बहुत अच्छी दोस्त है।घर पहुंची तो सब अस्त व्यस्त सा लगा।ऋतु बहुत कमज़ोर लग रही थी।एक दम साफ़ सुथरा रहने वाला ऋतु का घर आज अजीब सी स्थिति में था।ऋतु ने चाय को कहा तो मैने मना कर दिया।तभी बड़ी बेटी आई....

"मम्मी आज फिर खिचड़ी बना दी आपने ।आंटी देखो ना रोज़ खिचड़ी लौकी बस यही सब बन रहा है....." वंशिका ने कहा।

"बेटा मां बीमार है ना".... मैने कहा।

"मानती हूं आंटी लेकिन ये खाना कब तक खाएं।हम थोड़ी ना बीमार हैं,ये सब खिला कर ये हमे भी बीमार कर देंगी।मैं नहीं खा सकती ।मम्मी मेरे लिए मत बनाना खाना।मैं बाहर से मंगा लूंगी।" कहकर पैर पटकते हुए वंशिका चली गई।


मैं भी कुछ देर बैठकर आ गई लेकिन सोचने पर मजबूर हो गई कि ये वही वंशिका है जिसके हॉस्टल से आने पर ऋतु पूरा दिन किचिन में लगकर नई नई रेसिपी बनाती थी। उन्नीस साल की है वंशिका ,चाहे तो मां की पूरी मदद कर सकती है लेकिन काम करने पर तो आजकल के बच्चे खुद को नौकर समझने लगते है ।तो क्या मां से प्रेम सिर्फ खाने के लिए होता है....

एक प्रश्न जो जहन में आया आपसे साझा कर रही हूं। बच्चों से अत्यधिक स्नेह करना ममता है या थोड़ा कठोर बनकर उनको दुनियादारी सिखाना ममता है.....



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