STORYMIRROR

Abhay singh Solanki Asi

Tragedy

3  

Abhay singh Solanki Asi

Tragedy

उपेक्षित भावनाएं

उपेक्षित भावनाएं

5 mins
413

एन.सी.आर देहली के फोर्टिस हॉस्पिटल के आइ.सी.यू से बाहर निकलती हुई नर्स ने ख़ुशी जाहिर करते हुए डॉ मणि कार्तिक से बोला "डॉ..डॉ.. पेशेंट को होश आ गया है।"

डॉ ने एक गहरी सांस लेते हुए ''थैंक गॉड'' बोला और तेज क़दमों से आय.सी.यु. के अंदर चले गए।

थोड़ी देर बाद लौटते हुए बाहर इन्तजार करते व्यक्ति से बोले " ''जाइये अब आप पेशेंट से मिल सकते है लेकिन हाँ ध्यान रखना उसे किसी भी प्रकार से डिस्टर्ब ना करना हालत अभी नियत्रंण में है लेकिन ख़तरा टला नहीं है।" 

वह व्यक्ति भरी आवाज से ओके डॉ कहते हुये अंदर गया और बेटी को ऐसी हालत में देखकर कुढ़ गया ,लाड से सिर पर हाथ फेरते हुए बोला -- चिंता मत कर बेटा अब मैं आ गया हूँ। पर तू भी न कभी मेरी सुनती ही नहीं ,मेरी तो कुछ चलने ही नहीं देती

''देख बेटा तूने है न कभी मेरी बात म मा, मा .............. अभी बात पूरी भी नहीं हुई थी की बेटी ने पापा के मुँह पर उँगली रखते हुए बोला 

''पापा प्लीज आज आप सिर्फ मेरी सुनोगे बोलोगे कुछ नहीं, हमेशा तो आप ही अपनी खरी खोटी सुनाते आये हो आज तो मेरी सुन लो l बेटी नाराजगी जताते हुए स्वर में बोली --"पापा आप हमेशा अपनी ही भावनाओं की पीपड़ी बजाते रहे कभी मेरी भावनाओं का भी सोचा होता , हमेशा एक ही राग अलापते रहे हो -----"बेटा तूने मेरी भावनाओं की उपेक्षा की " "बेटा तूने मेरी भावनाओं की उपेक्षा की " ---एक बात बोलूँ पापा भावनाएं तो मेरी हमेशा से उपेक्षित होती आई आपने हालात के दूसरे पहलू की और न देखा और नहीं सोचा" 

आपने तो बस मेरे ज़रा से किये की इतनी बड़ी सजा दे दी पापा ---की जिस दिन से उँगली छुड़ाकर कर गये पलट कर ही नहीं आये -- में वही खड़ी खड़ी रास्ता देखती रही की पापा अभी आयेंगे पापा तभी आयेंगे लेकिन शाम हो गई आप नहीं आये ---- 

में रोज उसी स्थान पर आपकी राह जोहती रही आप नहीं आये --- 

आपको पता है पापा --- समुद्र के किनारे भी आपको रोज देखने जाती थी जहां आप रोज मुझे घुमाने ले जाते थे| एक दिन नहीं रोज रोज वही आपका इंतजार करती रही यह सोचकर कि पापा उस स्थान पर तो जरूर आएंगे जहां उनकी लाडली की यादें जुड़ी है। पता है ना पापा - समुन्द्र की रेत पर ही मैं चलना सीखी थी, और आप मेरे क़दमों के नन्हे नन्हे निशाँ देखकर बहुत खुश होते थे और उन्हें अपनी हथेलियां अड़ाकर लहरों से बचाते थे कितना लाड़ था पापा आपको की लहरों को मेरे क़दमों के निशान नहीं धोने देते थे इतना लाड याद करती तो सोचती थी कि पापा यहाँ तो जरूर आएंगे -पर आप नहीं आये ---- मैं उसी जगह रोज राह देखती की मेरे पापा आएंगे मेरी उँगली पकड़ कर डांटते हुए घर ले जायेंगे कहेंगे "चल पगली छोटी सी भूल का क्या" --- लेकिन पापा आप नहीं आये और आपकी राह जोहना मेरी दिन चर्या बन गई l और बस पता ही नहीं चला की मैं जिस पापा की उँगली पकड़कर घर जाना चाहती थी जाने कोई कब आया और मेरा हाथ ही थाम लिया।

''क्या करती पापा भला लड़का था बस उसी के साथ हो ली''--- और फिर रहती भी किसके सहारे पापा ! नानी भी तो नहीं रही थी वो भी मम्मी के पास चली गयी थी वो भी स्वार्थी निकली आपकी तरह। वह अपनी बेटी की जुदाई का गम बर्दाश्त नहीं कर पाई मेरे बारे में जरा भी नहीं सोचा की मैं अकेली कैसे रह पाऊँगी मेरा क्या होगा। और आपको इस बात की खबर भी नहीं लगी पापा की मेरा अब इस दुनिया में आपके अलावा कोई नहीं। आप अपने परिवार में इतने बीजी हो गये की, ना बेटी की सुध रखी ना बेटी के परिवार की और ना ही बेटी की भावनाओं की और कहते रहे की मैंने आपकी भावनाओं की उपेक्षा की।

एक बात बोलूँ पापा मैं इस छोटी सी उम्र में सारी दुनिया घूम ली उसके साथ जो मेरा हाथ थाम कर ले गया था। आपको पता है पापा जब आप मुझसे अमदाबाद मिलने आया करते थे ना तो लोग मुझे आपका और मेरा सम्बन्ध पूछते थे, की ये जो आदमी तुझसे मिलने आता है तेरे सर पर हाथ फेरकर आँखों में आंसू लेकर चला जाता है ये है कौन ? - मैं उन्हें क्या बताती पापा , आपकी सामाजिक प्रतिष्ठा के आगे में विवश हो जाती थी।

 ये भी मेरी कैसी विवशता थी पापा की मैं आपको दुनिया के सामने पापा नहीं बोल सकती थी-- पापा बोलने के लिए भी मुझे एकांत का सहारा लेना पड़ता था।

एक बात बोलूं पापा -कुछ भी हुआ हो कैसा भी रहा हो मेरा जीवन ,पर मैं मेरी इन अंतिम घड़ियों में भी ईश्वर से विनती करुँगी की हर बार हर जन्म में आप ही मेरे पापा रहो l 

बेटा मुझे माफ़ कर दे "पापा फफक फफक कर रोते हुए बोल रहे थे ,,,, सच है बेटा भावनाएं तो तेरी उपेक्षित होती रही और मैं तुझे ही भली बुरी बुरी कहता रहा। बस बेटा अब तू उपेक्षित नहीं होगी, तेरी भावनाएं उपेक्षित नहीं होगी ,एक बार तू ठीक हो जा जल्दी से फिर तुझे अपने साथ ही ले चलूँगा।

 नहीं पापा - बेटी सांस भरते हुए बोली ,: ''अब तो बस मेरे जाने का वक्त आ गया है '। एक बात बोलूँ पापा-- जिस तरह आप मेरे कदमों के निशानों को लहरों से धुलने से बचाते थे ,उसी तरह यदि आप बचाना चाहते तो मैं बच सकती थी पापा केन्सर में इतनी ताकत नहीं की वो मुझे मार पाए , पर आपकी उपेक्षाओं ने मुझसे जीने की इच्छा ही छीन ली पापा-- उपेक्षित भावनाओं के साथ जीने से तो मरना अच्छा लगता है ,बोलते बोलते अचानक एक हिचकी आई आवाज भर्राई और आगे बेटी कुछ भी नहीं बोल पाई।

नहीं बेटा ऐसा मत बोल मैं मेरे साथ ही रखूंगा मेरी लाड्डो को। समाज कुछ भी कहे बेटा मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता पापा सिसकते हुए बोले जा रहे थे। लेकिन बहुत देर हो चुकी थी जिसके लिए सिसक रहे थे सिसकन को सुनने वाली की धड़कने बंद हो चुकी थी

......असि ..........



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy