उम्मीद।
उम्मीद।
“इस उम्र मे आपको फैशन शो करने की सूझ रही है। बच्चों को पता चला तो वे क्या सोचेंगे।” सुरेखा ने परेशान होते हुए कहा।
अनिल हँसने लगे। उन्होंने हँसी रोककर कहा- “चलो शुक्र है, तुमने यह तो नहीं कहा कि दुनिया क्या कहेगी। अब मुझे सिर्फ बच्चों के बारे में सोचना होगा।”
“आप पर भी एक ना एक भूत सवार रहता है। कभी खाना पकाने की जिद करने लगते है तो कभी नाचने की जिद, और अब यह फैशन शो। पता नहीं इस उम्र में क्या पागलपन सवार है आप पर।” सुरेखा बड़बड़ाते हुए बोली।
“अरे भाई अभी तो हमारी उम्र पैसठ साल ही है और जीवन अभी शुरू हुआ है। जाकर तैयार हो जाओ।” अनिल ने हँसते हुए कहा।
सुरेखा बेमन से तैयार हो कर नीचे आई और अनिल के साथ
कम्युनिटी हॉल पहुँची। वहाँ बुजुर्गो के लिए आयोजित फैशन शो का शानदार तरीके से प्रबंध किया गया था। सुरेखा वहाँ पर अपने बच्चों को देखकर हैरान रह गई।
अनिल ने बताया कि फैशन शो में भाग लेने का सुझाव उन्हें उनके बच्चों ने ही दिया था। तब सुरेखा को तब एहसास हुआ कि वे अपनी जिंदगी तो भूल ही गए थे जिम्मेदारी के बीच और अब जब मौका मिला है तो समाज की परवाह करना बेमानी हो जाता हैं और फिर जब उनके बच्चे उनको आगे बढ़ने का सहारा दे रहे है तो उन्हें भी समय के साथ आगे बढ़ना चाहिए।
इसी सोच के साथ जब सुरेखा अनिल के साथ कदम बढ़ा रही थी तो उसके चेहरे पर समाज की परवाह नहीं एक नई जिंदगी की उम्मीद थी।