उधार,,,
उधार,,,
आज चलते-चलते कदम अनायास ही घाट की तरफ चल पड़े, सोचा थोड़ा मन बहल जायेगा। पिछले कई दिनों से मन बहुत परेशान था। बच्चा नहीं होने के कारण घरवालो की बातें सुननी पड़ती थी !!!
जब घाट पर पहुँची तो देखा कि सुनसान घाट पर एक औरत अपने चार-पाँच दिन की बेटी को लेकर बैठी थी,वो बड़ी ही कातर निगाहों से इधर-उधर देख रही थी।
मैंने कौतूहल वश पूछा "बहन क्या हुआ यहाँ ऐसे अकेले क्यूँ बैठी हो",मुझे अंदर ही अंदर डर भी लग रहा था कि पता नहीं कौन है क्यूँ है? उसने मुझे देखते ही कहा "बहन मेरी बेटी को थोड़ा पकड़ो मैं अभी आई " मेरे मना करने पर भी वो अपनी बेटी को मेरी गोद में डाल गयी।ये सबकुछ इतनी जल्दी हो गया कि मैं कुछ बोल पाती उसके पहले ही वो भाग गयी।
मैं वहाँ घंटों बैठी रही पर वो नहीं आई, उस फूल सी बच्ची को देखकर मेरी दबी हुई ममता जाग गयी।इसलिए मैं भी पुलिस के पास न जाकर घर चली गयी।पहले तो घर में कई सवाल पूछे गये पर जैसे-तैसे मैंने सबको मना लिया।पर, मैंने घाट जाना नहीं छोड़ा इसी आस में कि शायद एक दिन वो औरत मुझे जरूर मिलेगी।
आज परी तीन साल की हो गयी और उसके जन्मदिन पर मैं उसे घाट लाई तो उसने अचानक पूछा "मम्मा आप मुझे यहाँ क्यूँ लाये हो?"वो बार-बार पूछे जा रही थी।उसके मासूम सवालों का मेरे पास कोई जवाब नहीं था।तो मैंने परी से कहा कि बेटा मुझे ना किसी का उधार चुकाना है।
आज से तीन साल पहले मुझे एक फरिश्ते ने उधार देकर मेरी सूनी गोद भरी और मेरी ममता को पूरा किया था।मुझे उनका उधार चुकाना है।परी को कुछ भी समझ नहीं आया पर,वो फिर भी मेरी ओर एकटक देखी जा रही थी।