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Megha Garg

Tragedy

3.5  

Megha Garg

Tragedy

त्याग, समर्पण.... अंततः आँसू

त्याग, समर्पण.... अंततः आँसू

3 mins
539


जीवन के 40 साल बीता दिए शीला ने अपने पति, परिवार और बच्चों के लिए.....और अंत मे उसे नसीब हुए आँसू। 

सोच में पड़ गए होंगे आप सब भी की आखिर क्या हुआ त्याग और समर्पण की मूरत शीला के साथ....आखिर क्यों उसे अंततः आँसू नसीब हुए....तो चलते हैं आपको लेकर शीला की जीवन यात्रा पर....

             यही कुछ 20 वर्ष की थी शीला जब उसके पिता ने उसका रिश्ता अमर के साथ तय किया, पेशे से व्यापारी था उसका पति। भगवान की दया से बहुत ही धनवान और व्यवहार कुशल था लड़के का परिवार। ऐसे घर से संबंध जोड़कर शीला के पिता भी निश्चिन्त थे। 

   फिर धीरे से शीला का विवाह हुआ और उस घर मे बहु बनकर आ गयी शीला। शुरुआती दिन तो बहुत अच्छे बीते, परंतु नए व्यापार के सिलसिले में शीला को अपने पति के साथ शहर जाना पड़ा और फिर वो दोनों वहीं बस गए। 

    धीरे धीरे पैसा आने के साथ उसके पति को बुरी आदतों ने घेर लिया। इसी बीच शीला ने एक पुत्र को जन्म दिया, बच्चे की देखभाल में व्यस्त रहने की वजह से शीला पति को रोक न सकी, और नशे की हालत में उसकी सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गयी। शीला पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। व्यापार की समझ न होने के कारण उसने वापस अपने ससुराल जाना ही ठीक समझा। 

  ससुराल में उसके साथ नौकरों जैसा बर्ताव किया जाने लगा। हद तो तब हुई जब उसके ससुराल वाले बच्चे को भी पढ़ाना नहीं चाहते थे और उसे भी घर के कामो में लगाना चाहते थे। धीरे धीरे जब शीला को ये बात समझ आने लगी तो उसने अपने बच्चे को लेकर अलग रहने में भलाई समझी। 

  धीरे से शीला ने कुछ बच्चों को घर पर ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया और इस तरह उसने अपने बच्चे और खुद का पेट पालने की व्यवस्था की। धीरे धीरे उसका बच्चा बड़ा होता गया और पढ़ने में बहुत तेज़ निकला। पढ़ लिख कर वो डॉक्टर बन गया। शीला ने सोचा कि मैंने सारा जीवन अपने बच्चे की परवरिश में निकाल दिया, अब मुझे उसका सही परिणाम मिला है, अब मुझे चिंता की कोई आवश्यकता नहीं है। उसके बेटे ने भी उसे ये कहते हुए निश्चिन्त किया कि माँ बस अब आप घर पर आराम करोगी, संघर्ष का समय समाप्त हुआ और उसकी ट्यूशन क्लासेज भी बंद करवा दी।

   धीरे से उसके पुत्र ने एक साथ पढ़ने वाली डॉक्टर लड़की से विवाह भी कर लिया। शीला बहुत खुश थी कि उसके बेटे बहु दोनों योग्य हैं, पर नियति को कौन बदल सकता है, धीरे धीरे बेटे बहु को शीला घर में बोझ लगने लगी, उन्होंने महसूस किया कि उसकी देखभाल में व्यस्त रहने के कारण वो अपने काम पर ध्यान नहीं दे पाते हैं, और उन दोनों ने मिलकर अपनी माँ यानी कि शीला को वृद्धाश्रम भेजने का निर्णय ले लिया। जब ये बात उन्होंने शीला को बताई तो मानो उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई और उसने रोते रोते भगवान से कहा... "हे भगवान! इतने त्याग और समर्पण के बाद भी तूने जीवन भर मेरे भाग्य में क्या लिखा....आँसू और सिर्फ आँसू" और उसने वहीं प्राण त्याग दिए।

    मैं आप सब से यही पूछना चाहती हूँ कि एक स्त्री के जीवन मे क्या त्याग, समर्पण और आँसू ही लिखे हैं भगवान ने या वो भी ख़ुशियों की हक़दार हो सकती है?

इस बात पर मुझे मैथिली शरण गुप्त जी की एक कविता याद आ रही है, जो शायद नारी के जीवन का सार है...."अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आँचल में है दूध और आँखों में पानी"


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