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Shraddha Gaur

Romance

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Shraddha Gaur

Romance

तुम्हारी किशमिश

तुम्हारी किशमिश

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'अब मुझे प्यार महसूस नहीं होता' 

इन्हीं शब्दों के साथ अलग हुये थे और आज उसके पीछे स्कूटी पर बैठकर वो सारी यादें इक बार फिर से ताजा हो गयी थी। गलती नहीं थी उसकी पर फिर भी उसे सब कुछ झेलना पड़ा क्योंकि उसका प्यार ही से उससे अब प्यार नहीं कर रहा था।

वैसे तो आज भी उसकी स्कूटी पर उसके पीछे बैठ कर उसी तरह से उसे कमर से पकड़ने को जी के रहा था जैसा पहले किया करते थे हम दोनों ओर अब तो बनारस की सड़कों के गड्डों ने मानो तय कर लिया था कि आज मुझे उसके प्यार का अहसास करा ही देगा एक और बार।

वो जो स्कूटी के शीशे से पीछे मुझे देखता है मेरी नज़रों से छुपकर ; उससे ज्यादा उस पर ध्यान रहता है आज भी मेरा।

एक फिल्म से शुरुआत हुई थी हमारी कहानी की जो कुछ ज्यादा अच्छी ना रही थी और फिल्म थीं भी बहुत रोचक "मिशन इंपॉसिबल"।

यूं तो पहले से ही हमको बहुत डर लगता था लडको से मिलने में और यह जनाब आए भी जब तो किसी नक्सलवादी से कम ना नजर रहे थे।

खैर मनाया गया हमें जाने कितने ही वादो से और कसमें भी हजार खाई गई थी ; और हमारा सफ़र शुरू हो गया।

इस सफ़र मे कभी सारनाथ की सैर की तो कभी बनारस की गलियों में स्वादिष्ट पकवानों की खोज में सुबह से शाम के दी और फिर जब जाने की बारी आती तो उसका चेहरा मायूस हो जाता और फिर मुलाक़ात की बात पर राजी हो जाते थे दोनों।

सब कुछ तो अच्छा था फिर एक दिन बात बन्द कर दी, ना ही फोन का जवाब दिया और  ना ही मिलने को राजी हुई।

कुछ हुआ रहा ; कुछ बहुत बुरा लगा था और बस वो दिन गुजरे अब एक बरस हो गए ; पर अब भी जब मिलते है तो उसकी आंखों में उम्मीद रहती है कि एक बार सिर्फ एक बार उसे जोर से गले लगा लूँ और कह दूं कि मुझे भी प्यार है उससे उतना ही जितना कि उसे।

आज उसने मुझे मेरे एग्जाम सेंटर पर छोड़ने से पहले जिद की बहुत कि बैग लेकर चलो पर मैंने मना कर दिया कि चैकिंग होगी कहा रखेंगे; फ़िर भी जिद किये जा रहा था।

आखिर में मुझे मेरे एग्जाम सेंटर पर पहुंचाने के बाद उसने अपनी जेब से एक कागज़ का कई तहों वाला खत मुझे दिया और कहा ; "तुमको चाहिए था ना हमेशा से एक लव लैटर तो लो तुम्हारा प्रेम पत्र; वैसे थोड़ी गन्दी लिखावट है तो थोड़ा मैनेज कर लेना।"

और उसकी नजरें कहीं छुप जाने को कर रही थी जिससे उसकी आंखो के वो आंसू मै न देख पाऊँ।

कई दिन गुजर गए पर आज भी जब कोई जरूरत होती या ख़्याल आता किसी अपने का तो हमेशा से उसका नाम उस लिस्ट में पहला आता।

आज भी उसको उतने ही हक से मिलते और बातें करते हैं क्योंंकि शायद समय ही किसी की सच्ची कीमत बता सकता हैI

आज भी जब मिले तो मुस्कुरा कर बिल्कुल वैसे ही जैसे पहली बार मिलने पर मुस्कुरा रहे थे और हम तो पहले की तरह डरने झिझकने वाली लड़की रहे कहां; बस अब दिल में हज़ारों चीजें रखकर भी हस लिया करते हैं उसके साथ। घूमना पसंद था साथ उसके तो जब भी मौका मिलता हम लोग निकल पड़ते थे। कभी भोलेनाथ के मन्दिर तो कभी पहाड़ों और झरनों सी सुंदर जगह पर जहां जाने में हम दोनों धूप में काले भी पड़ गए ; सहेलियां तो परेशान हो गई थी कि इतना कैसे भरोसा करती हो उस अनजान इंसान पर और मेरा बस एक ही जवाब होता था, "अगर धोखा देना होता है तो इंसान पहचान नहीं देखता। "

हाल में पता चला था कि वापस अपने शहर लौट रहे हो, खुश थे हम और रोमांचित भी तुमसे दुबारा से मिलने को क्योंंकि फोन पर कितनी भी बाते हो जाए पर वो सामने से मिलने की खुशी ही कुछ अलग होती है।

रात भर से उसके का इंतजार किया और जाने जब आंख लग गई और जब नींद खुली तो देखा कि वो पहुंच गया था घर।

कुछ एक दो घंटे ही बीते थे कि घर से एक कॉल अाई और यू कि सांस लेना मुश्किल हो गया ; समझ नहीं आया कि से क्या करे।

छोटी बहन का फोन था घर से और फोन पर उसकी आवाज भरी भरी से थी । मैंने पूछा तो उसने आंसू थाम कर बोला, "दीदी पापा का ऐक्सिडेंट हो गया है।"

यह शब्द बहुत नए थे मेरे लिए, २३ सालो में कभी खरोच तक नहीं लगी थी पापा को और आज ऐसा कुछ सुनने को मिला।

उससे मिलने को तय किया था उसी दिन पर जाने का तय किया घर। सोचा जाने से पहले उसे बता दूं, अगले ही पल वो मेरे साथ था।

मुझे समझा रहा था, हिम्मत दिला रहा था और ट्रेन में बैठते समय तब तक व्ही था जब तक ट्रेन चल नहीं गई।

पूरे समय मेरा हाथ पकड़े हुए मुझसे यही बोलता रहा, "सबका ध्यान तुमको ही रखना है,और तुम यूं हर मानोगी तो कैसे चलेगा।" 

आज भी उसकी कही हर एक बात याद है, वो हर बार उसका एक फरिश्ते कि तरह मेरी जिंदगी में आना और वो हर इक बात जो मैंने कही उससे।

यूं तो बहुत से नाम थे पर जब जिद की उससे की किसी नाम से पुकारो तो उसने "किशमिश" चुना।

आज भी उसकी अहमियत है जिंदगी में पर उसके भले के लिए उससे दूर रहना चाहते। आज भी वो पहले प्रेम पत्र की तस्वीरें जो भेजी थी उसने, सहेज कर रखी है और उसका दिया नाम, "किशमिश" सिर्फ उसका ही हक है इससे मुझे पुकारने का।


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