तुम्हारे हिस्से की ममता
तुम्हारे हिस्से की ममता
नदी की शांत लहरें मेरे मन के सागर में उठने वाले भंवर के शोर को सुन पा रही होगी क्या ? राधा ! क्या तुम सुन पा रही हो मेरे अंतर्मन के द्वंद को, मेरे ह्रदय की व्यथा को ? तुम कहती थी कभी दूर नहीं जाओगी, तो इस सरित तीर के कण कण में मानता हूं तुम हो, इस घास में वृक्ष में, यहां की प्राण वायु में तुम हो.. हम यहीं मिलते थे भागदौड़ से भरी जिंदगी से कुछ पल चुरा कर।
"पापा ! हम यहां आते हैं पर आप किससे बातें करते हैं ?"
बालमन उस वेदना को समझने की उम्र से पहले ही ममत्व को खो चुका है, क्या बताऊँ इसे,.. माँ तुम्हारी यहां एक एक वृक्ष लगाती थी "धरती हरियाली से भर दूंगी श्याम! फिर मेरी तरह कोई दमे का शिकार ना होगा।मेरी अस्थियां तो यहीं बिखेर देना।".. तुम्हें दुनिया में लाते ही खुद चली गई, क्या समझाऊं तुम्हें ! कैसे बताऊँ की मैं पिता का बल दे सकूँगा.. पर माँ की ममता कहाँ से लाऊँ अंश !
" श्याम!..तुम शायद सुन ना पाओ पर अनुभूति होगी, मैं अब भी साथ हूँ तुम्हारे, सृष्टि पर्यंत रहूंगी, देखो मैं यहीं हूं उसी वृक्ष में जिसे हमने हाथों से लगाया था। मेरे दुःख की कल्पना तुम कर पाओगे, जिस नन्ही कली को बीज से पौधा बनते नौ महीने इंतज़ार किया उसे वृक्ष बनने तक सींच ना पाऊँगी! तुम अधूरे नहीं हो श्याम तुम पूर्ण हो, तुम्हारे हृदय में मेरा प्रेम है वो ममता बन कर हमारे अंश को भरपूर प्रेम देगा।"
" पापा! चलो चलते हैं.. पेड़ से पानी टपक रहा है।"
" हाँ बेटा! चलो चलते है, मम्मा ने कहा है की अंश अभी मेले में जाएगा और बहुत मस्ती करेगा। "
" पापा, मम्मा को मैंने देखा नहीं, आप उदास मत हुआ कीजिए आप ही मेरी मम्मा हो "
हाँ शायद यही सही था अपने राधा के हिस्से की जिम्मेदारी निभा रहा हूं तो राधा के हिस्से का प्रेम भी तो पा रहा हूं। निराशा के बादल छंट चुके थे और आशा की किरणें नई सुबह लाई है। बीते समय की उदासी की महक आने वाले समय की खुश्बू के आगे फीकी पड़ चुकी है।