तुम जो आए जिंदगी में
तुम जो आए जिंदगी में


"मान जाओ ज़रा रुक भी जाओ!" अर्जुन ने हिम्मत जुटा कर अंजना को आवाज़ दी।
कैफे में टेबल से अपना बैग उठा कर अंजना गेट खोल कर निकल ही रही थी कि अर्जुन की तेज आवाज़ से ठिठक गई। उसने पीछे मुड़ कर देखा तो अर्जुन के तेज आवाज़ से सारा कैफे अंजना की ओर ही देख रहा है पर सकपकाने के बजाय अंजना के आँखों से आँसू निकल आए। काश तुम उस दिन रोक लेते। अंजना के आँखों में सब कुछ तैर गया , पांच साल ही तो हुए और ऐसा लगता है बरसों बीत गए.. हाँ अर्जुन के बिना एक एक दिन बरसों जैसे थे। जब प्यार ही गुस्से और फिर नफरत में बदल जाए तो यही होता है।
अर्जुन एक छोटे से शहर में पैदा हुआ था। तीन भाई बहनों में सबसे छोटा और महत्वकांक्षी परिवार की एक और उम्मीद। अर्जुन ने शुरू से देखा कि कम पैसे होते हुए और सादगी में जीते हुए सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई ही उसके घर का माहौल था। बड़े भईया सिविल इंजीनियरिंग करके अच्छे पद पर कार्यरत हो गए और दीदी तो सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग करके अच्छी कंपनी में सेटल हो गई थी। अर्जुन को इंजीनियरिंग पसंद नहीं थी फिर भी माँ पापा के दबाव में करनी पड़ी और शहर छोड़ ना पड़ा। अर्जुन को बहुत गुस्सा आया था तब कि अपनी सहूलियत के लिए कैसे अपनों को जुदा कर देते हैं लोग। वो अपना शहर और अपने दोस्त कभी नहीं छोड़ना चाहता था पर जाना पड़ा। गुस्से में उसने खुद को पढ़ाई में इतना डुबाया की घर जाने की फुर्सत ना मिले। एक के बाद एक डिग्रियाँ लेते गया और जाने खुश होना ही भूल गया था।
तभी उसकी जिन्दगी में अंजना आई। अंजना ख़ुशियों से भरी हुई बगल वाले होस्टल में रहती थी और होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई कर रही थी। अर्जुन को अंजना से मिलकर अपना सा लगा क्यूँकी वो भी लगभग कुछ ऐसा ही करना चाहता था, दोस्तों के साथ मिलकर ढाबा खोलने का प्लान था उसका जो अब पीछे छूट चुका था। धीरे धीरे अर्जुन और अंजना की दोस्ती प्यार में बदल गई। अर्जुन को एक अच्छी कंपनी में मोटी सैलरी पर बहुत बड़े पद पर नौकरी मिल गई और उसके माता पिता भी बहुत खुश थे। अंजना की पढ़ाई खत्म हुई और वो भी अपनी ट्रेनिंग पूरी करने चली गई। एक दिन अर्जुन उसके पास पहुंच गया और शादी का प्रस्ताव रखा। अंजना तो प्यार करती ही थी हाँ कर दी। घरवालों की उपस्थिति में दोनों की शादी भी हो गई। अंजना ने कहा कि वो अर्जुन के शहर में काम ढूँढ लेगी पर अर्जुन ने मना कर दिया और कहा कि वो अपना प्लेसमेंट ले ले और कुछ दिनों बाद दोनों एक शहर में रहेंगे।
शुरू शुरू में सब ठीक था पर धीरे धीरे शहर की दूरियाँ दिलों में आने लगी। एक दिन अर्जुन ने अंजना से कहा कि वो अर्जुन के शहर में आकर नौकरी ले ले। अंजना ने बोला कि वो इस तरह से कैसे छोड़ दे बीच में?
कुछ दिनों तक उनके बीच कई लड़ाइयाँ हुई। अंजना ने कहा कि अर्जुन ही नौकरी ले ले अंजना के शहर तब उसने यही कहा कि हर बार उसे ही दूसरों के सपनों के लिए अपना शहर और सपने छोड़ने पड़ता है। अंजना को लगा शायद अर्जुन टूट जाएगा इसलिए उसने अर्जुन की बात मान कर अपने बनते हुए करियर को छोड़ अर्जुन के पास चली गई। धीरे धीरे अंजना घर गृहस्थी में रम गई उसने दूसरी नौकरी ली ही नहीं। पर अर्जुन फिर से गुस्से में और चिड़चिड़ा रहने लगा जाने कौन सी भावना उसे अंदर से खा रही थी। बात बात पर गुस्सा होना और कहना की मुझपर एहसान मत करो अपना भविष्य कुर्बान करके, या तुम जान बूझ कर घर बैठी हो ताकि मुझे बुरा महसूस करा सको। अंजना का सब्र टूट गया। उसने फैसला ले लिया था।
एक दिन उसने अर्जुन से कहा कि
" मैं जा रही हूं अर्जुन, शायद तुम्हें मेरे प्यार की कीमत नहीं, मेरा त्याग तुम्हें एहसान लगता है.. मैं बस चाहती थी कि हम एक साथ बूढ़े हो, परिवार बनाए पर तुम शायद अपने बनाए दुख के किले से बाहर नहीं आना चाहते हो। मैं और नहीं बर्दाश्त कर सकती हूं। तुम अपनी ख़ुशियों को ताला मार कर चाभी दूसरों से पूछते हो.. मैं जा रही हूं और प्लीज हमारा रिश्ता किसी कागज़ का मोहताज नहीं था तो तलाक वगैरह की ज़रूरत भी नहीं "
" हाँ हाँ जाओ तुम! जैसे सब अपने ख़ुशियों और दुख के लिए मुझे ही जिम्मेदार ठहराते है वैसे ही करो तुम भी, जाओ नहीं चाहिये कोई मुझे, मैं अकेला ही ठीक हूँ "
अर्जुन की बातों से दुखी अंजना ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। दो शरीर जुदा हो गए पर दो दिल तड़पते रह गए। आज पांच साल बाद वो इस शहर आई एक कॉन्फ्रेंस के लिए तो उम्मीद नहीं थी कि ये कैफे अर्जुन का ही होगा। अर्जुन ने बात करनी चाही तो अंजना उठ कर चल दी पर उसकी आवाज़ से दरवाज़े पर रुक गई।
" सॉरी अंजना, ग़लती मेरी थी पर मैं तुम्हें वापस बुला भी नहीं पाया। कैसे बुलाता मैं मतलबी हो गया था। तुम्हारे जाने के बाद नौकरी छोड़ मैं अपने सपनों को पूरा करने के लिए दिन रात लगा रहा। अब मैं समझता हूं कि सपनों को कुर्बान करना कितना मुश्किल है, तुमने मेरे लिए अपना सपना छोड़ा था अपनी जॉब छोड़ी थी और मैंने उसकी कदर नहीं की थी। अब मैं अपने ख़ुशियों की चाभी खोज ली है, पर वो तिजोरी तुम हो अंजना.. बहुत हिम्मत जुटाई कई बार तुम्हारे शहर आया पर हिम्मत ना हुई कि तुमसे फिर अपने सपनों को छोड़ मेरे साथ चलने को कह सकूँ, मुझे माफ़ कर दो "
अंजना के आँसू रुक ही नहीं रहे थे।
" अर्जुन! मेरी खुशी हमेशा तुमसे ही थी, मेरा सपना ये जॉब नहीं तुम्हारे साथ बूढ़ा होना था.. तुमने तब क्यूँ नहीं रोका? ये पांच साल मैंने कैसे गुजारे है तुम्हें क्या पता? पर मैं तुम्हारे तरह नखरे नहीं करूंगी, हाँ मैं वापस आना चाहती थी पर तभी जब तुम्हें भी इस प्यार की कदर हो। "
" प्लीज लौट आओ अंजना.. मैं तैयार हूं सब छोड़ने के लिए "
" मिस्टर अर्जुन! क्या आपके कैफे को एक स्मार्ट मैनेजर चाहिए? "
" हाँ बिलकुल मिसेज अर्जुन "
कहते हुए दोनों हँस पड़े। कैफे में तालियां गूँज पड़ी और दोनों गले लग गए।