तराज़ू
तराज़ू


एक लड़की सहमी सी उस कुर्सी पर बैठी थी। कई ज़ख्म थे उसके शरीर पर। गुमसुम सी वो पगली किसी और ही दुनिया में थी। कचहरी के बाहर कई लोग, कई वकील थे, पर उसके लिए सिर्फ अंधेरा था।
"लाडो, चल अब हमारी बारी है", उसके पिता ने उसे बच्चों की तरह पलोस्कर कहा। वो उन्हें सुनकर खड़ी तो हुई पर एक बेजान शरीर की तरह चलने लगी। पूरी कचहरी भरी थी, कई वकील , पत्रकार सब वहां मौजूद थे।
वहीं सिलसिला एक बार फिर शुरू हुआ। "क्या हुआ था उस रात?", "उसने तुम्हें कहाँ कहाँ छुआ था?" , "कितने बजे थे उस समय?","तुमने क्या पहना था?" ये सब सवाल फिर पूछे गए। भरी अदालत में उस लड़की के ज़ख्म ,फिर कुरेदे गए। पर वो सुन्न थी। उन ठंडे होठों से सब जवाब निकलते रहे। ऐसा लग रहा था मानो कोई मुर्दा बोल रहा हो।
अदालत खत्म हुई, अगले महीने की तारीख पड़ी। अदालत खाली हुई, बस वो लड़की वहां रह गई और रह गई एक और औरत जो होकर भी न थी, जिसके हाथ में सबकी सज़ा तय करने के लिए तराज़ू तो था पर आँखो पर पट्टी थी।
खाली अदालत में बस अब सिर्फ एक आवाज़ गूंज रही थी, उस लड़की की सिसकियों की। अचानक उस औरत की नींद खुली। उसने उस लड़की से उसके रोने की वजह पूछी।
पहले तो वो सहम गई , फिर हिम्मत जुटाकर बोली,"बस एक बार, सिर्फ एक दिन के लिए,अपनी पट्टी हटाकर देखिए फिर आप जो न्याय तय करेगी मुझे मंजूर होगा।" उस लड़की की मायूस आवाज़ को औरत मना न कर सकी। लाडो उस औरत को अपनी दुनिया दिखाने ले आई।
घर आई तो टीवी चल रहा था, उसी लड़की की कहानी दिखा रहे थी। असल में कहानी नहीं थी वो, सबको ये बताने का एक ज़रिया था, कि अगर आप भी कभी नौकरी से देर रात वापिस आ रहीं हो तो कभी अकेले न आए, क्योंकि फिर जो होगा वो आपकी गलती होगी। इस समाज के कुत्ते को पूरा हक है आपको नोचने का। उस खबर को देखकर लड़की ने चैनल बदल दिया। पास बैठी औरत अचानक से चीख पड़ी। एक और लड़की की खबर आ रही थी जिसके चाहने वाले ने उसके इनकार करने पर उसके चेहरे पर एसिड फेंक दिया। ऐसा भयानक चेहरा देखकर वो औरत सहम गई।
उस रात जब वो औरत अदालत वापस जा रही थी, उसकी धड़कने तेज थी, माथे पर पसीना था, आँखो में डर था। वहां पहुँचकर वो बहुत रोई। अपने तराजू को तकती रही जो उसके लिए अब बस एक फरेब था। लाचार होकर, अपनी हार मानकर,उसने अपनी आँखो पर फिर इस फरेब की, इस समाज की पट्टी बांध ली और सिसकती हुई वो फिर से बस एक मूरत बन गई।।