तीन पत्थर।
तीन पत्थर।


एक महात्मा थे। जंगल में रहा करते थे। वह पथिकों को पानी पिला देते थे, रास्ते को साफ कर देते थे। जो कभी कोई भूखे उधर से निकल आते उन्हें कुछ खाना दे देते थे। उनका बड़ा नाम हो गया ,लोग उनसे बड़े प्रसन्न रहने लगे। उसी जंगल में एक डाकू भी रहता था। उससे लोग बहुत डरते थे ,उधर से कोई जाता नहीं था। एक दिन उस डाकू के मन में आया कि उस महात्मा से मिलूँ, देखूं कि उनमें क्या चीज है कि लोग उनकी इतनी सेवा करते हैं। उनके पास आते रहते हैं। और मेरी बदनामी होती है। मैं जरा उनसे मिलूँ तो सही।
वह एक रात उनके पास गया और बोला- महाराज ,लोग आपके पास आते हैं इतनी आपकी प्रतिष्ठा करते हैं और मुझसे लोग भागे रहते हैं। कृपा कर मुझे भी कुछ ऐसा ही बता दीजिए जिससे मैं वैसा करुँ और लोग मेरे पास भी आकर मेरी कुछ प्रतिष्ठा करें और मेरे दिन कुछ शांति से कटें।
उन्होंने कहा, ठीक है ,कल सुबह मेरे पास आना। तो उसे पहाड़ी के समीप ले गए। वहाँ तीन पत्थर पड़े थे ,महात्मा ने कहा- इन तीनों को अपने सिर पर रख लो। उस डाकू ने पत्थर को सिर पर रख लिया। महात्मा ने कहा-
मेरे पीछे चले आओ। उनके पास कोई बोझ नहीं था वह पहाड़ी पर जल्दी-जल्दी चढ़ने लगे, उधर डाकू पर पत्थरों का बोझ था कुछ दूर तो वह चला फिर बोला -महाराज ,मैं तो थक गया। महात्मा ने कहा ,ठीक है ,तुम एक पत्थर डाल दो। उसने एक पत्थर डाल दिया कुछ हल्का हुआ। महात्मा फिर चलने लगे तो कुछ दूर जाकर डाकू ने फिर से कहा ,महाराज ,अब नहीं चला जाता। महात्मा बोले अच्छा एक पत्थर और डाल दो। उसने दूसरा पत्थर फेंक दिया ,हल्का होकर चलने लगा। कुछ आगे जाकर कहने लगा -महाराज, यह भी भारी लग रहा है। महात्मा ने कहा -यह भी डाल दो।
उस पत्थर को फेंकते ही वह पूर्ण हल्का हो गया और साथ-साथ चलने लगा और पहाड़ी पर चढ़ गया। उस महात्मा ने दया करके उस डाकू को उपदेश दिया कि भाई !यह तीन पत्थर जो थे, वे क्या थे। तुम्हारे अंदर तीन बातें हैं ,तुम तीन पत्थर रख छोड़े हो उससे तुम दबे रहते हो। पहला डाकुओं का गोल, दूसरा लूट का माल ,तीसरा बुरी नीयत। इन पत्थरों को लेकर तुम इस जीवन के पहाड़ पर नहीं कर सकते थे। और तुमने जब उन तीन पत्थरों को डाल दिया तो मेरे साथ पहाड़ पर चढ़ सके।