स्वाभिमान
स्वाभिमान
आज नंदिनी बहुत ही विचलित थी..... ना जाने क्योँ आज पति की याद बहुत आ रही थीपति की असमायिक मृत्यु के बाद ससुराल वालो ने धक्के मार
कर घर से बाहर कर दिया .. ना चाहते हुए भी मायके का आसरा लेना पड़ा । अपने मायके में रह कर भी वह ज्यादा खुश नही थी....दो साल हुए है पति की मृत्यु को , माँ का घर बहुत पैसा वाला था....लेकिन भाभियों के द्वारा उसे बात बात पर ताने सुनने को मिलते थे उससे वो काफी विचलित सी हो जाती थी ।एक बेटा और एक बेटी थी ।किसी तरह उनकी शिक्षा पूरी करना चाहती थी ।
लोग क्या कहेंगे और अपने अंदर के आत्मविश्वास की कमी के कारण बाहर काम करने से घबराई .... फिर अपने मूल्य हीन(बिन पति के जेवरात किस काम ) हो चुके जेवरात को बेचकर छोटी सी किराने की दुकान खोल ली ... शुरु -शुरू में मायके वालो को दुकान टाट&
nbsp;में पैबंद सी लगी !भाइयो ने समझाने की भरपूर कोशिश की इससे अच्छा तो दूसरा विवाह कर ले .... नंदनी ने साफ साफ मना कर दिया।मेरे जीवन का एकमात्र लक्ष्य है अपने बच्चों को पढ़ाना ... नाकि दूसरा लगन करना ... भाइयो ने उसकी दुकान को बंद करवाने की पूरी कोशिश की गई .. उसने सारी परिस्थिति का डंटकर सामना किया और अपने दम पर किराने की दुकान को खड़ा किया....दुकान चल पड़ी और अब उसके बच्चे बिना ताना सुने .. गर्व से सर उठाकर अच्छी शिक्षा ग्रहण कर रहे थे .. मन ही मन अपनी माँ के हौसलों को सलाम करते थे ।
"एक औरत कभी कमजोर नहीं होती, अपने बच्चों के खातिर अंगारो के बीच भी रास्ता निकाल लेती है । "