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आरती सिंह "पाखी"

Tragedy

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आरती सिंह "पाखी"

Tragedy

सुसाइड नोट ( भाग - 3 )

सुसाइड नोट ( भाग - 3 )

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"वो तो तुम दोनों से बिछड़‌ जाने का गम था यार" काव्या ने‌ उन दोनोंको गले लगा लिया‌ और रोने लगी।


" अरी पागल! तेरी विदाई थोड़ी न हो रही है। जो ऐसे रो रही है, और न हम कहीं जा रहे और न तुम समझी। बस‌ काॅलेज खत्म हुआ दोस्ती नहीं ं .... समझी।" हर्ष बोला


"बिल्कुल सही कहा हर्ष ने, चलो अब‌ शांत‌‌ हो जाओ, तुम तो आज से पहले कभी रोई नहीं , हर‌ वक्त मजाक.... हमको वही काव्या पसंद है चलो अब हँस‌ भी दो यार " निहारिका बोली‌।


" हाँ ! हँस दूंगी पहले एक बार गले तो मिल लो , न जाने क्यों आज तुम दोनों के गले मिलने को जी चाहता है ।" काव्या ने कहा


" ठीक है ! लग जा गले....बस ऐसे ही लड़कियाँ गले लगती रहें मुझे और क्या चाहिए ज़िन्दगी से ।" हर्ष ने काव्या को छेड़ते हुए कहा। 


और तीनों एक दूसरे के गले मिल गए।‌ काव्या ने निहारिका और‌ हर्ष का हाथ‌ अपने हाथ में लिया और बोला , " तुम दोनों मेरी ज़िन्दगी का सबसे कीमती तोहफ़ा हो कभी एक दूसरे से अलग मत होना...समझे‌।" 


"क्यों तू विदेश जा रही है‌? तू भी तो यहीं है हमारे साथ, न जाने आज‌ तुमको क्या हुआ है ? कैसी बहकी-बहकी बातें कर रही हो ।" हर्ष बोला ।


"हाँ ! मैं विदेश जा रही हूँ" ( कहते हुए काव्या मुस्कुरा दी )।


"चलों सब कल घर जाने से पहले यही होस्टल के बाहर‌ मिलेंगे , अभी सबके माँ-पापा इंतजार कर रहे हैं।" निहारिका ने‌ कहा।

"ओके....बाय" हर्ष बोला

"ओके....बाय" काव्या बोली


निहारिका और‌‌ काव्या ने रात‌ को सारे परिवार वालों के साथ‌ मिल कर खाना खाया और रात भर दोनों ने खूब मस्ती की और दोनों ही सुबह पाँच बजे ही उठ गईं। निहारिका नहा धो कर फ्रेश हो गई और काव्या बस एक टक अपनी दोस्त को निहारे जा रही थी। 

" क्या हुआ तुमको मेरी कुंभकर्ण ? नींद नहीं खुली क्या ?....उठो जाओ... नहा कर आओ" निहारिका ने काव्या का हाथ पकड़‌ कर उठाया‌।


"थोड़ी देर और‌ देखने दे न तुझे , अच्छी लग रही है।" काव्या ने कहा।


" ठीक‌ है लेकिन पहले नहा कर आ पागल " निहारिका ने हँसते हुए कहा ।


काव्या ने निहारिका का हाथ खींचा और उसे अपने गले से लगा लिया । 

"ओहो! इतना प्यार " निहारिका बोली।

"हाँ....बस ऐसे ही आज प्‍यार आ गया तुम पर " काव्या बोली।

निहारिका मुस्‍कुरा दी और काव्‍या तौलिया और कपड़े ले कर‌ बाथरूम की तरफ निकल पड़ी।


आज‌ सभी विद्यार्थी‌ काॅलेज को हमेशा के लिए छोड़‌कर जा रहे थे। सभी एक-दूसरे से मिल रहे थे। हर्ष भी अपने माता-पिता के साथ पहुँच‌ गया था। और निहारिका व काव्या के घरवालों को अपने परिवार वालों से मिलवा रहा था। 

हर्ष ‌ने निहारिका से कहा," काव्या कहाँ है ?"


" अरे वो तो बहुत पहले नहाने गई थी। अभी तक लौट कर नहीं आई करीब एक घंटे हो गए, लगता है आज मैडम जी सबसे खूबसूरत दिखना चाहतीहैं , तभी अभी तक नहा कर नहीं आई। तुम बाहर चलो सबसे मिलों मैं उसे ले कर आती हूँ।" निहारिका बोली।


हर्ष हँसने लगा और निहारिका हाॅस्टल की बाथरूम की तरफ बढ़ी । अंदर से पानी चलने की आवाज आ रही थी। निहारिका ने काव्या को आवाज दी, पर प्रतिक्रिया में कोई आवाज वापस नहीं आई। उसने धीरे से बाथरूम के दरवाजे को धकेला और अंदर का नजारा देख कर जोर से चिल्ला दी। उसकी आवाज सुन कर सभी लोग उस तरफ दौड़े। सभी की‌ नज़र निहारिका पर पड़ी। और जब उन्होंने अंदर देखा तो बाथरूम की छत पर काव्या फंदे से झूलती हुई नज़र आई। काव्या के परिवार वाले वही फर्श पर ही लड़खड़ा कर बैठ गए। हर्ष भी अपनी सुध-बुध‌ खो चुका था। काव्या को काॅलेज के चौकीदार ने नीचे उतारा और तुरन्त ही पुलिस को फोन किया गया । 


 किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर क्यों ऐसी होनहार और चंचंल छात्रा ने इतना बड़ा कदम उठाया ? पुलिस आई और जाँच हुई घटना स्थल से एक नोट बरामद हुआ जिस पर लिखा था।


" प्रिय पापा जी,

‌‌‌‌‌           मैं अपनी इच्छा से इस फंदे‌ को अपने गले में पहन रही हूँ। ये फाँसी का फँदा एक-एक पल मरते हुए मुझे याद दिलाएगा कि मैंने किस प्रकार से आपकी ख्वाहिशों का गला घोट दिया। मैंने बहुत कोशिश की, कि मैं भैया जैसी बन पाऊँ पर मैं कभी सफल नहीं हो सकी । 

‌‌‌‌‌    मुझे उम्मीद थी आज आपसे कि मेरे प्रथम आने पर आप मेरी तारीफ करोगे। एक बार प्यार से भाई की तरह मुझे भी गले लगा कर कहोगे कि मेरी शेरनी ने तो कमाल कर दिया। पर मेरी ये ख्वाहिश भी अधूरी रह गई।

‌‌‌‌‌‌‌     पापा आप की कसम, मुझसे ये साइंस और काॅमर्स का बोझ नहीं संभाला गया। क्योंकि शायद आपकी बेटी को रट्टू तोता बनना पसंद नहीं था। और पापा एक बात बताऊँ थोड़ी फन्नी है पर सुनिए हमारा आर्ट्स का सब्जेक्ट कोई नीची जाति का नहीं है जो सब लोग उससे इतना घृणा करते है। जो भी हो मेरी दुनियां बहुत प्यारी थी। ईश्वर से गुजारिश है हर जीवन में, मुझे आप और माँ जैसे ही माँ-बाप मिले। और एक प्यारा-सा भाई भी, पर अगले जन्म में वो सी.ए न बने । क्या यार पापा देखो ये अंतिम लैटर भी ढंग से नहीं लिख पा रही हूँ । माफ करना आपकी बेटी है ही ऐसी।

       एक बात कहूँ पापा आज सुबह दिल कर रहा था, कि आपको गले लगा लूँ । और आपकी और माँ की ममता की खुशबू खुद में समेट लूँ, पर हिम्मत ही नहीं हुई। सुनिए पापा, अब जब मेरी ये आँखे बंद हैं तो ऐसे में ही एक‌ बार गले लगा कर कह देना कि बेटा तू जैसी भी थी‌, मेरा अभिमान‌ थी। पर भाई से या किसी ओर से मेरी तुलना न करना वरना खुशी से ऊपर भी नहीं जा पाउंगी‌।


और हाँ पापा, हर्ष और निहारिका को बोल देना मेरे लिए रोऐंगे नहीं । वो दोनों थोड़े से पागलहैं मेरी तरह। मुझे उनका रोना नहीं पसंद और हाँ, आप भी नहीं रोओगे, वो क्या है न आँसू मुझको कभी पसंद थे ही नहीं । वैसे भी आपको पता है भारत में पानी की कितनी कमी है आप लोग यूँ मुफ्त में आँखों का पानी न बहाना। तो बेहतर होगा आप सबके आँसू न निकले और हँस कर मुझे विदा करो।‌ 

         

   और हाँ ! वापस आउँगी आखिर तुम सबको हँसाने का काम तो मेरा ही है। चलो अब हँस दो सब ।‌ हमhain राही प्यार के फिर मिलेंगे चलते चलते। लव यूँ सो मच माँ- पापा ।

        

‌‌‌          अपने पापा के अधूरे ख्वाबों की परी

‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌                          काव्या

                 



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