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आरती सिंह "पाखी"

Drama

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आरती सिंह "पाखी"

Drama

सुसाइड नोट ( भाग - 1)

सुसाइड नोट ( भाग - 1)

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"अब मैं और काम नहींं कर सकती, आखिर इतने सारे प्रोजेक्ट कौन देता हैं...,भाई ?" काव्या ने उबासी लेते हुए कहा।

" अरे यार, तुमको नींद केे अलवा और भी कोई काम हैं या नहींं, मुझको तो लगता हैं, कि तुम कुंभकर्ण का ही अवतार हो " निहारिका इतना कह कर हँसने लगी।

" नहीं‌‌ ऐसा नहीं हैं यार... अब तुम ही बोलो भला, इतना काम ये कॉलेज वाले देते ही क्यों हैं, जबकि इनको अच्छे से पता होता हैं, कि इस जगह बच्चा एन्जॉय करने आया हैं " काव्या बोली।

"ठीक हैं, ठीक हैं, अब कर लो प्रोजेक्ट पूरे, कॉलेज में तुम्हारा लेक्चर नहीं सबमिट होगा बल्कि प्रोजेक्ट लिया जाएगा" निहारिका बोली।

दोनों सहेलियाँ फिर से अपने काम में लग गई। इन दोनों की मुलाकात ऐसे ही अचानक कॉलेज में लड़कियों केे होस्टल में हुई। जब दोनों को कॉलेज की तरफ से एक ही कमरा अलॉट किया गया। शुरू में तो दोनों केे बीच ज्यादा गहरी मित्रता नहीं थीं , पर धीरे-धीरे दोनों को पता ही नहींं चला की कब वो आम दोस्त से बेहद खास दोस्त बन गई।

काव्‍या जो की ‌‌दिखने में‌ बेहद खूबसूरत थी। गोल चेहरा, हर वक्‍त होंठो पर एक मुस्कान, स्वभाव में बेहद चंचल, हँसमुख और अपनी बातें खुल कर बोलने वाली लड़की थी, वही निहारिका इसके बिल्‍कुल ही विपरीत, शांत , शालिन उसे एक दायरे मे रहकर ही सबसे मिलना पसंद था। शायद दोस्ती का दस्तुर यही है, कि वो दो विपरीत लोगों केे बीच में ही टिकती हैं। इसलिए वो दोनों कब एक दूसरे केे हमदर्द बने इसका भी उनको कोई होश ही न रहा।

कॉलेज का आखिरी साल चल रहा था, और दोनों को पढ़ाई पर अब अधिक से अधिक ध्‍यान देना था। निहारिका और काव्या अपनी पढाई को लेकर हमेशा सतर्क ही रहती थी।दोनो कॉलेज केे हर उत्‍सव में बढ़-चढ़ कर हिस्सा भी लिया करती‌ थी और जीतती भी थी। काव्या को इन सब में कम दिलचस्पी कम थी, पर दोस्ती केे आगे वो‌ हमेशा हार जाया करती थी।

एक दिन कॉलेज में लेक्चर समाप्त होने के उपरान्त काव्य और निहारिका साथ में हॉस्टल जा रही थीं। दोपहर भी काफी हो चुकी थी, और उनको भूख भी बहुत ही तेज से लग रही थी। दोनों ने कैंटीन जा कर खाने का विचार करा। तभी पीछे एक आवाज़ सनाई दी।

" अरे, रूको तो सही काव्‍या,‌ ये लो तुम्हारी नोटबुक , और शुक्रिया मेरी मदद करने के लिए‌,‌ आज अगर तुम मुझे अपनी नोटबुक नहींं देती तो मुझे टीचर से बहुत डांट पड़ जाती, थैंक्स ए लॉट यार " हर्ष ने कहा।

" अच्छा ऐसा था क्या , अगर मुझको पहले से पता होता की तुमको सर से मार पड़ेगी तो मैं तुमको ये नोटबुक कभी भी नहीं देती " काव्या ने हर्ष से कहा और वों तीनों खिलखिला कर हँस पडे़।

"‌हर्ष, तुम भी हमारे साथ चलों हम कैंटीन जा रहे है, खाना खाने।" निहारिका ने‌ हर्ष से कहा।

"‌हाँ‌ जरूर......चलों " हर्ष ने कहा।

"लेकिन, बिल तुम भरोगे‌ं‌ " काव्या‌ ने हर्ष की चुटकी लेते‌ हुए कहा।

"‌अरे..... यार.... बस कर कितना परेशान करेगी लड़के‌ को , मैं तो खाना खाने जा रही हूँ ... क्योंकि काव्या का पेट तो बातों से ही भर जाएगा‌।" निहारिका ने कहा।

"नहीं-नहीं‌ ऐसा नहीं हैं..... चलों‌‌, हर्ष वरना इस पेटू का कुछ भरोसा नहीं, कैन्टीन का सारा‌ खाना खा जाए और हम दोनों भूखे ही न रह जाए" काव्या‌‌ ने कहा।

तीनों हँसते हुए कैंटीन की तरफ चल पड़े,‌ तीनो ने कैंटीन जा कर खाना‌ खाया। तभी खाना खाते हुए हर्ष बोला...." मैं सोच‌ कहा हूँ एग्जाम सर पर आ‌ रहे है , क्यों न‌ हम तीनों साथ मिलकर पढ़ाई करे ...इससे जो टॉपिक क्लियर नहींं हैं वो भी समझ आ जाऐगें और तैयारी भी अच्छी हो जाएगी, क्या कहती हो तुम दोनों........."

" अरे कहाँ आ गया एग्जाम तुम्हारे सर पर मुझे तो तुम्हारा सर खाली ही दिखाई देता है " काव्या‌ ने हर्ष की‌ बातों का मजाक बनाते हुए‌ कहा और हँसने‌ लगी।

" तुमको कभी‌ किसी चीज़ की फिक्र होती‌ भी हैं... या‌ नहीं , हर वक्त सिर्फ मजाक.... ", हर्ष ने गंभीर होते हुए कहा।

"हाँ‌ ! सही बोला हर्ष तुमने, ये बहुत बिगड़ गई हैं। तुम सुनों मुझे‌‌‌ मंजूर है कि हम तीनों मिलकर साथ‌‌ में पढ़ाई करेगे और अब इसकी राय लेने की जरूरत‌ बिल्कुल भी नहीं है " निहारिका ने कहा।

"अरे यार , अब ये मोहतरमा फैसला ले ही चुकी‌ है, तो मैं क्या कहूँ " काव्या ने सर पर हाथ रखते हुए कहा।

" ओके! तो आज से शाम 3 बजे से 6 बजे तक हम रोज़‌ लाइब्रेरी में पढ़ाई करेगें और फिर घर जा कर उसे दोहरा भी लेंगें, और अगर कुछ‌ समझ न‌ आए तो अगले दिन मिल कर एक-दूसरे को फिर‌ से समझ‌ भी लेगे या फिर टीचर की भी मदद ले सकते है‌, क्या कहती हो फिर तुम दोनो... " हर्ष ने‌ कहा।

" अरे पागल हो तुम ,‌ इतनी देर तक पढ़ाई आखिर चाहते क्या हो तुम, मैं पागल हो जाऊँ.....न‌‌ बाबा न.....मुझसे न हो पाएगा....ऐसा भी क्या जुनून पढ़ाई का ,‌ कि पागल ही हो जाओ।" काव्या ने कहा।

" हाँ....बेटा...तुम तो बोलों ही मत‌ ऐसा , दो साल‌ से क्लास में टॉप कर रही हो। " हर्ष बोला।

" नहीं‌‌ ऐसा बिल्कुल भी‌ नहीं हैं‌, मैंने कभी टाॅप करने के लिए पढ़ाई करी ही नहीं, न जाने अच्छे नम्बर कैसे आ जाते हैं मुझे‌ लगता‌ है टीचर‌ के चश्में का नम्बर बढ़‌‌ गया‌ है।" ये बोलकर काव्या तेज‌ से हँस दी।

" चुप रहो अब‌ बहुत‌ मजाक हो गया" हर्ष ने काव्या से कहा।

"अभी कहा" काव्या बोली।

" चुप रहो तुम दोनों जब देखों तब लड़ते ही रहते हो, अब ध्यान से सुनों दोनों , ये तय हुआ कि अाज से रोज़ शाम को हम तीनों लाइब्रेरी में मिलकर पढ़ाई करेंगे , ओके...समझ आया " निहारिका ने‌ कहा।

" मिल तो तुम दोनों रहे हो ,‌ मुझको तो जबरदस्ती लाया‌ जा रहा है, हे भग्वान‌‌ ! कहा हो ? देखो तो ज़रा कितना अत्याचार हो रहा है मुझपर पहले काॅलेज का लेक्चर, फिर लाइब्रेरी में पढ़ाई,‌ और फिर घर आ कर रिवीजन भी , क्या यही दिन देखने के लिए मैं कॉलेज में आई थी....।" काव्या ने आसमान में देखते हुए कहा।

" हो‌ गया‌ तुम्हारा‌ ड्रामा या अभी और है ?" हर्ष ने काव्या से पूछा।

"तुमको‌‌ तो मेरा दर्द ड्रामा ही‌ लगेगा"। काव्या हर्ष से बोली।

" तो फिर मिलते हैं शाम को, अभी चलता हूँ मैं ...टेक केयर...बाय "

"मैंने सुना हैं जाने वाले कभी लौट कर नहींं आते" काव्या ने हर्ष की तरफ देख‌‌ कर हल्की सी मुस्कान दी।

"तुम कभी‌‌ नहीं सुधरोगी....! बाय....।" इतना कर हर्ष चला गया।

काव्या और‌‌ निहारिका भी खाना‌ खा‌ कर होस्टल में चली गई। अभी घड़ी में एक बज रहे थे। दोनों ने सोचा क्यों न थोड़ी देर आराम कर लिया जाए। शाम को तो पढ़ाई करनी ही है। दोनों थोड़ी देर के लिए सो गई,‌ उन्होने ढाई बजे का अलार्म फोन में लगा दिया ताकि वो समय पर लाइब्रेरी पहुँच कर पढ़ाई कर सके।  

कुछ घंटों बाद घड़ी का आलर्म बजा दोनों बेमन से उठी और फ्रेश हो कर लाइब्रेरी जाने की तैयारी करने लगी। लाइब्रेरी हॉस्टल से पाँच मिनट की दूरी पर ही स्थित था। दोनों बाहर निकल होस्टल‌ के गलियारे से होते हुए जल्द ही लाइब्रेरी पहुँच गई। हर्ष बाहर ही खड़ा उनका इंतज़ार कर रहा था।

"‌अरे तुम तो समय के बड़े‌ पाबंद हो,‌ बिल्कुल समय पर आ‌ गए,‌ फिलहाल तो अभी भी‌ तीन बजने‌ में पाँच मिनट बाकी है।" निहारिका के मुस्कुराते हुए कहा।

" नहीं तो‌...ऐसा तो बिल्कुल भी नहींं, समय का पाबंद और वो भी मैं‌‌...??? ऐसा मजाक तो न करो.... बस आज न जाने कैसे समय से पहले पहुँच गया।" हर्ष ने निहारिका की तरफ देख कर मुस्कुरा कर बोला।

" चलों अब सच भी‌‌ बता दो कि‌ तुमकों यहाँ लाइब्रेरी में गार्ड की नौकरी मिल गई‌ है , तभी देखो गेट पर ही खड़े मिल गए हो , वो‌ भी समय से‌ पहले " काव्या ने हर्ष के कांधे पर हाथ मारते हुए कहा।

" ये‌ देखो‌‌ इसको निहारिका,‌ ये लड़की सिर्फ़ मेरा मजाक बनना ही जानती‌ है " हर्ष न‌े नारज़गी जाहिर करते हुए निहारिका से कहा।

" अरे ,‌ अब तुम दोनों फिर से शुरू न हो जाना चलो अब अंदर चलो।‌" निहारिका बोली

तीनों ने‌ लाइब्रेरी के अंदर‌ प्रवेश करा और किताबों को ढूँढने लगे। यूँ ही नोक-झोक करते ,‌ और साथ में पढ़ाई करते हुए‌ पता ही नहीं चला कब परीक्षा के दिन आ‌ गए। तीनों ने बहुत ही लग्न के साथ पढ़ाई करी थी। 

परीक्षा लगभग सभी बच्चों की अच्छी हुई थी। परीक्षा का परिणाम जैसे ही आया हर्ष दौड़ते - हांफते हुए निहारिका व काव्या के पास पहुँचा और बोला " तुम दोनों ने रिजल्ट चेक करा ? "

"नहींं, अभी नहींं करा, आ गया क्या रिजल्ट ? क्या रहा परिणाम ? " निहारिका ने थोड़ा परेशान होते हुए पूछा।

" खुद देख‌ लो " हर्ष बोला‌" चलों अब बता भी‌ दो‌,‌ क्या परिणाम है ? ,‌ अब‌ परेशान न करों‌" निहारिका ने‌ कहा‌‌।

" अच्छा तो सुनों.......इस बार की टॉपर है.........क्यों बातऊँ......पहले मिठाई‌ लाओ‌ " हर्ष बोला।

" तुम बता‌ रहे हो या नहीं " पीछे से काव्या की आवाज़ आई , उसके हाथ में कपड़ों‌ का गठ्ठर‌ था। बाहर‌‌ बारिश शुरू हो गई थी , इसलिए काव्य कपड़े उतारने गई थी।

" अरे ! जो हुकुम आपका‌ शैतान " हर्ष ने‌ आँख मारते हुए कहा।

"‌तो चलो....जल्दी-जल्दी तोते की तरह बताओ। क्या रहा परिणाम ? " काव्या ने कहा।

हर्ष बोला " तो.......इस बार की टॉपर है..मन तो नहीं हैं कि इतनी आसानी से बता दूँ...पर फिर भी सुनो....टाॅपर है हमारी मिस काव्या " और फिर हर्ष ने काव्य को गले से लगा‌‌ लिया, निहारिका भी खुशी से काव्या केे गले लग गई।

हर्ष ने‌ फिर से बोलना शुरू करा "और‌ हमारी दूसरी टॉपर हैं........मोहतरमा आप " 

" क्या‌‌‌ मैं " निहारिका ने कहा।

" जी‌‌‌ हाँ आप‌ " हर्ष बोला।

निहारिका के‌ आँसू निकल गए तीनों एक दूसरे केे गले मिल गए।


"और भाईसाहब आपके‌ ? " काव्या‌‌ ने‌ बीच में रोना-धोना रोकते हुए पूछा।

" जी मेरे , मैं पाँचवे नम्बर पर हूँ‌,‌‌ पर कोई गम नहींं आखिर ज़िन्दगी में पहली बार‌‌ इतने अच्छे नंबर आए है मेरे " हर्ष बोला।

" अच्छा " दोनों ने एक साथ कहा और हँसने लगी।

क्रमशः


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