सुसाइड नोट ( भाग - 2 )
सुसाइड नोट ( भाग - 2 )
हर्ष बोला एक और बात कॉलेज में सर ने कहा था जिन बच्चों ने इस बार टॉप करा है। उनके पेरेंट्स को बुला कर उनके सामने बच्चों को सम्मानित किया जाएगा। तो अपने घर वालों को फोन कर दो।
"हाँ ! हाँ ! क्यों नही बंदर जी " काव्य ने हर्ष का गाल खिचते हुए कहा।
"मेरे साथ ऐसे मस्ती न किया कर पगली, प्यार हो जाएगा" हर्ष बोला।
"अच्छा प्यार....रूक तेरे प्यार की तो " काव्य ने तकिया उठा कर हर्ष की तरफ फेका और हर्ष ने निहारिका की तरफ। आज तीनों ने जी भर कर मस्ती करी। परीक्षा की वजह से तो वो भूल चुके थे, मस्ती क्या होती है। रात का खाना तीनों ने साथ खाया और ढेर सारी भी बातें करी। आखिर रात के दस बज गए, फिर भी हर्ष का आज घर जाने का मन नही था, बेमन से उसने, उन दोनों को बाय कहा और घर की तरफ चल दिया ।
अगले दिन कॉलेज में जरूरत से ज्यादा भीड़ थी। क्योंकि आज सभी बच्चों के पेरेंट्स भी आ रहे थे। अध्यापक ने सभी बच्चों को आदेश दिया गया, कि अपने पेरेंट्स को लेकर ऑडिटोरियम चले जाए। सभी बच्चे बहुत खुश थे, क्योंकि आज काॅलेज का अंतिम दिन था। और सभी को आज सम्मानित किया जाएगा वो भी उनके परिवार वालों के सामने। सभी की खुशी का आज कोई ठिकाना नही था। सभी को आँखों में एक तरफ खुशी चमक रही थी तो दूसरी ओर सबसे बिछड़ने की कमी भी झलक हुई थी। सभी लोग अपने परिवार वालों को अपने दोस्तों से भी मिलवा रहे थे। हर्ष, निहारिका और काव्या ने भी अपने परिवार वालों को एक-दूसरे से मिलवाया। हर्ष ने काव्या तथा निहारिका के माता-पिता के पैर छुए। हर्ष ने काव्या के पापा से कहा, "बधाई हो अंकल आपकी बेटी क्लास में अव्वल आई है, पूरे 95.4% नम्बर क्या बात। आपको गर्व करना चाहिए इस पर।"
"हाँ ! ठीक कहाँ तुमने पर हमें काव्या से और ज्यादा की उम्मीद थी, पर इसने तो मेरा सपना ही तोड़ दिया। लेकिन चलो अब क्या कर सकते है।" काव्या के पापा ने थोड़ा रूखेपन से कहा और सब ऑडिटोरियम के अंदर चले गए।
ऑडिटोरियम में जाते वक्त हर्ष ने काव्या से कहा, "अरे यार, तुझ में और तेरे पापा में ज़मीन आसमान का अंतर है, तू कहाँ मस्तमौजी और तेरे पापा। "
"चुप रहो अभी " काव्या ने हर्ष को बीच में टोकते हुए कहा।
सभी लोग अपनी-अपनी कुर्सी पर जा कर बैठ गए। कार्यक्रम शुरू हुए स्वागत गीत, नॄत्य हुआ। बच्चों का उत्साह बढ़ाने का सभी कार्यक्रम हुए। सभी का मनोरंजन होने लगे। सभी भाव विभोर हो कर कार्यक्रम का आनंद ले रहे थे।
तभी कार्यक्रम पर कुछ क्षण का विराम लगाते हुए घोषणा हुई। जिन बच्चों ने प्रथम, द्वितीय और ततृीय दर्जा प्राप्त करा था, उनको पुरस्कार दिया जाने के लिए मंच पर आमंत्रित किया जाने लगा तथा उनके परिवार वालों को भी उनका उत्साह बढ़ाने के लिए मंच पर बच्चों के साथ आने के लिए कहा गया तथा कुछ बोलने को कहा गया ताकि बच्चों का उत्साह और अधिक बढ़ जाए ।
काव्या, निहारिका और सचिन इन तीन बच्चों व उनके माता-पिता को स्टेज पर आमंत्रित किया गया, क्योंकि काव्या ने प्रथम, निहारिका ने द्वितीय और सचीन ने तीसरा दर्जा प्राप्त किया था। सभी ने इनके माता-पिता से भी गुज़ारिश करी की वो भी मंच पर आ कर अपने बच्चों के उत्साह को बढ़ाए और उनके लिए दो-दो शब्द कहे।
सबसे पहले सचिन के पिता को माइक पर आमंत्रित किया गया। उन्होंने माइक ले गर्व से कहना शुरू किया, " मेरे बेटे ने आज मेरा सर फक्र से ऊँचा कर दिया, मैंने तो सपने में भी कभी नही सोचा था, कि मैं इस मंच पर खड़े हो कर अपने बेटे को संबोधित करूंगा ( वह सचिन के सर पर प्यार से हाथ फेरते है, और फिर कहना शुरू करते है..)मैं जानता हूँ मेरे बच्चे ने इस मुकाम पर पहुँचने के लिए बहुत मेहनत करी है, न सिर्फ मेरे बच्चे ने यहाँ बैठे हर बच्चे ने बहुत ही कड़ी मेहनत करके ये मुकाम हासिल करा है। इस तारीफ का हक़दार हर एक छात्र है...हमें अपने बच्चों का मनोबल बढ़ाना चाहिए, हमें पेरेंट्स बन कर नहीं , बल्कि उनका अपना दोस्त बन कर उन्हें समझना चाहिए ताकि वह अपना हर दुख-दर्द अपने माता-पिता से बाँट सके। पेरेंट्स को चाहिए कि वो अपने बच्चे को समझे" सचिन के पिता की आँखों में आँसू आ गए। उन्होंने सचिन को गले से लगा लिया और उसके माथे को चूम लिया। और सबका धन्यवाद करते हुए माइक को छोड़कर सचीन के साथ स्टेज से नीचे आ गए ।
अब पूरे ऑडिटोरियम जोरदार तालियों की गूंज से गूंज उठा सचिन के पापा का सीना गर्व से चौड़ा हो गया और सभी माता-पिता भी अपने बच्चों पर प्रेम बरसाने लगे, व उनको गले लगा कर शुभकामनाएं देने लगे।
उसके कुछ देर बाद संचालक महोदय ने माइक पर घोषणा करते हुए कहा- अब मैं निहारिका के पिताजी श्रीमान यशवर्धन सिंह जी को बुलाना चाहूँगा। कृपया यशवर्धन जी आगे आइये और अपनी बेटी की इस उपलब्धि पर दो शब्द कहिए।
संचालक महोदय के घोषणा करते ही निहारिका के पाप, निहारिका का हाथ थामें स्टेज की ओर बढ़ गए ओर बोले, " प्रधानाचार्य और यहाँ पर उपस्थित हर एक अध्यापक को मेरा नमस्कार, और हर बच्चे को मेरा ढेर सारा प्यार एवं आशीर्वाद....आज निहारिका ने जो कर दिखाया है, उसके लिए मेरे पास लफ्ज़ ही नही है। मैं इतना खुश हूँ कि ये खुशी जाहिर कैसे करूँ पता नही, बस ये कहना चाहूँगा, कि बेटियों को बोझ न समझे वो भी आपका नाम रौशन करती है, उन्हे एक बार मौका तो दीजिए, देखिए फिर वो अपने माँ-बाप का नाम आँसमा पर भी लिखने की पूरी कोशिश में जुट जाएगी, इसके आगे कुछ कहने के लिए मेरे पास अल्फ़ाज़ नही है,माफ़ करना ! नमस्कार।" पूरे हाॅल पुन: तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
निहारिका व उसके पिता अब मंच से उतर कर स्टेज की सामने की सीट पर जा बैठे। अब स्टेज पर सिर्फ काव्या के पिताजी व काव्या ही थे। काव्या के पिता ने आगे बढ़ कर माइक अपने हाथ में ले लिया और बोले, " नमस्कार प्रधानचार्य और शिक्षकगण, मैं खुश तो हूँ कि आज मेरी बेटी ने टाॅप करा है, प्रथम दर्जा हासिल करा है। पर मुझे मेरी बेटी से इससे कही ज्यादा की उम्मीद थी। पर अब कुछ नहीं हो सकता, बिता कल कभी लौट कर नही आता, मेरा बड़ा बेटा कुन्दन सी.ए है। हमें काव्या से भी इसी तरह से कुछ बड़ा हासिल करने की उम्मीद थी। मैं चाहता हूँ मेरी बेटी अपने बड़े भाई जैसी बने पर मुझे जहाँ तक लगता है, ये मेरी सोच पूरी तरह से असंभव है। क्योंकि मेरी बेटी चंचंल है, मेरा सपना था वो दसवी के बाद साइंस स्ट्रीम ले और एक अच्छी डाॅक्टर बने। पर कम अंक आने की वजह से काव्या ने कॉमर्स ले ली मेरा सपना तो टूटा पर मैंने सोचा कि शायद मेरी बेटी, मेरे बेटे की तरह सी.ए बन जाए , पर वो उसे भी पूरी तरह से न संभल सकी और ग्यारहवीं में फेल हो गई ( सारा हॉल में चुप्पी छा गई, काव्या की आँखों में आँसू आ गए और उसने मुहँ नीचे करके आँखें बंद कर ली, उसके पिताजी ने आगे बोलना शुरू करा ) । हमारे लाख मना करने पर भी इसने आर्ट्स ले ली ...पर कोई बात नहीं।आज मैं खुश हूँ कि मेरी बेटी ने काॅलेज में टाॅप किया। आगे के जीवन के लिए सभी बच्चों को शुभकामनाएं। धन्यवाद।"
पूरे हाॅल में एक अजीब किस्म का सन्नाटा छा गया किसी को समझ नहीं आ रहा था कि काव्या के प्रथम आने पर तालियाँ बजाय जाए या उसके पिताजी की टिप्पणी पर अफ़सोस जताया जाए।
तभी माइक पर घोषणा हुई, व एक नृत्य कला पेश करने के लिए बच्चों को स्टेज पर आमंत्रित किया गया। जिससे हर किसी का ध्यान टूटा और बच्चे सारी बातें भूल कर नाच का आनंद लेने लगे। लेकिन काव्या ने अपनी पलकें नीचे ही कर रखी थी। और वही निहारिका और हर्ष की दृष्टि भी काव्या पर टीकी हुई थी। इससे पहले उन्होंने काव्या का इस तरह शांत भाव कभी नहीं देखा था। वो जल्द से जल्द कार्यक्रम समाप्त होने की प्रतिक्षा कर रहे थे।
कुछ ही घंटों में कार्यक्रम समाप्त हो गया। और दोनों बिना समय जाया किए अपने दोस्त के पास पहुँच गए।
"ओए छिपकली , क्या हुआ तुझे, मुँह क्यों लटका रखा है?" हर्ष ने थोड़ा मजाकिया लिहाज से कहा।
"कही तुम अंकल की बातों से तो उदास नही हो ?" निहारिका ने कहा।
"तुम दोनों भी पागल हो, आखिर भगवान ने दो कान क्यों दिए है, एक से सुनो दूसरे से निकाल दो, मैं तो भूल भी गई आखिर पापा ने क्या कहा था ? तुम को याद है ?" काव्या ने हँसते हुए बोला।
"बताओ भला, यहाँ हम दोनों टेन्शन से मरे जा रहे है और इन देवी जी को फर्क ही नहीं है, अच्छा अगर ये बात नहीं थी, तो क्या बात थी। मुहँ क्यों लटका था" हर्ष बोला ।
क्रमशः