सुनिए, मुझे कुछ कहना था..!
सुनिए, मुझे कुछ कहना था..!
शीर्षक : सुनिए, मुझे कुछ कहना था..!
लेखिका: शाहिना खान "साहिबा"
*Story with a deep massage,
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वो आंखे बंद किए बैंच से सिर टिकाए बैठा था,, पार्क में मोजूद लोगों की चहल पहल उसके कानों में साफ सुनाई दे रही थी। आसमान में उड़ते परिंदे अपने पंखों की फड़फड़ाहट से उसे उसकी हकीकत से वाबस्ता करवा रहे थे,वो उनकी तरह आज़ाद नहीं था,वो कैद में था,,अपनी ही कैद में...। आंखे बंद थी मगर वो उन आवाजों को गौर से सुन रहा था,वो आवाजें एक मीठी धुन में उसके कानों तक पहुंच रही थी,, यकायक उसने आंखे खोली, कलाई पर बंधी घड़ी में वक्त देखा शाम के छह बजकर उन्नीस मिनट हो गए थे,, यानी की वो पिछले दो घंटे से अकेला वहां उस बैंच पर उदास बैठा है,किसी ने यहां आकर उसका हाल तक नहीं पूछा..। हाय! यही बात सोचकर वो और भी ज्यादा गमगीन हो गया,क्या हाल था उसका अंदर से,उसकी आंखे नम हो गईं,,किसी को उसकी फिक्र नहीं थी, एक अम्मी ही तो थी और अब वो भी उससे तंग थी,वो बोझ है उनपर....
उन पर ही क्यों? वो इस जमीन पर भी बोझ है,उसे तो मर जाना चाहिए....। ऐसी बातें उसके दिमाग में घूम कर उसके दिल को धीरे धीरे दीमक की तरह खा रही थी,आंखो से लुढ़कते आंसुओं को पोंछ कर उसने आंखे बंद करते हुए फिर से एक बार सिर बैच से टिका लिया।
"महीने के सिर्फ 35 हज़ार कमाता है,बिजली का बिल भरेगा,पानी का बिल भरेगा, कपड़े लाएगा,गैस सिलेंडर लाएगा या खाने का सामन लाएगा?? इतने से पैसे में क्या क्या करेगा?बाप तो मर गया,अब मैं भी मर जाऊंगी गरीबी की भूख से,,," अम्मी के ताने उसके कानों में गूंज रहे थे।
"कैसे खुश रखेगा हमारी बेटी को??इसका रंग,,, काला है,,,,हम अपनी बेटी किसी काले कलूटे को नहीं देंगे,,," अभी कुछ देर पहले फिर एक बार उसका रिश्ता उसके रंग की वजह से हाथ से निकल गया था। पच्चीसवां रिश्ता था, और ये उसके लिए डूब कर मर जाने का मकाम था,, इस बार भी उसे उसके अपने ही वजूद से नफरत करने पर मजबूर कर दिया गया था।
"काश!काश मुझमें ये कमी न होती,,तो कितना अच्छा होता... इसी कमी की वजह से मुझे ढंग की नौकरी नहीं मिलती,इसी कमी की वजह से सब मुझसे घिन करते है,,मेरे साथ ही ऐसा क्यों है? लोग सूरत देखते है,सीरत क्यों नहीं देखते,,,या अल्लाह,,,मुझे और ना आजमाएं,,, अल्लाह अब तो कोई मोअज्जा कर दें,मेरी दुआओं पर कुन फरमा दें,, मैं कब तक यूं तन्हा रहूंगा,,, या अल्लाह मुझे एक ऐसी लड़की अता फरमाए जिसे मेरी सूरत से कोई फर्क न पड़े जो मेरी सीरत से मुहब्बत......" वो आंखे बंद किए खुद में ही बोल रहा था कि यकायक उसके अल्फ़ाज़ रुके..।
"पांच.....चार.......तीन......."
गिनती करती हुई प्यारी आवाज ने उसका ध्यान खींचा,ये आवाज उसके ही नजदीक से आई थी,,उसने आंखे खोल कर सामने देखा,आंखे बंद किए, नूर में डूबा हुआ चेहरा,खुले बालों की जुल्फें जो सिर पर मोजूद दुपट्टे से बाहर निकल कर उसके चेहरे पर आ रही थी,,एक पांच छः साला लड़के ने उसका हाथ पकड़ रखा था।
"दो.....एक....."
वो ठीक उसके सामने आ खड़ी हुई, उस लड़की की आवाज ने उसकी दुआ भी पूरी नहीं होने दी थी। उसके लफ्ज़ उस लड़की को देखते ही गोया हल्क में अटक गए थे।
"मिन्सा बाजी...अभी साढ़े छः हुए है, आधे घंटे बाद लेने आ जाऊंगा आपको,तब तक आप सुकुन से यहां रहें,,अपनी फेवरेट बैंच पर,,,, और हां तन्हा न आइएगा,,अम्मा मुझे डांटेगी,मैं पक्का सात बजे आ जाऊंगा...!" उस पांच छः साला बच्चे ने उसके हाथ को अपनी हाथ की पकड़ से छोड़ते हुए,उससे कहा।
"ठीक है,,लेकिन जा कहां रहा है अभी?" उसने पूछा।
"मैं बिट्टू के साथ फुटबॉल खेलने जा रहा हूं, रोज रोज आपके साथ यहां आकर बोर हो जाता हूं,आज यहां नहीं रुकूंगा मै,,,खेलने जाऊंगा," उसने ज़िद्दी अंदाज़ में कहा।
"ठीक है, कोई बात नहीं..मगर जल्दी आ जाना,,टाइम याद रखना,, सात बजे आ जाना,,," मिन्सा ने उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा। वो लगातार उन दोनों की तरफ देख रहा था, शायद दोनो भाई बहन थे...। और उस लड़की को देखने से लग रहा था कि वो नाबिना है,,इतनी हसीन... और नाबिना??
या अल्लाह! मेरी कमी तो बहुत छोटी है इसके आगे...। उसने उस लड़की को देखते हुए सोचा था,,
"ठीक है,,अल्लाह हाफिज,," कह कर वो चला गया..।
एक कदम और आगे बढ़ा कर वो लड़की, बैंच के करीब हुई,उसके चेहरे पर एक फीकी से मुस्कुराहट आई..।
"आप जो भी हैं,, ज़रा खिसक कर बैठ सकते है प्लीज??" उसने कहा। उसके मुंह से ये अल्फ़ाज़ सुनकर वो हैरत में पड़ गया,बंद आंखो से,उसे कैसे मालूम की कोई इस बैंच पर बैठा है??
"ऊन्हहु...(वो धीमे से हंसी) दिखाई नहीं देता मगर एहसास करना और हर छोटी सी आवाज को सुनना बखूबी जानती हूं मै...।" ना जाने वो लड़की कैसे उसके दिल की बात जान गई? उसकी बात सुनकर वो मुस्कुराया और थोड़ा सा खिसक गया।
"अच्छा.." वो बोला,उस लड़की को देखने के बाद गोया वो अपनी तकलीफें और गम भूल गया था।
"जी...." मिन्सा उसके नजदीक बैठी ही थी की उसका हाथ,उसके हाथ से छू गया,,उसे एक अजीब से अपने पन का अहसास हुआ,उसका हाथ ठंडा था,जिसे छुते ही उसे इस बात का अहसास हो गया।
"सोरी..." मिन्सा ने अपना हाथ उसके हाथ से हटाते हुए माफी मांगी।
"कोई बात नहीं,," उसने जवाब दिया,वो उस अहसास को महसूस करके शिद्दत से मुस्कुराया।
"नाम क्या है आपका??" उसने कुछ पल की खामोशी के बाद पूछा।
"जानते हैं फिर भी पूछ रहे हैं?" वो हंसी,,उसकी बात सुनकर वो झेंप गया।
"अच्छा नाम है... मिन्सा,," वो कुछ पल रुककर सिर खुजाते हुए बोला।
"आपका नाम क्या है?" उसने पूछा।
" मीर हमजा.." उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
"हम्म्म...." उसने जवाब में इसके सिवा कुछ नहीं कहा। फिर एक बार खामोशी छाई.....। वो दोनों आस पास के माहौल को देखने लगे,,सब खुद में ही गुम थे।
"आपने किसी ठंडी चीज़ को छुआ था??" मिन्सा ने पूछा।
"जी??"
"आपके हाथ ठंडे है न...इसलिए पूछ रही हूँ!" उसने सफाई देते हुए कहा।
"नहीं,,,मैने गौर...नहीं किया...मेरे हाथ ठंडे है??" वो हैरत से अपने हाथों को छू कर देखने लगा,,,,उसे अब अहसास हुआ था कि उसके हाथ काफी ठंडे है।
" आप परेशान है??"
"नहीं....आपको ऐसा क्यों लग रहा है??" वो समझ नहीं पा रहा था कि उसके बगल में बैठी लड़की,जो कि नाबिना है,उसका हाल कैसे जान गई है??
"आपके हाथ ठंडे है,,,इसलिए,,,,, (बात को अधूरा छोड़ते हुए) जब हम परेशान होते हैं या डिप्रेस्ड होते है तो हमारे हाथ ठंडे हो जाते है,,," उसने अपने तजुर्बे से कहा।
"अच्छा..." वो जवाबन कुछ न कह सका..।
"अगर आप ये सोच रहे हैं कि एक अंजान और नाबिना लड़की को अपनी परेशानी बता कर आपको कोई फायदा नहीं होगा,तो आप गलत हो सकते है शायद...!" उसने खुद ब खुद मीर हमजा की बात सुनकर कह दिया।
"ऐसी कोई बात नहीं है,,,, मेरी परेशानी इतनी बड़ी भी नहीं, सॉल्व हो जाएगी,,,," उसने बात टालने की कोशिश की।
"आप अपनी परेशानी नहीं शेयर करना चाहते तो कोई बात नहीं,मगर मैं आपको एक एडवाइस देना चाहूंगी...अल्लाह की ज़ात से कभी नाउम्मीद न हों,,आपकी मुश्किल बहुत जल्द ही दूर हो जाएगी,आपने वो आयत नहीं पढ़ी?? फ़ इन्ना मअल उसरी युसरा...." उसने कहा वो एक टक तक उसकी तरफ देखता रहा....।
"अच्छा...आप यहीं रहते है??" अपनी बात का जवाब न पा कर उसने पूछा।
"जी हां.. इस पार्क से,,,, बस कुछ ही,,,, दूरी पर,,,, घर है मेरा..." उसने नाप तोल कर चंद अल्फाजों में कहा।
"ओह अच्छा,,वैसे तो मै किसी अंजान इंसान से कभी बात नहीं करती मगर आप परेशान लगे तो मैने बात की,,आप बुरा न मानिएगा,,,," उसको लगा कि शायद वो बुरा मान सकता है।
"नहीं ऐसी कोई बात नहीं है,,,मैं क्यों बुरा मानूंगा,,," वो हंस दिया।
"वैसे..मेरा घर तो यहीं ठीक पार्क के सामने वाली गली में है,," उसने खुद ही बताया।
"बहुत अच्छी बात है....,, कौन कौन है आपके घर में?" वो लगातार उसके चेहरे को देखता जा रहा था।
"मैं,अम्मी अब्बू और छोटा भाई जो अभी मुझे यहां छोड़कर गया न वही...समीर नाम है उसका!" मिन्सा ने बताया।
"हम्म्म... नाइस!"
"आपके घर में कौन कौन है??" उसने पूछा।
"मैं और अम्मी,अब्बू का पिछले साल इंतेकाल हो गया..मै घर में इकलौता कमाने वाला हूं!" मीर हमजा ने बताया।
"क्या काम करते है आप??" उसने रुककर पूछा।
"मैं एक छोटे से दवाइयों के मेडिकल पर रहता हूं,,, वहां भी कभी कभार नहीं जा पाता तो सैलरी कट कर लेते है!" उसने गहरी सांस लेकर छोड़ी।
"दोस्तों के साथ घूमते होंगे??लडको का यही तो काम होता है..." वो हंसते हुए बोली।
"नहीं,मेरा कोई दोस्त नहीं है,,,," उसने अटकते हुए कहा।
"बड़ी हैरत की बात है वैसे,,,, लड़कों के दोस्त न हो,ये हो ही नहीं सकता,, कम से कम सो से ज्यादा दोस्त होते है..." वो बोली।
"होते होंगे,,मगर मेरे नहीं है और ना ही मुझे फ्रेंडशिप वगैरह में इंटरेस्ट है,,," उसने साफ साफ लफ्जो में कहा।
"तो फिर आपको किस में इंटरेस्ट है??" मिन्सा ने जानना चाहा।
"फिलहाल तो मै दुनियां से अलग ही रहना पसंद करता हूं,मुझे दीन में इंटरेस्ट है और मै कुरान हिफ्ज करना चाहता हूं,,इसके लिए इन दिनों कोशिश भी कर रहा हूं..." उसने बताया।
"वाकई??आपको पता है मैने पिछले साल ही कुरान हिफ्ज की थी,,," उसकी बात सुनकर वो चौंका।
"आपने??" वो बेसाख्ता बोला।
"क्यों?नहीं कर सकती क्या??"
"नहीं मेरा वो मतलब नहीं था,,लेकिन...." वो अपनी बात पूरी नहीं कर सका।
"जानती हूं,आप क्या कहना चाह रहे है,, अच्छा आपको बताती हूं...मैं जब दस साल की थी तब मैने कुरआन सुनना शुरू किया,,,ऐसे ही सुनते सुनते मुझे कुरआन हिफ़्ज़ हो गया,,अगर आपको यकीन नहीं होता तो आप बेशक मुझसे किसी भी सूरत की कोई सी भी आयत पूछ सकते है..." उसने मीर हमजा को यकीन दिलवाने के लिए अपनी बात कही।
"नहीं,मुझे शक नहीं है....बस आपने कहा तो हैरानी हुई,,," वो अब भी हैरान था। कुछ देर फिर खामोशी छाई...
"आप क्या करतीं है??" इस बार उसने सवाल किया।
"मैं बच्चों को क़ुरआन पढ़ाती हूं,,,इसके अलावा मेरे पास कोई काम नहीं," उसने मुस्कुराते हुए कहा।
"शादीशुदा हैं आप?" उसने पूछा।
"नहीं,मुझसे कौन शादी करेगा?" वो हंसने लगी।
"इसमें क्या हंसने वाली बात है??" वो अजीब सी नज़रों से उसे देखने लगा।
"जैसा आपने सवाल किया है,हंसने वाली ही बात है..हम जैसी लड़कियों को कौन ब्याह कर ले जाता है? पागल ही होगा कोई,,," वो फिर हंसी।
"आपकी बात मुझे अच्छी नहीं लगी...क्या मतलब हुआ इस बात का भला? इतनी खूबसूरत तो हैं आप..!"
"इस खूबसूरती का क्या फायदा जब कुछ दिखाई ही न दे,, लोग खूबसूरती नहीं कमियां देखते है और एक कमी इंसान को बुरा बना देती है!" उसने कहा,,,वो उसकी बात सुनकर कुछ कह न सका,,उसके साथ भी तो ऐसा ही था कुछ...।
"आप मैरिड है?" उसने मीर हमजा को खामोश पाकर पूछा।
"नहीं...." उसने जवाबन कहा।
"आपने शादी क्यों नहीं की?" उसका ये सवाल मीर हमजा के दिल पर किसी खंजर की तरह चुभा था।
"आपके पास आंखे होती तो बेशक आप ये सवाल न करतीं..!" उसने जवाबन कहा।
"ऐसी भी क्या बात है भला? लहज़े और किरदार से तो अच्छे है आप,,क्या कमी है आपमें?बताएं तो ज़रा मुझे.." उसने जानने की कोशिश की।
"मेरा रंग साफ नहीं है,,,मैं अच्छा नहीं दिखता..!"
"सूरत से क्या होता है?इंसान की सीरत देखनी चाहिए,,"
"यही बात तो नहीं समझते आज के लोग,,सबकी सोच आपकी तरह नहीं है...!"
"बाजी आ जाएं.. मगरिब की अज़ान होने वाली है,, साढ़े सात हो गए है, लेट हो गया मै!" वो लड़का हांफते हुए बोला। भागते भागते वो उसके पास आया था,,
"साढ़े सात??" मीर हमजा ने हैरानी से अपनी कलाई पर बंधी घड़ी को देखा, हां वो सही कह रहा था,,साढ़े सात हो चुके थे, मगरिब की अज़ान होने को थी....
"पता ही नहीं चला,,साढ़े सात कब हुए,," मिन्सा धीमे से हंसते हुए बोली और बैंच से उठ खडी हुई...।
"तुम कौन हो भई?मेरी बाजी के पास कैसे बैठे?" वो लड़का उसको घूरते हुए बोला।
"समीर... बड़ों से ऐसे बात करते है??" उसने डांटा।
"तो ये आपके पास क्यों बैठे है? अम्मा डांटेगी पता चल गया तो..." उसने फिक्रमंदी के साथ कहा।
"परेशान न हो,, अच्छे इंसान है ये..!" उसके मुंह से अपने लिए ये लफ्ज़ सुनकर खुद ब खुद उसके चेहरे पर एक लंबी सी मुस्कुराहट बिखर आई थी।
"अच्छे इंसान,,,अल्लाह हाफिज,हम चलते है,,,," समीर ने मीर हमजा की तरफ बत्तीसी दिखाते हुए कहा और मिन्सा का हाथ पकड़ लिया।
"चलें बाजी...!" वो उसे अपने साथ, हाथ पकड़े ले जाने लगा। उन्हें जाता हुआ देख,उसके चेहरे पर मोजूद मुस्कुराहट गायब हो गई।
"सुनिए, मुझे कुछ कहना था...." उसने उन्हें आवाज देकर रोका। उसकी आवाज सुनकर मिन्सा रुक गई।
"जी कहिए,,,,,," वो वहीं सीधी खड़ी थी,उसने मुड़कर नहीं देखा...।
"अगर आपके घर रिश्ता ले आऊं तो हां कह देंगी??" उसके इस सवाल ने मिन्सा को जरा भी हैरान नहीं किया,,
"ये हक में अपने अम्मी अब्बू को देती हूं..." उसने कहा,इसके अलावा वो कुछ और कह भी कैसे सकती थी।
"ठीक है.. कल शाम में अम्मी को ले आऊंगा,," उसने तेज़ आवाज़ में कहा।
"जैसा आपको ठीक लगे...!" वो धीमे से मुस्कुराई।
"चलो समीर..." मिन्सा ने उसके हाथ को मजबूती से पकड़ते हुए कहा और वो दोनों वहां से निकल गए,,वो उन्हें जाते हुए देखता रहा और फिर उनके पीछे पीछे पार्क से बाहर निकल गया..........!!!
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"देखें हमें आपके स्किन कलर से कोई फर्क नहीं पड़ता,,आप जानते हैं मेरी बेटी नाबिना है... और ये बात जानने के बाद जो कोई भी उसके रिश्ते के लिए आया है,उसने हमसे दहेज़ मांगा है, मैं बहुत थक गया हूं ये सब सुन सुनकर,,अगर आप भी इसी ख्याल से आए हैं तो मै आपसे माजरत चाहता हूं,,आप यहां से जा सकते है!" मिन्सा के अब्बू ने हाथ जोड़ते हुए उससे कहा था।
"अंकल शायद आपने मुझे जानने में गलती की है,,मेरी कोई ऐसी मांग नहीं है,,," मीर हमजा ने शर्म से नजरें झुका ली थी,उसने सोचा भी नहीं था कि वो उससे ऐसी बात करेंगे..।
"आप हमें अपनी बेटी दे देंगे,इससे बढ़कर हमारे लिए क्या होगा?हमें दहेज़ नहीं चाहिए,,हम तो सख्त खिलाफ है इस चीज़ के...." मीर हमजा की अम्मी ने कहा।
"फिर भी,,,ये जानते हुए भी कि वो नाबिना है,,, कोई काम ढंग से नहीं कर सकती,आपका बेटा उससे निकाह क्यों करना चाहता है?मुझे ये समझ नहीं आती..." इस बार मिन्सा की अम्मी उसकी अम्मी से बोली थी।
"मैं पसंद करता हूं उन्हें..." मीर हमजा ने गर्दन नीची करते हुए जवाबन कहा।
"और इस बात का क्या प्रूफ है कि निकाह के बाद आप मेरी बेटी को खुश रखेंगे?उसे कभी कोई परेशानी नहीं होने देंगे??" मिन्सा के अब्बू ने पूछा।
"मैं वादा करता हूं आपसे...आपकी बेटी को खुश रखूंगा,कभी कोई परेशानी नहीं आने दूंगा,,,अल्लाह की कसम खाता हूं उनकी जिंदगी में कभी कोई मुश्किल नहीं आने दूंगा,, हमेशा उनका ख्याल रखूंगा,,," उसने पूरे यकिन के साथ कहा,,उसकी आंखो में सच्चाई झलक रही थी,जिसे मिंसा के अब्बू ने पहचान लिया।
"ठीक है,,लेकिन आखिरी फैसला मेरी बेटी का होगा..!" उन्होंने अपने आखिरी अल्फ़ाज़ कहे।
"जी,,बेशक..!" वो मुस्कुराते हुए बोला।
"नादिरा..." उन्होंने अपनी बीवी की तरफ देखकर कुछ इशारा किया,तो वो हां में सिर हिला कर मिन्सा के कमरे की तरफ चली गई,,,
वो सोफे पर पुरसुकून बैठी हुई थी,उसने किसी के आने की आहट पहचान ली।
"वो जवाब जानना चाहते है,,क्या कहना है?तुम राज़ी हो??" उन्होंने पूछा तो वो जवाबन बस मुस्कुरा दी।
"बताओ भी अब...!" नादिरा ने उसके कंधे पर हाथ रखा।
"जवाब जानती है आप,फिर भी पूछ रही है??" उसने शर्म से गर्दन झुकाते हुए कहा। उसका जवाब सुनकर वो हंस दी।
"तुम्हारे अब्बा ने खूब तफ़्दीस की है,,अल्लाह की कसम खाई है तुम्हारे लिए उस लड़के ने,अच्छा लड़का है... वही है न ये जो तुमसे कल शाम में मिला था...?" उन्होंने पूछा,तो हो हैरान हो गई।
"आपको किसने...." उन्होंने मिन्सा की बात बीच में ही काट दी।
"समीर ने बताया था आज दोपहर में मुझे,,, मैं समझ नहीं पा रही थी कि कल शाम से क्यों इतना खुश नजर आ रही हो तुम,,,अब पकड़ी गई तुम्हारी खुशी की वजह..!" उन्होंने हंसते हुए कहा तो वो भी हंस पड़ी।
"अच्छा मै...जाती हूं अभी,,," कह कर वो कमरे से बाहर निकल गई।
"क्या कहा उसने??" उन्होंने पूछा।
"हां कहा है...!" वो जानती थी,फिर भी उन्होंने उससे पूछा था,,उनके मुंह से ये अल्फ़ाज़ सुनकर सबके चेहरे खुशी से खिल उठे...............।।।
* अगले महीने की 8 तारीख को शादी है दोनों की, आ जाईएगा...!
The end!
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🔴 चैनल का नाम; shahina khan sahiba
🥹❤️🩹

