सुनहरे पंख
सुनहरे पंख
एक बड़े से बरगद के पेड़ के ऊपर एक छोटा सा घोंसला था। एक चिड़िया तीन छोटे छोटे चूजों के साथ उस में रहती थी। चिड़िया रोज चूजों के लिए दाना चुगने जाती और चूजे उसके वापिस आने की राह तकते। जब तक माँ न आ जाती तीनों एक दूसरे से सट कर बैठे रहते और बातें करते। बाहर की दुनिया उन्होंने बस थोड़ी सी घोंसले से ही देखी थी। उनका मन करता कि हम सभी भी बाहर उड़ के जाएं और दुनिया देखें। तीनों बाहर ही दुनिया के बारे में बातें भी करते और सपने भी लेते। उन तीनों में से एक चूजा थोड़ा कमजोर था और दिखने में भी छोटा लगता था। उस छोटे बच्चे को सबसे ज्यादा उत्सुकता होती और वो माँ से दाना लेने से पहले बाहर की दुनिया के बारे में जरूर पूछता। माँ भी उन तीनों को बाहरी दुनिया की अलग अलग कहानियां सुनाती। सबसे छोटा चूजा बड़े ध्यान से सारी कहानियां सुनता और माँ से पूछता कि वो ये सब कब देख सकेगा। माँ भी उसको ढांढस बंधाती कि वक्त आने पर वो भी उड़ सकेगा और दुनिया देखेगा। बाकी दो बच्चे माँ की कहानिओं को ज्यादा गौर से नहीं सुनते थे और अपने खेल में ही मस्त रहते थे।
वक्त बीता और चूजे बड़े होने लगे। उन के पंख भी उग आये थे। माँ भी उन्हें उड़ना सिखाती और बाकी घोंसलों में अपनी उम्र के और बच्चों को देख देख कर भी वो कुछ कुछ सीख रहे थे। दोनों बड़े बचे जल्दी ही थोड़ा थोड़ा उड़ने लगे और पेड़ पर एक डाली से दूसरी डाली पर आराम से चले जाते पर सबसे छोटा बच्चा कमजोर होने के कारण या आत्मविश्वास न होने के कारण अभी उड़ना सीख नहीं पाया था। दोनों बड़े बच्चे जब उड़ कर वापिस आते तो उसे बहुत चिढ़ाते और उसे बताते कि उन्होंने तो आज ये देखा और वो तो आज इतनी दूर जा कर आये। छोटा बच्चा न उड़ पाने के कारण बहुत उदास रहता। माँ उसे कहती कि देखो तुम्हारे भी उतने ही बड़े पंख हैं जितने की तुम्हारे भाइयों को हैं और उड़ने के लिए तुम्हें अपने आप ही हिम्मत करनी होगी पर वो शायद डर के कारण घोंसले से नीचे छलांग लगाने की हिम्मत नहीं कर पाता था।
एक दिन उसने अपनी माँ से पूछा ''माँ, मैं कब उड़ना सीखूंगा।" माँ उस का मन रखने के लिए बोली '' बेटा, तुम जल्दी ही उड़ने लगोगे और अगर तुम्हें ज्यादा ही जल्दी है तो पंखों वाली परी से पंख मांग लो।" उस रात सोने से पहले उसने पंखों वाली परी से फ़रियाद लगाईं और सो गया। रात में पंखों वाली परी उसके सपने में आई और उसने उस बच्चे को दो सुंदर सुनहरी पंख लगा दिए और अपने साथ उड़ने के लिए ले चली। उसकी खुशी की ठिकाना नहीं रहा। पर तभी उसका सपना टूट गया और वो फिर से उदास हो गया। थोड़ी देर बाद जब माँ और उसके भाई उसके पास आये तो एकटक उसे देखते रह गए। वो कुछ समझ पाता इससे पहले ही माँ ने पूछ लिया कि ये दो सुनहरे पंख कहाँ से आये। सपने वाली बात सच होते देख वो ख़ुशी से फूला न समाया। वो झट से घोंसले के किनारे पर गया और नीचे छलांग लगा दी। इन पंखों से वो न सिर्फ उस पेड़ के आस पास पर दूर दूर तक उड़ने लगा। वो कभी आसमान की तरफ जाता तो कभी तेजी से नीचे की तरफ आता। उसके भाई और बाकी हमउम्र बच्चे उसे देखकर हैरान थे। एक बच्चे के कहने पर उसने उसे अपने ऊपर बैठा लिया और उड़ने लगा। उस के इन सुनहरे पंखों में इतनी जान थी के वो उसे लेकर भी बड़ी तेजी से उड़ सकते थे।
सारा दिन वो उन बच्चों के साथ उड़ता रहा और मस्ती करता रहा। शाम ढलने पर वो अपने घोंसले में वापिस आ गया। रात ढलने पर उसने देखा की उसके पंखों में से रौशनी निकल रही है। वो फिर से घोंसला छोड़ आसमान में उड़ने लगा। उसे बहुत मजा आ रहा था। रात में उड़ने का मजा तो उसकी माँ ने भी शायद नहीं लिया था। थोड़ी देर में थक कर वो वापिस घोंसले में आ गया और सो गया। सुबह जब वो उठा तो सुनहरे पंख गायब थे। पर वो बच्चा दुखी नहीं हुआ और वो घोंसले के शिखर पर गया और छलांग लगा दी और पल भर में वो आसमान में उड़ रहा था। परी ने शायद वो सुनहरे पंख उसको एक दिन के लिए उसका आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए ही दिए थे। अब उसका डर ख़तम हो गया था। उसकी माँ भी बहुत खुश थी और पंखों वाली परी का धन्यवाद कर रही थी।
